श्रीलंका से सम्बन्ध बनाने के लिए भारत के प्रयास

punjabkesari.in Monday, Oct 04, 2021 - 03:03 AM (IST)

‘दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन’ (सार्क) अपनी स्थापना के 36 वर्षों के बाद भी आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष, संगठन के सदस्यों के बीच  सीमा एवं अन्य सम्बन्धित विवादों का निपटारा कर परस्पर सम्पर्क और सहमति को बढ़ावा देने के अपने उद्देश्यों में सफल नहीं हो सका है तथा लगभग एक निष्क्रिय संगठन बन कर रह गया है। 2014 के बाद इसकी कोई बैठक ही नहीं Þई है। अब जबकि पाकिस्तान और चीन की आपसी नजदीकियां बढ़ी हैं, भारत के लिए पड़ोसी देशों से सम्पर्क साधना पहले से कहीं अधिक आवश्यक हो गया है। 

हाल के वर्षों में यदि भारत और श्रीलंका के सम्बन्धों की बात की जाए तो इनमें खटास आ चुकी थी जिसकी प्रमुख वजह चीन की ओर से श्रीलंका की आर्थिक सहायता तथा वहां इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करना है। कुछ महीने पहले चीन द्वारा तैयार किए जाने वाले विवादास्पद ‘स्पैशल इकोनॉमिक जोन प्रोजैक्ट’ यानी ‘कोलम्बो पोर्ट सिटी प्रोजैक्ट’ को श्रीलंकाई संसद द्वारा हरी झंडी दिखाने के बाद से भारत सरकार के लिए यह बात साफ हो गई थी कि अब श्रीलंका पूरी तरह चीन के पक्ष में झुकने लगा है, चाहे इसके लिए उसे भारत के साथ संतुलन कायम रखने की नीति से भी पीछे क्यों न हटना पड़े। इस प्रोजैक्ट को विपक्षी दलों के विरोध के बावजूद पास किया गया जिन्हें लगता है कि कोलम्बो बंदरगाह श्रीलंका में चीन की कॉलोनी बन सकती है। चिंता इसलिए भी अधिक है क्योंकि इस बंदरगाह को अनेक विशेष अधिकार दिए गए हैं जिससे इस पर म्युनिसिपैलिटी के नियम भी लागू नहीं होंगे। 

इससे पहले चीन की मदद से विकसित हम्बनटोटा बंदरगाह को लेकर जो कुछ हो रहा है उससे ङ्क्षचता दोगुनी हो चुकी है। हम्बनटोटा को श्रीलंका अब चीन को 99 साल की लीज पर देने की सोच रहा है। स्पष्ट है कि चीन की श्रीलंका नीति पैसे के बल पर उसे अपने अधिकार क्षेत्र में लाने की है। अत: चीन की ओर श्रीलंका के स्पष्ट झुकाव को देखते हुए भारत सरकार ने भी उसे लेकर अपनी रणनीति में कुछ बदलाव करने का मन बना लिया है। कुछ समय पूर्व जब कोलम्बो बंदरगाह में ही ईस्ट कंटेनर टर्मिनल विकसित करने का त्रिपक्षीय समझौता भारत-जापान-श्रीलंका के बीच नहीं हो सका था तो उससे भारत सरकार बेहद निराश थी लेकिन अब वैस्टर्न कंटेनर टर्मिनल के निर्माण का ठेका अडाणी समूह को मिला है। 

70 करोड़ डॉलर के इस सौदे को एक ‘उपयोगी कदम’ के तौर पर देखा जा रहा है। वैस्टर्न कंटेनर टर्मिनल समझौते में भारत सरकार सीधे तौर पर शामिल नहीं है लेकिन एक भारतीय कम्पनी की उस महत्वपूर्ण रणनीतिक बंदरगाह पर मौजूदगी रहने वाली है जहां चीन कई बड़ी परियोजनाओं में पैसा लगा रहा है।  

यह एक महत्वपूर्ण कदम है जो कि कोलम्बो बंदरगाह पर भारत की मौजूदगी के लिए जरूरी है। 1987 के द्विपक्षीय समझौते के तहत ‘भारत के हितों को नुक्सान पहुंचाकर’ श्रीलंका किसी भी देश को सैन्य इस्तेमाल के लिए अपनी बंदरगाह नहीं दे सकता। वैस्टर्न कंटेनर टर्मिनल समझौते की घोषणा विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला के श्रीलंका दौरे से पहले हुई है। श्रीलंका के 4 दिवसीय दौरे के दौरान शृंगला का उद्देश्य राजनीतिक स्तर पर श्रीलंका को फिर से साथ लेकर चलने का है। बंगलादेश तथा मालदीव को चीन के प्रभाव में जाने से रोकने में कम सफल रहे भारत के लिए श्रीलंका में रणनीति बदलने की जरूरत हो सकती है क्योंकि वह आॢथक रूप से चीन जितना मजबूत नहीं है। 

श्रीलंका से नजदीकी बढ़ाने के अभियान के अंतर्गत ही भारत और श्रीलंका सोमवार से 12 दिनों तक चलने वाला बड़ा सैन्य अभ्यास शुरू करेंगे जिसमें आतंकवाद रोधी सहयोग बढ़ाने पर ध्यान दिया जाएगा। ‘मित्र शक्ति’ अभ्यास के आठवें संस्करण का आयोजन श्रीलंका के ‘अम्पारा’ स्थित कॉम्बैट ट्रेङ्क्षनग स्कूल में 4 से 15 अक्तूबर तक किया जाएगा। अभ्यास का उद्देश्य दोनों देशों की सेनाओं के बीच करीबी संबंध बढ़ाना तथा चरमपंथ और आतंकवाद रोधी अभियानों में बेहतर तालमेल स्थापित करना है। इसमें भारतीय सेना के 120 जवानों की सशस्त्र टुकड़ी हिस्सा ले रही है।

भारतीय रक्षा मंत्रालय के अनुसार दोनों दक्षिण एशियाई देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने में यह अभ्यास अहम साबित होगा और दोनों सेनाओं के बीच जमीनी स्तर पर तालमेल और सहयोग लाने में मुख्य स्रोत के तौर पर काम करेगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत के प्रयास कितने सफल होते हैं। लेकिन महत्वपूर्ण मुद्दा अब भी श्रीलंका की आर्थिक आजादी से जुड़ा है। क्या भारत उसे चीनी कर्जों से बचा पाएगा या श्रीलंका आर्थिक तौर से चीन के शिकंजे में और फंसता चला जाएगा?आखिरकार जिसकी अर्थव्यवस्था उसी का राजनीतिक नियंत्रण।


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