शिक्षा में अब छिपाने का नहीं समझाने का समय है

punjabkesari.in Monday, May 08, 2023 - 04:17 AM (IST)

1961 में भारत सरकार ने ‘नैशनल काऊंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग’ (एन.सी.ई. आर.टी.) का गठन इसलिए किया था ताकि पाठ्य पुस्तकों में नवीनतम शोध से प्राप्त जानकारी को शामिल किया जा सके न कि बिना वजह शामिल जानकारी को काटा जाए परंतु पिछले कुछ समय के दौरान जो इतिहास और साहित्य के साथ हुआ विभिन्न कक्षाओं की पाठ्य पुस्तकों से अनेक अध्याय हटा दिए गए। ऐसा भी क्या अब विज्ञान के साथ होगा?

इसी कड़ी में एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा दसवीं कक्षा तक के सिलेबस से महान वैज्ञानिक चाल्र्स डार्विन का ‘विकासवाद का सिद्धांत’ (थ्योरी ऑफ इवोल्यूशन) हटा दिए जाने पर 1800 विद्वानों ने हैरानी जताई है जबकि केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री डा. सुभाष सरकार ने कहा है कि इसे एन.सी.ई.आर.टी. के करिकुलम से हटाने बारे भ्रामक प्रचार हो रहा है। डा. सुभाष सरकार का कहना है कि कोविड-19 के कारण छात्रों पर पढ़ाई का दबाव कम करने के लिए कोर्स में तर्कसंगत बदलाव किए गए हैं। अगर दसवीं तक का कोई छात्र इसे पढऩा चाहे तो यह सब वैबसाइटों पर उपलब्ध है। वहीं 12वीं कक्षा के सिलेबस में पहले की तरह यह मौजूद है।

विद्वानों की हैरानी का कारण यह है कि डार्विन का सिद्धांत छात्रों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। दसवीं के बाद जो छात्र विज्ञान का विषय छोड़कर आर्टस या कॉमर्स का विषय ले लेगा तो वह इससे वंचित रह जाएगा क्योंकि वह विषय तो अब 12वीं कक्षा में पढ़ाया जा रहा है। दूसरी बात यह है कि आखिर सिलेबस से इसे निकाला ही क्यों जा रहा है? यह सिद्धांत मानव के विकास की प्रक्रिया बताता है जो बायोलॉजी (जीव विज्ञान) का विषय है।

इसी कड़ी में अगला प्रश्र यह है कि क्या अब इसके बाद हम बायोलॉजी के सैल फंक्शन, फिजिक्स (भौतिक शास्त्र) के थर्मोडायनैमिक्स, ग्रेविटेशन,इलैक्ट्रोमैग्रेटिक रेडिएशन, कैमिस्ट्री (रसायन शास्त्र) और मैथ्स (गणित) के पाइथागोरस थ्योरम आदि को भी हटा देंगे? इस विवाद के बीच एक नया विचार सामने आया है। विश्व में तेजी से आ रही आर्टिफिशियल इंटैलीजैंस (कृत्रिम बुद्धिमता) के दृष्टिïगत भविष्य की चुनौतियों और नौकरियों की उपलब्धता को देखते हुए समस्त विश्व को अपनी शिक्षा प्रणाली बदलनी पड़ेगी क्योंकि भविष्य में केवल एनालिटीकल अर्थात विश्लेषणात्मक दिमाग वाले छात्रों को ही नौकरी मिलेगी।

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की हालिया रिपोर्ट को देखते हुए बच्चों में आलोचनात्मक व विश्लेषणात्मक विचार कौशल पैदा करने के लिए विज्ञान और गणित अति आवश्यक हैं। बच्चों में जानकारी बढ़ाना, प्राप्त जानकारी के बारे में प्रश्न पूछने के लिए बच्चे को प्रोत्साहित करना, खेलों के माध्यम से टीमवर्क और नेतृत्व कौशल, जिम्मेदारी का अहसास, क्या सही है और क्या गलत है, का निर्णय लेना आदि आलोचनात्मक तथा विश्लेषणात्मक विचार कौशल को बढ़ाने के विभिन्न तरीके हैं।

डाटा आसानी से उपलब्ध होने से अब रट्टे मारने का जमाना बीत गया है। बच्चों से यदि चीजों को छुपाया जाएगा तो वे सही और गलत के बीच निर्णय नहीं ले पाएंगे। एन.सी.ई.आर.टी. ने यह सोच कर इतिहास की पुस्तकों में से अनेक जानकारियों के अंश उड़ा दिए कि इससे लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा या पाठ्य पुस्तकों में अपनी मनचाही सामग्री ही दिखाई जाए परंतु यह शिक्षा प्रदान करने का तरीका नहीं है।

आवश्यकता इस बात की है कि बच्चों को सब चीजों का ज्ञान दिया जाए ताकि वे समझ सकें कि सही क्या और गलत क्या है! उदाहरणस्वरूप 15वीं शताब्दी में यह माना जाता था कि पृथ्वी समतल है और सूर्य इसके इर्द-गिर्द घूमता है परंतु कल्पना करें कि यदि हम उसी तथ्य पर अटके रहते तथा लोगों का खोजी दिमाग न होता तो क्या किसी को पता चलता कि सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा नहीं करता बल्कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है।

आज हम एक ऐसे पड़ाव पर पहुंच चुके हैं जहां ज्ञान को न ही सीमित किया जा सकता है और न ही छिपाया जा सकता है। इसलिए बेहतर यही है कि बच्चों को क्लास रूम में ही पढ़ा कर यह फैसला करने दिया जाए कि सही क्या है और गलत क्या! 


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