अब ‘मंकीपॉक्स’ से सचेत रहने का समय!

punjabkesari.in Monday, Aug 26, 2024 - 05:08 AM (IST)

हाल के वर्षों में दुनिया भर में कई नए-नए वायरसों का प्रसार देखने को मिला है। इनमें मंकीपॉक्स, जिसे ‘एम. पॉक्स’ भी कहा जाता है, एक है, जो मध्य अफ्रीका से शुरू होकर दुनिया के अन्य हिस्सों में फैल रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे सार्वजनिक आपातकाल घोषित किया है। अब तक विश्व में इसके 15600 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं जिनमें से 537 लोगों की मौत हो चुकी है। 

मंकीपॉक्स एक विरल लेकिन गंभीर वायरल बीमारी है। यह मानव में जंगली जानवरों, खासकर बंदरों और चूहों जैसे जानवरों के संपर्क में आने से फैलती है। यह रोग पहली बार 1958 में बंदरों में पाया गया था, जिसके बाद यह मानवों में भी देखा गया। हालांकि शुरू में इस रोग की उपेक्षा की गई थी, परंतु 1970 में मध्य अफ्रीका के वर्षा वनों, डैमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (डी.आर.सी.) तथा अफ्रीका के अन्य भागों से होते हुए 2022 में दुनिया के 100 से अधिक देशों में पहुंच चुका है। 

भारत में 1980 तक जो चेचक का टीका व्यापक रूप से लगाया जाता था, माना जाता है कि वह इससे कुछ सुरक्षा दे सकता है। ऐसे में युवा पीढ़ी इस वायरस के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकती है। मंकीपॉक्स संक्रमण के लक्षण आमतौर पर 7 से 14 दिनों के बाद दिखाई देते हैं। इनमें बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, पीठ में दर्द, ठंड लगना और थकान शामिल हैं। इसके बाद चेहरे, हाथ और शरीर के अन्य हिस्सों में दाने उभरते हैं, जो बाद में फफोलों का रूप ले लेते हैं। एक अनुमान के अनुसार भारत में मंकीपॉक्स के लगभग 30 संदिग्ध या संक्रमित रोगी सामने आ चुके हैं। इसी वर्ष मार्च में भी एक रोगी मिला था। चूंकि यह वायरस से फैलने वाली बीमारी है, अत: सतर्कता, समय पर पहचान और सही उपचार से इसके खतरे को कम किया जा सकता है। 

इससे बचाव के लिए स्वच्छता का ध्यान रखना और मंकीपॉक्स के लक्षणों वाले व्यक्तियों से दूर रहना, त्वचा के घावों को ढांप कर रखना और सोशल डिस्टैंसिंग भी जरूरी है। क्योंकि भारत तटीय वातावरण एवं उच्च घनी शहरी आबादी वाला देश है। इसलिए यहां मंकीपॉक्स के फैलने की संभावना ज्यादा हो सकती है। इसलिए देश को ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग सेंटर, आईसोलेशन वार्ड, सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल और वैक्सीन की उपलब्धता की जरूरत है। 

मंकीपॉक्स के अंतर्राष्ट्रीय ध्यान आकॢषत करने के बावजूद भारत में इस बीमारी और इसके संचरण के बारे में जागरूकता कम है। ज्ञान की इसी कमी के कारण निदान और उपचार में देरी हो सकती है जिससे जटिलताओं और प्रसार का जोखिम बढ़ सकता है। इसलिए इसके प्रति तुरंत लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। 


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