कारगिल युद्ध के सूत्रधार परवेज मुशर्रफ नहीं रहे

punjabkesari.in Monday, Feb 06, 2023 - 03:24 AM (IST)

एक लम्बी बीमारी के बाद कारगिल युद्ध के सूत्रधार, पाकिस्तान के पूर्व तानाशाह और 10वें राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ का 79 वर्ष की आयु में निधन हो गया। मुशर्रफ ने 1999 में सैन्य तख्तापलट कर लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार को गिरा दिया और 9 साल तक पाकिस्तान पर शासन किया। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारते हुए रिश्तों को नए आयाम तक पहुंचाया लेकिन उनकी ये पहल लम्बे समय तक कायम नहीं रह पाई। 

19 फरवरी, 1999 को जब भारतीय प्रधानमंत्री सदा-ए-सरहद बस से पाकिस्तान पहुंचे तो अटल बिहारी वाजपेयी के शब्द पूरे लाहौर में गूंज उठे। तब उन्हें नहीं पता था कि उनकी ऐतिहासिक पहल के कुछ ही महीनों के भीतर भारत और पाकिस्तान एक और जंग-कारगिल में उलझ जाएंगे। उस दौरान कहा जाता है कि मुशर्रफ ने वाजपेयी को सैल्यूट तक नहीं किया। मुशर्रफ कारगिल में 1999 के संघर्ष के वास्तुकार तो थे ही और संदेह था कि उसी वर्ष इंडियन एयरलाइंस के विमान के अपहरण में जनरल मुशर्रफ और उनकी सेना का हाथ था। 

1999 के अक्तूबर के तख्तापलट में जिसमें मुशर्रफ ने तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अपदस्थ किया, भारतीयों को भी सावधान कर दिया। यदि भारत के साथ कारगिल युद्ध न हुआ होता तो पाकिस्तान के भारत के साथ रिश्ते मजबूत हो सकते थे क्योंकि नवाज शरीफ भारत की ओर दोस्ताना हाथ बढ़ाना चाहते थे। मुशर्रफ ने यकीनी तौर पर भारत के साथ रिश्ते खराब किए जोकि लम्बी अवधि में पाकिस्तान के लिए घातक साबित हुआ। उन्होंने पाकिस्तान में लोकतंत्र को खत्म किया। 

मुशर्रफ 2001 में आगरा शिखर सम्मेलन के लिए भारत में शांति वार्ता के लिए आए थे परंतु आधी रात को आवेश में आकर आगरा छोड़ दिया। मुशर्रफ ने कश्मीर के आंदोलन का समर्थन करके अपनी भारत विरोधी साख को बदलने के बावजूद भारत के प्रति तुष्टीकरण का रवैया अपनाया। कोई भी भारत के प्रति मुशर्रफ की अविश्वसनीय शत्रुता के बारे में बात कर सकता है जैसा कि उनकी नीतियों से पता चलता है कि भारत को लक्षित करने के प्रयास में उन्होंने उग्रवादियों को प्रशिक्षित किया और अमरीका से सहायता प्राप्त की। 

दिल्ली के दरियागंज में 11 अगस्त 1943 को एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे मुशर्रफ ने खुद को एक प्रगतिशील मुस्लिम नेता के रूप में पेश करने का भी प्रयास किया। 2005 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति के रूप में जब मुशर्रफ ने भारत का दौरा किया था तब भारत सरकार ने एक विशेष उपहार के रूप में उनका जन्म प्रमाण पत्र उन्हें दिया था। उन्होंने शुरूआत में पाकिस्तान के मुख्य कार्यकारी के रूप में और बाद में राष्ट्रपति के रूप में शासन किया। 

घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दबाव के चलते 2008 में चुनावों की घोषणा करने वाले मुशर्रफ को चुनावों के बाद राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा और वह दुबई में स्व-निर्वासन में चले गए। मुशर्रफ को विभिन्न मामलों में अदालत में घसीटा गया जिनमें 2007 में पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या, पाकिस्तान संविधान के अनुच्छेद 6 के तहत राजद्रोह और बुगती जनजातीय के प्रमुख नवाब अकबर खान बुगती की हत्या के आरोप शामिल थे। वर्ष 2019 में मुशर्रफ को एक विशेष अदालत द्वारा उनकी उपस्थिति में मौत की सजा सुनाई गई थी। अदालत ने उन्हें 3 नवम्बर 2007 को संविधान को दरकिनार कर आपातकाल लागू करने के लिए देशद्रोह का दोषी पाया था। सेनाध्यक्ष रहते हुए मुशर्रफ ने भारत को कई जख्म देने की कोशिश की। मुशर्रफ काल के दौरान पाकिस्तान के भारत के साथ व्यापारिक और राजनीतिक रिश्ते विकृत हो गए। 

उन्होंने भारत के खिलाफ पाकिस्तान की खुफिया एजैंसी आई.एस.आई. का इस्तेमाल किया और अफगानिस्तान में तालिबान के साथ हाथ मिलाया मगर हुआ इसके विपरीत ही, क्योंकि आज पाकिस्तान की जो दयनीय स्थिति बनी हुई है उसका कारण परवेज मुशर्रफ ही थे। हालांकि इस बात की पुष्टि नहीं हो पाई है कि मुशर्रफ का शव पाकिस्तान में लाया जाएगा या नहीं। फिर भी उनके पारिवारिक सदस्य पिछले वर्ष से ही उन्हें पाकिस्तान लाने का प्रयास कर रहे थे। अब सवाल यह उठता है कि उन्हें कहां पर दफनाया जाएगा। मुशर्रफ पाकिस्तान के इतिहास में अपना नाम उस व्यक्ति के तौर पर लिखवाना चाहते थे जिसने न केवल भारत को कमजोर किया और पाकिस्तान को बेहद मजबूत किया। पाकिस्तान के हालात कब सुधरेंगे यह तो नहीं कहा जा सकता मगर हम इतना कह सकते हैं कि : ‘न खुदा ही मिला न विसाल-ए-सनम न इधर के हुए न उधर के हुए’


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