‘लोकतंत्र के महत्वपूर्ण स्तम्भ’‘न्यायपालिका के सही फैसले और टिप्पणियां’

punjabkesari.in Saturday, Oct 14, 2023 - 05:14 AM (IST)

आज न्यायपालिका जनहित के महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकारों को झिंझोडऩे के साथ-साथ शिक्षाप्रद टिप्पणियां कर रही है। इसी संदर्भ में सुप्रीमकोर्ट व अन्य न्यायालयों के चंद ताजा सही फैसले व टिप्पणियां निम्न हैं : 

* 12 अक्तूबर को दिल्ली हाईकोर्ट के जज न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति गीता बंसल कृष्णा ने एक केस की सुनवाई करते हुए कहा : ‘‘उचित परिस्थितियों में अलग निवास के लिए पत्नी के दावे को पति के प्रति क्रूरता का कार्य नहीं माना जा सकता परंतु यदि पति ने संयुक्त परिवार में अपने माता-पिता के साथ रहना चुना है तो उसे अपनी शादी के पहले दिन से ही केवल अपनी पत्नी की इच्छा पर अलग होने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। पति-पत्नी दोनों की अपने माता-पिता तथा एक-दूसरे के प्रति समान जिम्मेदारियां हैं।’’ 

* 12 अक्तूबर को ही सुप्रीमकोर्ट के प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली न्यायमूॢत जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा पर आधारित पीठ ने 2 बच्चों की मां को 26 सप्ताह का गर्भ समाप्त करने की अनुमति देने वाले अपने आदेश को वापस लेने की केंद्र की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, ‘‘हम एक अजन्मे बच्चे, जो ‘जीवित और सामान्य रूप से विकसित भ्रूण’ है, को नहीं मार सकते। उसके अधिकारों को उसकी मां के निर्णय लेने की स्वायत्तता के अधिकार के साथ संतुलित करना होगा।’’ 
* 10 अक्तूबर को पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने नशे के मामलों में पुलिस अधिकारियों के गवाही के लिए पेश न होने पर कहा कि ‘‘यह आरोपियों तथा पुलिस अधिकारियों के बीच अपवित्र गठबंधन लगता है। इसलिए अब सरकार को जागने और पुलिस को ठीक करने की आवश्यकता है।’’
‘‘लगातार ऐसे मामले बढ़ रहे हैं जिनमें सरकारी गवाहों के पेश न होने से मुकद्दमे की सुनवाई लटक जाती है व नशा तस्करों को जमानत मिल जाती है।’’ 

* 7 अक्तूबर को सुप्रीमकोर्ट के जज न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला तथा न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा पर आधारित पीठ ने एक व्यक्ति और उसकी मां द्वारा उसकी पत्नी के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार करने के परिणामस्वरूप हुई मौत पर सजा के विरुद्ध दायर अपील खारिज करते हुए कहा :
‘‘महिलाओं के विरुद्ध अपराधों से जुड़े मामलों में अदालतों से संवेदनशील होने के साथ-साथ आशा की जाती है कि अदालतें अपराधियों को तकनीकी कारणों, अधूरी जांच या सबूतों में महत्वहीन कमियों के कारण बच निकलने की अनुमति नहीं देंगी। ऐसा होने पर पीड़ित पूरी तरह हतोत्साहित हो जाएंगे कि उनके अपराधियों को सजा नहीं मिलेगी।’’

* 6 अक्तूबर को पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने 3 वर्ष से ट्रायल के लटकने और 21 में से केवल 7 गवाहियां होने को आरोपी के शीघ्र सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए उसे जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया। 
* 3 अक्तूबर को एक असाधारण मामले में केरल उच्च न्यायालय के जज न्यायमूर्ति बी. कुरियन थॉमस ने तीन वर्ष की एक बच्ची का नामकरण किया क्योंकि उसके नाम पर उसके माता-पिता, जो अब अलग हो चुके हैं, के बीच चल रहे विवाद के कारण सहमति नहीं बन पा रही थी। 

इस संबंध में जारी एक आदेश में उन्होंने कहा, ‘‘बच्चे के माता-पिता के बीच जारी झगड़ों का बच्चों के हितों पर प्रभाव नहीं पडऩा चाहिए। बच्चे का नाम न रखना उसके कल्याण या सर्वोत्तम हित के अनुकूल नहीं है लिहाजा यह अदालत आदेश देती है कि बच्ची का नाम मां की पसंद के अनुसार ‘पुण्य’ रखा जाए और इसमें सरनेम पिता का जोड़ा जाए।’’  इस प्रकार अदालत ने बच्ची के माता-पिता दोनों को ही खुश कर दिया। दाम्पत्य जीवन और माता-पिता के प्रति जिम्मेदारी, भू्रण हत्या रोकने, पुलिस की ज्यादतियों, गवाहों द्वारा अदालती कार्यवाही में बाधा डालने, महिलाओं के विरुद्ध अपराधों आदि पर न्यायपालिका की उक्त टिप्पणियां न सिर्फ जनहितकारी बल्कि शिक्षाप्रद भी हैं।—विजय कुमार


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