‘अग्निकांडों से अस्पतालों में’ ‘जा रहे अनमोल प्राण’

punjabkesari.in Sunday, Jan 10, 2021 - 02:36 AM (IST)

भारतीय अस्पतालों में जहां बीमार लोग नया जीवन पाने के लिए जाते हैं, समय-समय पर होने वाले अग्निकांडों के परिणामस्वरूप लोग बेमौत मर रहे हैं। ‘इंटरनैशनल जरनल आफ कम्युनिटी मैडीसन और पब्लिक हैल्थ’ की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार पिछले 10 साल में देश के अस्पतालों में आग लगने की 33 बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं। 

9 जनवरी 2021 को तड़के 1.30 बजे महाराष्ट्र में भंडारा के सरकारी अस्पताल में ‘सिक न्यूबोर्न केयर यूनिट’ में आग लगने से एक दिन से 3 महीने तक आयु के 17 बच्चों में से 10 बच्चों की जिंदा जल जाने से मौत हो गई। एक नर्स के अनुसार जब उसने दरवाजा खोला तो वहां चारों ओर धुआं फैला हुआ था। 

अस्पताल प्रबंधन की महाराष्ट्र लापरवाही इसी से स्पष्ट हो जाती है कि बच्चों की सुरक्षा के लिए लगातार आक्सीजन आपूर्ति आदि की व्यवस्था बनाए रखने के लिए सम्बन्धित कर्मचारी के अलावा इस वार्ड में रात के समय एक डाक्टर और 4 से 5 नर्सों की ड्यूटी अनिवार्य होने के बावजूद वार्ड में न ही ऑक्सीजन आपूर्ति की निगरानी रखने वाला कर्मचारी था, न ही कोई नर्स व डाक्टर था। 

अस्पताल में आग लगने की घटना शार्ट सर्किट का नतीजा बताई जा रही है। अत: प्रश्न उठता है कि इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों की नियमित जांच का नियम होने के बावजूद शार्ट सर्किट क्यों हुआ? वार्ड में ‘स्मोक डिटैक्टर’ भी नहीं लगा हुआ था। यदि लगा होता तो आग लगने की जानकारी पहले मिल जाने से बच्चों की जान बच सकती थी। बहरहाल, इस घटना ने अतीत में भारतीय अस्पतालों में होने वाले अग्रिकांडों की याद ताजा कर दी है जिनमें से चंद बड़े अग्रिकांड निम्र में दर्ज हैं : 

* 9 दिसम्बर, 2011 को कोलकाता के ‘ए.एम.आर.आई.’ अस्पताल में हुए भीषण अग्निकांड में वहां उपचाराधीन 93 रोगियों की मौत हो गई। यह भारतीय अस्पतालों में अब तक का सर्वाधिक भयानक अग्रिकांड है।
* 13 जनवरी, 2013 को बीकानेर के पी.बी.एम. अस्पताल में आग लगने से 3 रोगी गम्भीर रूप से झुलस गए। 
* 16 अक्तूबर, 2015 को उड़ीसा के कटक में आचार्य हरिहर रिजनल कैंसर सैंटर में आप्रेशन थिएटर में आग लगने से एक व्यक्ति की मौत हो गई तथा 80 रोगियों को दूसरे अस्पतालों में शिफ्ट करना पड़ा। 
* 18 अक्तूबर, 2016 को भुवनेश्वर के ‘एस.यू.एम.’ अस्पताल के आई.सी.यू. में लगी भयानक आग के परिणामस्वरूप वहां उपचाराधीन 20 रोगी मारे गए। 

* 16 जुलाई, 2017 को लखनऊ स्थित ‘ किंग जॉर्ज मैडीकल यूनिवॢसटी तथा अस्पताल’ में डिजास्टर मैनेजमैंट वार्ड में ही आग लग गई जिससे 250 रोगियों को दूसरे अस्पतालों में शिफ्ट करना पड़ा। 
* 20 दिसम्बर, 2018 को मुम्बई में ‘ई.एस.आई.सी. कामगार अस्पताल’ में आग लगने से 8 लोगों की मौत हो गई और 145 रोगी झुलस गए।
* 23 जनवरी, 2019 को छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में ‘छत्तीसगढ़ इंस्टीच्यूट आफ मैडीकल साइंसेज’ में शिशु विभाग में आग लगने से 3 रोगी गम्भीर रूप से झुलस गए और 40 बच्चों को अन्य अस्पतालों में शिफ्ट करना पड़ा।  

* 6 अगस्त, 2020 को अहमदाबाद के ‘श्रेया अस्पताल’ में हुए अग्र्रिकांड में वहां उपचाराधीन 8 रोगी मारे गए तथा अनेक झुलस गए। 
* 27 नवम्बर, 2020 को राजकोट के ‘उदय शिवानंद अस्पताल’ के आई.सी.यू. में आग लगने से वहां उपचाराधीन 5 रोगियों की मृत्यु हो गई। गत 5 महीनों में गुजरात के अस्पतालों में होने वाला यह सातवां अग्निकांड था। 
केंद्र सरकार ने 30 नवम्बर को जारी आदेश के अंतर्गत देश भर के अस्पतालों और नॄसग होम्स में आग से सुरक्षा के उपायों का पालन करने के लिए कहा था और सुप्रीमकोर्ट भी 18 दिसम्बर, 2020 को सभी राज्यों को अस्पतालों में फायर सिक्योरिटी ऑडिट कराने और अस्पतालों को फायर डिपार्टमैंट से एन.ओ.सी. लेने का भी आदेश जारी कर चुकी है। 

सुप्रीमकोर्ट ने ऐसा न किए जाने पर दोषी अस्पतालों के प्रबंधन के विरुद्ध कठोर कार्रवाई करने के संबंधित विभागों को निर्देश भी दिए थे परंतु इसके बावजूद, न ही केंद्र सरकार के निर्देशों और न ही सुप्रीमकोर्ट के आदेश का पालन किया जा रहा है।
बिजली की खपत और ‘लोड’ के अनुसार वायरिंग अपग्रेड न होने से शार्ट सॢकट होने के अलावा एयर कंडीशनरों में खराबी, आग बुझाने वाले यंत्रों का काम न करना, वैंटीलेटर जैसे महत्वपूर्ण उपकरणों में खराबी पैदा होना आदि आग लगने के मुख्य कारण माने जाते हैं। अत: ड्यूटी के समय अस्पताल के संबंधित कर्मचारियों के सचेत रहने, किसी भी खराबी के लिए उन पर जिम्मेदारी तय करने, बिजली आदि के उपकरणों की नियमित जांच सुनिश्चित करने के अलावा ऐसी मौतों के लिए जिम्मेदार स्टाफ के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करने की जरूरत है, नहीं तो अस्पतालों में लोग बेमौत मरते ही रहेंगे।—विजय कुमार


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