कोरोना के खिलाफ डटे स्वास्थ्य कर्मियों में बढ़ रहा इंफैक्शन

punjabkesari.in Monday, Apr 13, 2020 - 01:39 AM (IST)

कोरोना वायरस की लड़ाई में सबसे आगे डॉक्टर और स्वास्थ्य कर्मी खड़े हैं जो संक्रमण के खतरे के बीच दिन-रात रोगियों का उपचार करने में डटे हैं। दुनिया भर में कितने ही स्वास्थ्य कर्मचारियों की जान कोरोना संक्रमण से जा चुकी है, फिर भी वे दिलेरी से इसका सामना कर रहे हैं। कितने ही डॉक्टर कोरोना से संक्रमित होने के बाद ठीक होते ही फिर से अपनी ड्यूटी ज्वाइन करके मोर्चा सम्भाल रहे हैं। 

एक प्रेरणादायक उदाहरण फ्रांस की राजधानी पैरिस की डॉक्टर ऑरेली गोऊएल का है। 4 और 6 साल के बच्चों की यह 38 वर्षीय मां कहती हैं, ‘‘यह देखते हुए कि अस्पतालों को कितनी मदद की जरूरत है, बीमारी के दौरान घर पर रहना काफी निराशाजनक था। हमें ऐसे ही पलों के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। आज दुनिया को हमारी जरूरत है।’’ भारत में भी डॉक्टर कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए अस्पतालों में सबसे आगे मोर्चा सम्भाले हुए हैं। हालांकि, सर्वाधिक चिंता इस बात को लेकर पैदा हो गई है कि देश भर में कोरोना वायरस से संक्रमित स्वास्थ्य कर्मचारियों की कुल संख्या तेजी से बढ़ी है। 

यह संख्या 200 को पार कर चुकी है और अब तक 12 से अधिक निजी अस्पतालों को सील कर दिया गया है। पिछले दो सप्ताह के दौरान मुम्बई में ही कम से कम 90 डॉक्टरों और चिकित्साकर्मियों के कोरोना वायरस टैस्ट पॉजीटिव आए जिसने इस भयानक महामारी से निपटने के लिए अस्पतालों से लेकर राज्य सरकारों की तैयारियों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। कोरोना संक्रमण के चलते ही मुंबई में 1,500 बैड वाले 8 निजी सुपर स्पैशलिटी अस्पतालों को सील कर दिया गया है। 

मुंबई में सील किए गए अस्पतालों और क्लीनिकों की सूची में सैफी, जसलोक, ब्रीच कैंडी तथा वॉकहार्ट जैसे प्रमुख मैडीकल सैंटर शामिल हैं। शुक्रवार को एक और अस्पताल दादर स्थित सुश्रूषा अस्पताल को इसकी दो नर्सों के कोरोना पॉजीटिव पाए जाने के बाद सील कर दिया गया। 50 डॉक्टरों सहित चिकित्सा स्टाफ के अलावा इन अस्पतालों में अन्य 200 स्वास्थ्य कर्मचारियों को 14 दिनों के लिए क्वारंटाइन कर दिया गया है। 

अधिकारियों के अनुसार अन्य रोगियों की सुरक्षा के लिए अस्पताल को 14 दिनों के लिए बंद रखना आवश्यक है परंतु डाक्टरों का कहना है कि ऐसी महामारी के दौरान 14 दिनों के लिए अस्पतालों को सील करना अच्छा विचार नहीं है।‘इंडियन एसोसिएशन ऑफ गैस्ट्रो-इंटेस्टाइनल एंडो-सर्जन्स’ के अध्यक्ष डा. रामेन गोयल के अनुसार संक्रमित कर्मचारियों को अलग रखने के लिए एक विशेष योजना और 14 दिनों या उससे अधिक समय तक बंद रखने की बजाय 24-48 घंटों के भीतर अस्पतालों को खोलने के लिए परिसर की सफाई की योजना बनाई जानी चाहिए। राजस्थान में इस घातक वायरस से संक्रमित स्वास्थ्य कर्मियों की कुल संख्या बढ़कर लगभग 50 हो चुकी है जिनमें से कुछ ठीक हो चुके हैं। इससे पहले भीलवाड़ा के एक निजी अस्पताल में 3 डॉक्टरों और 14 हैल्थ केयर स्टाफ के पॉजीटिव पाए जाने पर उसे सील कर दिया गया था। 

इसी प्रकार हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल जैसे अन्य राज्यों में भी स्वास्थ्य कर्मचारी कोरोना पॉजीटिव मिले हैं और सैनिटाइजेशन के लिए अस्पतालों को सील किया गया है। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश सहित लगभग सभी राज्यों में स्वास्थ्य कर्मचारी संघों ने अपर्याप्त मास्क, दस्ताने और व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों (पी.पी.ई.) की शिकायत की है। इस समय स्वास्थ्य कर्मचारियों के लिए ये चीजें जीवनरक्षक हैं परंतु अभी तक इनकी पूरी उपलब्धता सुनिश्चित नहीं करवा पाने से राज्य सरकारों की घोर लापरवाही का पता चलता है। 

एक नए अध्ययन के अनुसार वायरस पीड़ित, यानी रोगी से 13 फुट दूर तक फैल सकता है, जो सरकार के सोशल डिस्टैंसिंग नियमों से लगभग दोगुनी दूरी है। चीनी वैज्ञानिकों ने इंटैंसिव केयर यूनिट तथा जनरल कोविड-19 वार्ड दोनों से जमीनी तथा हवा के सैम्पलों की जांच की और पाया कि द्रवीय प्रेषण, अत्यंत छोटे कण, कई घंटों तक हवा में मौजूद रहते हैं और जब वे कचरे के डिब्बों, बिस्तर, रेङ्क्षलग, दरवाजों की कुंडियों, कर्मचारियों के जूतों पर जा टिकते हैं तो वे वहां पर भी घंटों तक रहते हैं। तो डाक्टरों को पी.पी.ई. तथा मास्क उपलब्ध करवाने के लिए हमारी सरकारें क्या कर रही हैं? हम सुन रहे हैं कि ये बनाए जा रहे हैं मगर कब  ये डाक्टरों तथा स्टाफ को दिए जाएंगे? ये तो ऐसे है जैसे उन्हें बिना बंदूकों के लडऩे को कहा जा रहा है। 

बड़े दुख की बात है कि त्रिपुरा सरकार ने सरकारी अस्पतालों की कुछ नर्सों द्वारा कोरोना वायरस से निपटने के लिए मास्क तथा अन्य सुरक्षा उपकरणों की कमी बारे शिकायत करने के बाद आवश्यक सेवाएं बनाए रखने का कानून (एस्मा) लागू कर दिया। इसके अंतर्गत कर्मचारियों द्वारा काम करने से इंकार करने पर उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है या जैसे कि त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देव ने चेतावनी दी कि ‘‘उन नर्सों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी जिन्होंने मास्क तथा अन्य सुरक्षा उपकरणों की कमी बारे मीडिया को शिकायत की है।’’ 

मध्य प्रदेश के बाद ऐसा करने वाला त्रिपुरा दूसरा राज्य है। हम सबने डाक्टरों को अपनी गाडिय़ों में सोते देखा है ताकि वे घर न जाकर अपने परिवार को संक्रमण से बचा सकें। अब कुछ अस्पतालों के डाक्टरों को कमरे उपलब्ध करवाए हैं परंतु नर्सों तथा अन्य स्वास्थ्य कर्मचारियों के रहने तथा खाने तक का पूरा प्रबंध नहीं है। कई सप्ताह की मांग के बाद अंतत: कुछ को अलग से आवास प्रदान कर दिए गए हैं। अब 72 कमरों में 144 नर्सें रह सकती हैं। इसका मतलब है कि फिलहाल एक-एक कमरे में दो-दो नर्सों को ठहरना होगा। हालांकि उन्हें अन्य 160 कमरों की जल्द व्यवस्था का आश्वासन दिया गया है। 

एक अन्य चिंताजनक बात यह है कि सामान्य सफाई करने के साथ-साथ विषैले मैडीकल कचरे को उठाने वाले अधिकांश कर्मचारी अपनी जान को जोखिम में डाल कर बिना सुरक्षा कवचों के ही यह काम कर रहे हैं जो सरासर खतरनाक है। अत: सरकार को इन्हें सुरक्षा उपकरणों से लैस करने के बारे में तत्काल ध्यान देना चाहिए क्योंकि इनके परिजनों और देश के लिए इनका जीवन भी उतना ही अनमोल है जितना अन्यों का!


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