क्या बदले की कार्रवाई में सक्षम है ईरान

punjabkesari.in Monday, Jan 06, 2020 - 04:02 AM (IST)

ईरानी जनरल पर अमरीकी हमले का एक पहलू यह भी माना जा रहा है कि ईरान का रसूख जोकि ईराक में बहुत बढ़ चुका है, सीरिया में वह पहले ही असद की मदद कर रहा है और कुर्द भी उसके साथ हैं, ऐसे में मध्य एशिया में यह सबसे बड़ी शक्ति और भूस्थल का स्वामी बन कर उभर रहा था। ऐसे में आसपास के सुन्नी देश और इसराईल अपने बीच एक मजबूत शिया शक्ति को नहीं चाहते हैं। अमरीका भी ऐसा नहीं चाहता। इसे देखते हुए फिलहाल सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि अमेरिका के विरुद्ध ईरान किस तरह की बदले की कार्रवाई करेगा? क्या उसके पास खुफिया या खुल कर कार्रवाई करने की क्षमता है? 

ईरान की सैन्य ताकत की बात करें तो ब्रिटेन स्थित संस्था ‘इंटरनैशनल इंस्टीच्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज’ के अनुसार ईरान के पास अनुमानित 5,23,000 सक्रिय ईरानी सैनिक हैं। इसमें से सेना में 3,50,000 और इस्लामिक रैवोल्यूशनरी गार्ड्स कोर में कम से कम 1,50,000 सैनिक हैं। रेवोल्यूशनरी गार्ड्स के पास अपनी नौसेना और वायु सेना है और ईरान के रणनीतिक हथियारों की देखरेख भी यही करता है। रेवोल्यूशनरी गार्ड्स की नौसेना में अन्य 20,000 से अधिक सेवा कर्मी हैं। यह ग्रुप होर्मुज की खाड़ी में अनेक सशस्त्र गश्ती नौकाओं का संचालन करता है। 2019 में होर्मुज की खाड़ी में विदेशी तेल टैंकरों को लेकर कई टकराव हुए थे। रेवोल्यूशनरी गार्ड्स बासिज यूनिट को भी नियंत्रित करता है जो एक स्वयंसेवी सैन्य बल है जिसने आंतरिक असंतोष को दबाने में मदद की है। यह यूनिट कई हजार कर्मियों को जुटा सकती है। यह अपने आप में एक प्रमुख सैन्य, राजनीतिक और आर्थिक शक्ति बन चुकी है। नियमित सेना की तुलना में कम सैनिक होने के बावजूद इसे ईरान में सबसे अधिक ताकतवर सैन्य बल माना जाता है। 

द कुद्स फोर्स, जिसका नेतृत्व जनरल सुलेमानी करते थे, रेवोल्यूशनरी गार्ड्स के लिए विदेश में गुप्त ऑप्रेशन करती है और सीधे ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई को रिपोर्ट करती है। माना जाता है कि इसमें लगभग 5,000 कर्मी तैनात हैं। इसकी तैनाती सीरिया में की गई थी जहां उसने सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद और उनके साथ लड़ रहे सशस्त्र शियाओं के प्रति वफादार सैन्य बलों की सहायता की। ईराक में इसने एक शिया बहुल अर्धसैनिक बल का समर्थन किया था जिसने इस्लामिक स्टेट को हराने में सहायता की। हालांकि, अमेरिका का कहना है कि कुद्स बल ने उन संगठनों को धन, प्रशिक्षण, हथियार और उपकरण प्रदान करके एक व्यापक भूमिका निभाई है जिन्हें वाशिंगटन ने मध्य-पूर्व में आतंकवादी समूह घोषित कर रखा है। इनमें लेबनान का हिज्बुल्लाह आंदोलन और फिलस्तीनी इस्लामिक जिहाद शामिल हैं। 

आर्थिक समस्याओं तथा प्रतिबंधों के चलते ईरान में हथियारों का आयात क्षेत्र के अन्य देशों की तुलना में अपेक्षाकृत कम है। अधिकांश हथियार वह रूस से आयात करता है और बाकी चीन से परंतु मिसाइलों की बात करें तो ये उसकी सैन्य क्षमता का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं जो मध्य-पूर्व में सबसे अधिक हैं। इसमें मुख्य रूप से कम दूरी और मध्यम दूरी की मिसाइलें शामिल हैं जिससे वह सऊदी अरब और खाड़ी में कई जगहों को आसानी से निशाना बना सकता है। ईरान लम्बी दूरी तक मार करने वाली इंटर-बैलिस्टिक मिसाइलों को विकसित करने के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का परीक्षण भी करता रहा है। दूसरी ओर प्रतिबंधों के बावजूद ईरान ड्रोन क्षमताओं को विकसित करने में भी सक्षम रहा है। आई.एस. के विरुद्ध उसने ड्रोन्स का खूब इस्तेमाल किया था और गत वर्ष ड्रोन और मिसाइल हमलों से सऊदी अरब की दो प्रमुख तेल सुविधाओं को नुक्सान पहुंचाने का आरोप अमेरिका और सऊदी अरब ने उस पर लगाया था। 

आज कई देशों ने साइबर अटैक (इंटरनैट हैकिंग हमले) क्षमताएं भी विकसित की हैं और ईरान ने भी इस मामले में काफी तरक्की की है। माना जाता है कि रेवोल्यूशनरी गार्ड्स की अपनी साइबर कमान है और वह वाणिज्यिक तथा सैन्य जासूसी पर भी काम कर रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार ईरान दुनिया भर में एयरोस्पेस, डिफैंस, एनर्जी, नैचुरल रिसॉर्सेज, टैलीकम्युनिकेशन्स कम्पनियों को इंटरनैट पर निशाना बना चुका है। ऐसे में ईरान का चुप बैठना मुश्किल है लेकिन वह अमरीका पर सीधा हमला भी नहीं कर पाएगा परंतु वह ईराक में अमरीका के सैन्य ठिकानों पर ड्रोन से अथवा साईबर हमला कर सकता है। 


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