कितनी उचित है विमान में मोबाइल और इंटरनैट की सुविधा

punjabkesari.in Monday, Jan 22, 2018 - 03:08 AM (IST)

भारत ही नहीं, अधिकतर देशों में किसी भी एयरलाइन्स के विमान में सफर करने वाले यात्रियों को उड़ान से ठीक पहले यह निर्देश सुनाई देता है  ‘अपने मोबाइल फोन तथा पोर्टेबल इलैक्ट्रोनिक उपकरणों को कृपया फ्लाइट मोड पर अथवा स्विच ऑफ कर लें।’ 

अधिकतर लोग फ्लाइट अटैंडैंट के इस आग्रह का पालन करते हैं क्योंकि आम धारणा है कि उड़ान के दौरान हमें मोबाइल फोन्स को बंद रखना चाहिए क्योंकि इनका सिग्नल वायुयान के नेवीगेशन उपकरणों में अवरोध पैदा कर सकता है। इस प्रश्न पर फिर से चर्चा इसलिए भी जरूरी हो गई है क्योंकि जल्द ही टैलीकॉम रैगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राई) देश तथा देश से होकर गुजरने वाले हवाई यात्रियों को विमानों में इंटरनैट तथा मोबाइल फोन सेवाएं प्रदान करने की इजाजत दे सकती है। ट्राई अधिकारियों के अनुसार, ‘‘हमने मोबाइल तथा इंटरनैट कम्युनिकेशन दोनों को स्वीकृति दे दी है। अब यह विमानन कम्पनियों पर है कि वे अपने यात्रियों को कौन-सी सेवाएं देना चाहते हैं।’’ 

नवम्बर 2009 में एयर फ्रांस ऐसी सेवाएं देने वाली पहली विमानन कम्पनी बन गई थी। इसके बाद दुनिया भर में अधिकतर कम्पनियां विशेषकर अपनी लम्बी उड़ानों के दौरान यात्रियों को वाई-फाई की सुविधा दे रही हैं परंतु  मोबाइल फोन कॉल्स की सुविधा को आमतौर पर ‘परेशानी’ के रूप में देखा जाता है। 2013 से अमेरिका में इसकी इजाजत है परंतु वहां कम ही विमानन कम्पनियों ने अपनी उड़ानों के दौरान इसकी इजाजत दी है। मोबाइल फोन उपभोक्ताओं की सबसे ज्यादा संख्या वाले चीन तथा भारत इसकी इजाजत देने को तैयार तो हैं परंतु यह कदम कहीं सुरक्षा के लिए खतरा अथवा सामाजिक असुविधा की वजह तो नहीं बन जाएगा? 

एक अमेरिकी पायलट तथा ‘कॉकपिट कांफिडैंशियल’ नामक पुस्तक के लेखक पैट्रिक स्मिथ कहते हैं कि मोबाइल फोन तथा इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों को स्विच ऑफ करना महज सावधानी के तौर पर अपनाया जाने वाला नियम है। अरबों रुपए वाले विमान पर कुछ हजार रुपए के मोबाइल फोन का असर नहीं होगा। विमान हाई-टैक होते हैं और उनमें लगे टैलीकॉम तथा नेवीगेशन उपकरणों को मोबाइल जैसी आम चीजों से पहुंच सकने वाली सम्भावित बाधा से विशेष सुरक्षा प्रदान की जाती है। हालांकि, पैट्रिक यह चेतावनी जरूर देते हैं कि इस बात का भी महत्व है कि किसी गैजेट को कब तथा कैसे इस्तेमाल किया जाता है। उदाहरण के लिए एक पुराना लैपटॉप हानिकारक ऊर्जा पैदा कर सकता है। ऐसे में, विमान की गति में अचानक कमी आने अथवा टकराहट की स्थिति में यह तीव्र गति वाले गोले का रूप ले सकता है। 

अब तक दो गम्भीर घटनाओं का दोष मोबाइल फोन को दिया जाता है। पहली घटना वर्ष 2000 में स्विट्जरलैंड का अनसुलझा क्रॉसएयर प्लेन क्रैश है जब किसी अवैध ट्रांसमिशन की वजह से विमान का ऑटोपायलट भ्रमित हो गया था। दूसरी घटना 2003 में न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च में हुआ घातक प्लेन क्रैश है। हालांकि, इन दो घटनाओं को अपवाद भी कहा जा सकता है और उड़ान के दौरान मोबाइल फोन स्विच ऑफ करने के निर्देश के पीछे अधिकतर ‘दुर्घटना से सावधानी भली’ वाली सोच होती है। 

बेशक यह काम करने वालों के लिए वरदान होगा कि वे अपने काम और दफ्तर के सम्पर्क में रहेंगे लेकिन सामाजिक पक्ष भी समान रूप से महत्वपूर्ण है। जब तक यात्री हैड फोन लगा कर मोबाइल से गीत सुनता है, गेम खेलता है या फिल्में देखता है, तब तक तो उसके सह-यात्रियों को परेशानी नहीं परंतु 200 से 300 यात्रियों के बीच फोन पर जोर-जोर से लम्बी-लम्बी बातें करने लगे तो लम्बी उड़ान में सफर कर रहे अन्य लोग न तो शांति से सो सकेंगे, न आराम कर सकेंगे और न ही कुछ पढ़ सकेंगे। यह हालत ठीक हमारी ट्रेनों जैसी हो जाएगी जहां हमारी निजता का उल्लंघन करने वाला अनावश्यक ध्वनि प्रदूषण बड़ी चिंता का विषय बना रहता है। 

चूंकि स्मार्टफोन्स ने हमें पुराने कैमरों से आजादी दिला दी है, ऐसे में जहाज के हर कोने में सैल्फी तथा फोटो लेने की तानाशाही से भी सहयात्रियों के लिए परेशानी शुरू हो जाएगी। इस मामले में शायद जापानियों से सीख ली जा सकती है जहां रेल यात्रा के दौरान भी लोग फोन उठाने से गुरेज करते हैं ताकि उनके सह-यात्री परेशान न हों। 


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