टोक्यो ओलंपिक में भारतीय दल  थोड़ी खुशी थोड़ी निराशा

punjabkesari.in Friday, Aug 06, 2021 - 05:39 AM (IST)

इन दिनों जापान की राजधानी टोक्यो में जारी ओलंपिक खेलों में भारत को सबसे पहले 24 जुलाई को मणिपुर की ‘सैखोम मीराबाई चानूू’ ने महिलाओं के भारोत्तोलन के 49 किलो वर्ग में रजत पदक दिलाया।
फिर 1 अगस्त को आंध्र प्रदेश की पी.वी. सिंधू ने महिला बैडमिंटन के एकल में कांस्य पदक जीता। 

अगस्त को असम की लवलीना बोर्गेहेन महिला वैल्टर वेट के सैमीफाइनल में हारने के बाद फाइनल में जाने का मौका चूक गई तथा तीसरे नंबर पर रह जाने के कारण उसे कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा। हालांकि हाकी के महिला और पुरुष दोनों ही वर्गों में देश को आशा थी परंतु भारत की महिला हाकी टीम 4 अगस्त को दुनिया की दूसरे नंबर की टीम अर्जेंटीना से सैमीफाइनल में 2-1 से हार गई। अब कांस्य पदक के लिए 6 अगस्त को इसका मुकाबला ग्रेट ब्रिटेन से होगा। 5 अगस्त के दिन भारतीय खिलाडिय़ों से खेल प्रेमियों को बहुत आशा थी परंतु उन्हें कुछ निराशा हुई। सबसे पहले सुबह पुरुषों की हाकी टीम सुखद समाचार लेकर आई जब कांस्य पदक के लिए हुए मुकाबले में हमारे खिलाडिय़ों ने जर्मनी को 4 के मुकाबले 5 गोल से हरा दिया। 

यह विजय इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारतीय खिलाडिय़ों ने 41 वर्ष बाद अपने देश के लिए हाकी में कोई पदक जीता है। इससे पूर्व भारत ने 1980 के मास्को ओलंपिक्स में हाकी में स्वर्ण पदक जीता था।
यही नहीं, 5 अगस्त को ही ‘57 किलो भार वर्ग के कुश्ती’ के फाइनल में भारतीय पहलवान रवि दहिया से देश को स्वर्ण पदक की प्रबल आशा थी परंतु हार जाने के कारण उसे रजत पदक से ही संतोष करना पड़ा।
और इसी दिन भारत के दीपक पुनिया ‘86 किलो फ्री स्टाइल कुश्ती’ के कांस्य पदक के लिए हुए मुकाबले में हार कर पदक से वंचित रह गए। 

हालांकि अन्य क्षेत्रों में हमने तरक्की की है परंतु अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में हम अभी तक कोई खास प्रदर्शन नहीं कर पाए  जिसका सबसे बड़ा कारण खेलों के लिए सरकार द्वारा दिया जाने वाला बजट है। 138 करोड़ की आबादी वाले देश में 2021 के बजट में खेलों के लिए मात्र 500 करोड़ रुपए ही दिए गए। इतने कम बजट में न तो स्टेडियम बन सकते हैं और न ही खिलाडिय़ों को डाइट, अच्छे कोच और अन्य सुविधाएं मिल सकती हैं।

खेल तंत्र पर अधिकांशत: ऐसे लोगों का नियंत्रण ही रहा है जिनका क्रियात्मक रूप से खेलों से कोई नाता ही नहीं रहा। खेल संगठनों मेें भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार और निहित स्वार्थों ने भी हमारे खेलों को हानि पहुंचाई है। जिले से लेकर राज्य और राष्ट्रीय स्तर तक खेल संघों की निष्क्रियता, प्रतियोगिताओं, फंड, शिक्षा संस्थानों के बुनियादी ढांचे और खेल के मैदानों व अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सुविधाओं के अभाव, छोटी से बड़ी स्पर्धाओं के लिए खिलाडिय़ों के चयन में पक्षपात और जातिवाद आदि भी खेलों को क्षति पहुंचा रहे हैं। 

अंतिम समय पर तैयारी शुरू करने आदि से भी हमारे खिलाड़ी अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते। इन्हें खेलों में प्राप्त अंक उनके सर्टीफिकेटों में नहीं जोड़े जाते और खेलों में कोई भविष्य दिखाई न देने के कारण भी युवक खेलों से दूर जा रहे हैं। अत: यदि सरकार खेलों को वास्तव में बढ़ावा देना चाहती है, ताकि अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हम अच्छा प्रदर्शन कर सकें तो इसके लिए जरूरी है कि स्पोर्ट्स कॉलेजों में पढ़ाई के लिए युवाओं को ब्याज रहित ऋण दिए जाएं, अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में विजेता खिलाडिय़ों को जीवन भर के लिए आयकर से छूट व अन्य सुविधाएं दी जाएं। 

इस लिहाज से बेशक अन्य देशों के मुकाबले में भारत की ये उपलब्धियां कम लगती हैं परंतु छोटे-छोटे कदमों से ही ल बी दूरी तय की जाती है, जो इस ओलंपिक में उनके जुझारू प्रदर्शनों से स्पष्ट है। इस बीच इन विजयों से देश में खुशी और जश्न का माहौल है और विजेताओं के लिए पुरस्कारों की घोषणाएं की जा रही हैं। अपने खिलाडिय़ों की सफलता से उत्साहित हम उन्हें बधाई देते हैं और आशा करते हैं कि आने वाले वर्षों में इसमें सुधार होगा तथा भारतीय खिलाड़ी सफलता के शिखरों को छुएंगे।—विजय कुमार


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