सर्वोच्च न्यायालय की सरकार को सलाह वर-वधू पक्ष द्वारा शादी के खर्च का हिसाब देना अनिवार्य किया जाए

punjabkesari.in Sunday, Jul 15, 2018 - 02:43 AM (IST)

हमारे देश में कन्या का विवाह प्रत्येक माता-पिता के लिए किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं होता और शादी के बाद भी उन्हें यह भय बना रहता है कि कहीं दहेज को लेकर उनकी बेटी को प्रताडऩा का शिकार न होना पड़े। कुछ समय पूर्व सर्वोच्च न्यायालय ने दहेज प्रताडऩा के मामले में बड़ी संख्या में की जाने वाली गिरफ्तारियों पर चिंता जताते हुए कहा था कि ऐसे मामलों में गिरफ्तारी करते समय पुलिस के लिए निजी स्वतंत्रता और सामाजिक व्यवस्था के बीच संतुलन रखना आवश्यक है। 

न्यायालय ने यह भी कहा था कि दहेज प्रताडऩा से जुड़ा मामला गैर जमानती होने के कारण कई लोग इसे हथियार भी बना लेते हैं और यह भी एक वास्तविकता है कि दहेज प्रताडऩा के मामलों में मात्र 15 प्रतिशत मामलों में ही सजा होती है और अधिकांश मामलों में आरोपी बरी हो जाते हैं। इसी को रोकने के लिए दहेज विवाद संबंधी एक याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह परिवारों के लिए विवाह में हुए खर्चों का खुलासा करना अनिवार्य करने पर विचार करे और इस बारे में जल्दी ही नियम बनाए। 

विवाह से जुड़े एक विवाद पर सुनवाई के दौरान 12 जुलाई को शीर्ष न्यायालय ने केंद्र सरकार को उक्त सलाह दी। इस मामले में पीड़ित पत्नी ने अपने पति और उसके परिवार पर अनेक प्रकार के आरोप लगाए थे जबकि पति पक्ष ने दहेज लेने या ऐसी कोई भी मांग करने से पूरी तरह से इंकार किया है। मामले की सुनवाई के दौरान शीर्ष न्यायालय ने पाया कि विवाह संबंधी विवादों में दहेज मांगने के आरोप-प्रत्यारोप सामने आते हैं। ऐसे में इस तरह की कोई व्यवस्था होनी चाहिए जिसके माध्यम से सच और झूठ का पता लगाने में सहायता मिले। 

शीर्ष न्यायालय ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करके कहा कि ‘‘सरकार अपने विधि अधिकारी के माध्यम से इस विषय पर अपने विचारों से न्यायालय को अवगत करवाए। सरकार को वर और वधू दोनों पक्षों के लिए शादी से जुड़े खर्चों को संबंधित मैरिज आफिसर को लिखित रूप से बताना अनिवार्य कर देना और इस बारे नियम-कानूनों की जांच-परख कर संशोधन करने पर भी विचार करना चाहिए।’’ न्यायालय ने यह भी सलाह दी है कि शादी के लिए तयशुदा खर्च में से एक हिस्सा पत्नी के बैंक खाते में जमा करवाया जा सकता है जिसका भविष्य में आवश्यकता पडऩे पर वह उपयोग कर सकती है। इसे अनिवार्य करने पर भी सरकार विचार कर सकती है। 

शीर्ष न्यायालय ने कहा कि, ‘‘यदि विवाह में दोनों पक्षों की ओर से किए गए खर्च का विवरण मौजूद रहेगा तो दहेज प्रताडऩा कानून के अंतर्गत दायर किए गए मुकद्दमों में धन से जुड़े विवाद हल करने में सहायता मिलेगी। इससे दहेज के लेन-देन पर भी लगाम लगेगी तथा दहेज उत्पीडऩ कानूनों के अंतर्गत दर्ज होने वाली फर्जी शिकायतों में भी कमी आएगी।’’ शीर्ष न्यायालय के उक्त परामर्श का उद्देश्य है दहेज के लेन-देन को रोकना और दहेज कानून के अंतर्गत दर्ज होने वाली झूठी शिकायतों पर नजर रखना। दहेज जैसी कुप्रथा पर लगाम लगाने के लिए केंद्र सरकार को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई सलाह बहुत बढिय़ा है इससे दहेज प्रताडऩा को लेकर होने वाले विवादों में उल्लेखनीय कमी आएगी। 

यदि केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय की उक्त सलाह मान ली तो जल्द ही कन्या और वर पक्ष दोनों को शादी में हुए कुल खर्चे का हिसाब-किताब सरकार को देना अनिवार्य हो जाएगा। इस बारे हम यह कहना चाहेंगे कि इस हिसाब-किताब पर दोनों ही पक्षों के हस्ताक्षर होने चाहिएं ताकि बाद में विवाद उत्पन्न होने पर कोई भी पक्ष मुकर न सके और बढ़ा-चढ़ा कर अधिक खर्च का झूठा दावा पेश न कर सके। इसके साथ ही यदि कोई पक्ष अपनी नम्बर दो की कमाई का धन शादी पर खर्च करेगा और  कम खर्च का ब्यौरा देगा तो विवाद की स्थिति में वह अपने वास्तविक खर्च का दावा नहीं कर सकेगा और इस तरह उसे कम मुआवजे से ही संतुष्ट होना पड़ेगा। यदि सरकार इस आशय का कानून बना देती है तो इससे दहेज प्रताडऩा के मामलों में उल्लेखनीय कमी आ सकती है अत: न्यायालय की सलाह मान कर केंद्र सरकार इसे जितनी जल्दी अमली जामा पहना देगी उतना ही भारतीय समाज के लिए अच्छा होगा।—विजय कुमार  


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Pardeep

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