सरकार और समाज को सही दिशा देने वाले जस्टिस चंद्रचूड़ के फैसले और टिप्पणियां
punjabkesari.in Wednesday, Jul 10, 2024 - 05:14 AM (IST)
जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ 13 मई, 2016 को सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीश बनने के बाद 9 नवम्बर, 2022 को भारत के मुख्य न्यायाधीश बने। सुप्रीमकोर्ट के वर्तमान जजों में उन्होंने सर्वाधिक 597 फैसले सुनाए और टिप्पणियां की हैं, जिन्हें ‘लैंडमार्क’ माना जाता है, जिनके इस वर्ष के चंद उदाहरण निम्न में दर्ज हैं :
* 15 फरवरी, 2024 को चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने राजनीतिक दलों को आर्थिक सहायता के लिए शुरू की गई ‘इलैक्टोरल बांड’ (चुनावी चंदा) योजना रद्द करते हुए कहा कि,‘‘यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार तथा सूचना के अधिकार का भी उल्लंघन करती है तथा राजनीतिक दलों को फंडिंग करने वालों की पहचान गुप्त रहने पर इसमें रिश्वतखोरी का मामला बन सकता है।’’
* 4 मार्च, 2024 को श्री चंद्रचूड़ ने अदालतों में मामलों के स्थगन के रुझान पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि देश की न्यायिक प्रणाली में ‘स्थगन’ का चलन वादियों की पीड़ा को बढ़ाता है। अदालतों को किसी भी मामले में फैसला सुनाने के लिए वादियों के मरने का इंतजार नहीं करना चाहिए।
* 11 मार्च, 2024 को श्री चंद्रचूड़ ने कहा कि जजों को अपना फैसला आसान भाषा में लिखना चाहिए ताकि वह आम लोगों तक पहुंच सके।
* 6 अप्रैल को जस्टिस चंद्रचूड़ ने बलपूर्वक कहा कि अपनी राजनीतिक विचारधारा चाहे जो भी हो, वकीलों और जजों को संविधान के प्रति वफादार तथा जजों का निष्पक्ष होना जरूरी है।
* 5 जुलाई, 2024 को न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने नागरिकों से उच्चतम न्यायालय में लंबित अपने विवादों को सौहार्दपूर्ण तरीके और शीघ्रता से हल करने के लिए 29 जुलाई से 3 अगस्त तक लगने वाली विशेष लोक अदालत में भाग लेने का आग्रह किया, जो शीर्ष अदालत में लंबित मामलों की संख्या कम करने के लिए आयोजित की जा रही है। उल्लेखनीय है कि लोक अदालतों में नागरिकों से संबंधित मामलों को पूरी तरह से स्वैच्छिक और सहमतिपूर्ण तरीके से दोनों पक्षों की संतुष्टिï के अनुसार हल किया जाता है तथा दोनों पक्षों के अदालती खर्च में भी कमी आती है।
* 8 जुलाई, 2024 को श्री चंद्रचूड़ ने छात्राओं और कामकाजी महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान अवकाश देने के लिए केंद्र और सभी राज्य सरकारों को आदर्श नीति बनाने पर विचार करने को कहा।
* 9 जुलाई को जस्टिस चंद्रचूड़ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने से इंकार किए जाने के पिछले वर्ष के फैसले की समीक्षा के लिए दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई करने की अनुमति देने से इंकार कर दिया।
सी.जे.आई. चंद्रचूड़ द्वारा सुनाए गए इसी प्रकार के फैसलों के दृष्टिगत लोगों का एक वर्ग उन्हें देवता स्वरूप देखता है जिस पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने 29 जून, 2024 को कोलकाता में भारतीय न्यायशास्त्र में संवैधानिक नैतिकता लागू करने के महत्व पर जोर देते हुए कहा :
‘‘जब लोग अदालतों को न्याय का मंदिर कहते हैं तो मैं मौन हो जाता हूं क्योंकि इसका मतलब होगा कि न्यायाधीश देवता हैं, जो वे नहीं हैं। जजों की तुलना भगवान से करना एक खतरनाक परम्परा है क्योंकि न्यायाधीशों का काम सार्वजनिक हित की सेवा करना है।’’ ‘‘जब मुझे बताया जाता है कि अदालत न्याय का मंदिर है तो मुझे झिझक महसूस होती है और मैं कुछ बोल नहीं पाता हूं क्योंकि इसमें एक बड़ा खतरा यह है कि हम खुद को कहीं उन मंदिरों में देवता न मान बैठें।’’ ‘‘जब आप स्वयं को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखेंगे, जिसका काम लोगों की सेवा करना है तो आप के अंदर दूसरों के प्रति संवेदना और पूर्वाग्रह मुक्त न्याय करने का भाव पैदा होगा।’’
‘‘किसी न्यायाधीश की व्यक्तिगत धारणा, कि क्या सही है और क्या गलत है, संवैधानिक नैतिकता पर हावी नहीं होनी चाहिए क्योंकि हम संविधान के सेवक हैं, संविधान के स्वामी नहीं।’’ इस समय जबकि विधायिका और कार्यपालिका लगभग निष्क्रय हो चुकी हैं, न्यायपालिका महत्वपूर्ण मुद्दों पर अनेक जनहितकारी निर्णय ले रही है और न्यायमूॢत चंद्रचूड़ तथा उनकी विभिन्न पीठों के सदस्यों द्वारा सुनाए गए उक्त निर्णय प्रकाश स्तम्भ के समान हैं।—विजय कुमार