अधिकारियों और ठेकेदारों की मिलीभगत से भारतीय रेल पुलों की हालत खस्ता

punjabkesari.in Sunday, Feb 11, 2018 - 02:54 AM (IST)

देश में पुराने और जर्जर पुलों से गुजरने वाली बसों व रेलगाडिय़ों के दुर्घटनाग्रस्त होने से बड़ी संख्या में लोग मारे जाते हैं। पुलों की इस दुर्दशा के संबंध में मार्च, 2016 में पुलों की मुरम्मत के लिए शुरू किए गए 50,000 करोड़ रुपए वाले ‘सेतु भारतम कार्यक्रम’ में भाषण देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि: 

‘‘हमारी सरकार इतनी बड़ी है लेकिन किसी को भी यह मालूम नहीं है कि देश में कितने पुल हैं। हमने अब तक इस तरह की बातों को कोई महत्व ही नहीं दिया था लेकिन अब हम इस संबंध में पुलों का विवरण तैयार करवा रहे हैं।’’ यहां उल्लेखनीय है कि अंग्रेजों के जमाने में बनाए गए कुछ रेलवे पुल आज भी देश की स्वतंत्रता के बाद बनाए गए अनेक पुलों से बेहतर हालत में हैं। शुक्रवार को संसद में पेश की गई एक संसदीय समिति की रिपोर्ट में उक्त रहस्योद्घाटन करते हुए स्वतंत्रता के बाद के दौर में निर्मित रेलवे पुलों की घटिया क्वालिटी के लिए रेलवे के अधिकारियों और ठेकेदारों की मिलीभगत को जिम्मेदार बताया गया है। 

‘भारतीय रेलवे में पुलों की देखभाल’ शीर्षक से सार्वजनिक लेखा समिति की रिपोर्ट में भारतीय रेलवे की कड़ी आलोचना करते हुए कहा गया है कि पुलों के निर्माण कार्य को स्वीकृति प्रदान करने में विलंब करके यात्रियों के प्राणों को खतरे में डाला जा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘समिति ने इस बात को नोट किया है कि जहां अंग्रेजों के जमाने में निर्मित कुछ रेलवे पुल अभी भी अच्छी हालत में हैं, स्वतंत्रता के बाद निर्मित या पुनर्निर्मित रेलवे पुल घटिया क्वालिटी के हैं तथा उनकी बार-बार मुरम्मत करने की जरूरत पड़ती है। रेलवे अधिकारियों और ठेकेदारों के बीच मिलीभगत के परिणामस्वरूप पुलों की गुणवत्ता और उनकी आयु बुरी तरह प्रभावित हो रही है।’’ 

मल्लिकार्जुन खडग़े की अध्यक्षता वाली समिति ने इस संबंध में पुलों के निर्माण अथवा मुरम्मत के लिए ई-टैंडरिंग द्वारा निविदा किए जाने की सिफारिश की है ताकि निविदा प्रणाली को पारदर्शी बनाया जा सके और निविदा प्रक्रिया में भाग लेने के लिए बड़ी संख्या में प्रतिष्ठिïत एवं सक्षम कंस्ट्रक्शन कम्पनियों को शामिल किया जा सके। समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि पुलों की गुणवत्ता और इन्हें लम्बे समय तक सही हालत में रखने को सुनिश्चित बनाने में असफल रहने वाली कम्पनियों और ठेकेदारों को दंडित करने के अलावा भविष्य में उनके निविदा प्रक्रिया में भाग लेने पर रोक लगा दी जाए। समिति की यह रिपोर्ट रेलवे पुलों के संबंध में कैग की एक रिपोर्ट तथा रेलवे बोर्ड के सदस्यों द्वारा पेश ज्ञापनों पर आधारित है। 

रेलवे बोर्ड के अक्तूबर, 2017 के एक पत्र के अनुसार मध्य रेलवे में 61 ऐसे पुल हैं जिन्हें मुरम्मत की आवश्यकता है जबकि पूर्व मध्य रेलवे में इनकी संख्या 63 और दक्षिण मध्य रेलवे में 41 है। पश्चिम रेलवे में 42 ऐसे पुल हैं जिनका पुनॢनर्माण किया जाना वांछित है। समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह बात भी नोट की है कि एक ओर तो पुलों के निर्माण कार्य का लक्ष्य पूरा करने में असफलता के लिए धन की कमी को जिम्मेदार बताया जा रहा है परंतु दूसरी ओर एक तथ्य यह भी है कि इस मद में प्रदान किए गए 60.95 करोड़ रुपए वाॢषक बजट का इस्तेमाल ही नहीं किया गया। इस पृष्ठïभूमि में रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘समिति ने सुरक्षा के लिए प्राथमिकता के आधार पर एक समय सीमा के भीतर पुलों के पुनॢनर्माण अथवा तेजी से मुरम्मत पर निगरानी रखने के लिए एक रणनीतिक प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया है।’’ 

पुल भारतीय रेल परिवहन और यात्रियों की सुरक्षा का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, इनके निर्माण व देखभाल में व्याप्त भ्रष्टïाचार की उक्त रिपोर्ट आंखें खोलने वाली है। लिहाजा इस संबंध में अधिकारियों और ठेकेदारों के विरुद्ध त्वरित कार्रवाई करते हुए जब तक इनका नापाक गठबंधन तोड़ा नहीं जाएगा तब तक रेलवे से भ्रष्टाचार का उन्मूलन मुश्किल है तथा लोगों की जान को खतरा बना रहेगा।—विजय कुमार 


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