टोपी, जूते, कच्छा और बनियान तक के लिए भारतीय सेना विदेशों पर निर्भर

punjabkesari.in Thursday, Nov 26, 2015 - 11:50 PM (IST)

38,000 से अधिक अधिकारियों, 11.38 लाख सैनिकों तथा 2,46,727 करोड़ रुपए वाॢषक के बजट वाली भारतीय सेना विश्व की दूसरी सबसे बड़ी सेना होने के बावजूद अनेक त्रुटियों से ग्रस्त है।  

22 दिसम्बर, 2014 को संसद की रक्षा मामलों की स्थायी समिति ने लोकसभा में पेश रिपोर्ट में टैंकों, मिसाइलों, गोला-बारूद, बुलेटप्रूफ जैकेटों व नाइट विजन उपकरणों की उपलब्धता में गंभीर त्रुटियों का उल्लेख किया था।

 
इनके अलावा हम 16000 से 22000 फुट तक की अत्यधिक ऊंचाई पर स्थित सियाचिन की पहाडिय़ों तथा सालतोरो रिज, द्रास, कारगिल जैसे शून्य से 10-60 डिग्री सैल्सियस नीचे तक तापमान वाले अति ठंडे इलाकों में तैनात जवानों के लिए विदेशों से अत्यंत ऊंचे मूल्यों पर शीतकालीन वर्दियां तक खरीद रहे हैं जिन पर प्रति जवान एक लाख रुपए के लगभग खर्च आता है। 
 
1984 में सियाचिन में पाकिस्तानी सैनिकों के हमले के बाद से वहां सैनिकों के उपयोग की बुनियादी वस्तुएं स्विट्जरलैंड, इटली, फ्रांस, नीदरलैंड, फिनलैंड तथा नार्वे आदि से आयात की जा रही हैं।
 
वहां 1984 के बाद लगभग 900 जवानों की मृत्यु हो चुकी है तथा सैनिकों को बर्फीले तूफानों आदि के चलते विभिन्न बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है। इनमें अधिक ऊंचाई पर फेफड़ों तथा दिमाग में तरल जमा होने से मौत, शीतदंश, शरीर के तापमान में अनायास भारी कमी आदि शामिल हैं।
 
कुछ इसी तरह की परिस्थितियों के दृष्टिगत ही सेना ने प्रतिरक्षा मंत्रालय से दुर्गम क्षेत्रों में तैनात 27000 से अधिक जवानों के लिए कम से कम 5 वर्षों की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए एक ही बार में विशेष वर्दियों की व्यवस्था करने के लिए कहा है। इनमें थर्मल सोल वाले विशेष जूते, जैकेट, तीन परतों वाले दस्ताने, ट्राऊजर, टोपी, थर्मल बनियान और कच्छा, पीठ पर लटकाने वाला थैला (रकसक) तथा चार परतों वाली जुराबें आदि शामिल हैं। 
 
उल्लेखनीय है कि एक आयातित जैकेट 22,444 रुपए, थर्मल बनियान 2000 रुपए, टोपी 3000, थैला 12,540, दस्ताने 16,500, ट्राऊजर 21,120 तथा जूते 11,000 रुपए में पड़ते हैं। इसके अलावा बर्फ काटने वाली कुल्हाडिय़ां, फावड़े, विशेष प्रकार के तम्बू आदि भी आयात करने पड़ रहे हैं। 
 
केंद्र में 14 मई, 2014 को सत्तारूढ़ हुई भाजपा ने अपने घोषणापत्र में लोगों को भयमुक्त वातावरण देने और कानून व्यवस्था सुधारने सहित 42 वादे किए थे लेकिन दिल्ली सहित देश में बलात्कार, लूटमार, डकैती, हिंसा और साम्प्रदायिक उपद्रव आदि पहले की तरह ही जारी हैं। वर्ष 2014 में देश में औसतन हर महीने 53 साम्प्रदायिक दंगे हुए जबकि 2015 में अभी तक इनका मासिक औसत बढ़कर 55 के आसपास पहुंच चुका है। 
 
जहां तक विदेशों से काला धन वापस लाने के लिए विशेष टास्क फोर्स बनाने, गंगा तथा अन्य नदियों की सफाई, न्यायालयों की कार्यक्षमता बढ़ाने, जेल प्रशासन के आधुनिकीकरण आदि का संबंध है ये सब अभी तक वादे ही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गत वर्ष स्वतंत्रता दिवस पर किए ‘मेक इन इंडिया’ के आह्वान का भी अभी तक कोई विशेष प्रभाव दिखाई नहीं दे रहा। 
 
उक्त तथ्यों के दृष्टिगत यह प्रश्र उठना स्वाभाविक ही है कि अंतर महाद्वीपीय प्रक्षेपास्त्र और परमाणु पनडुब्बियों जैसे उन्नत शस्त्र विकसित करने में सक्षम भारतीय प्रतिरक्षा उपकरण बनाने वाले उपक्रम सैनिकों की विशेष शीतकालीन वर्दियां आदि अब तक क्यों नहीं बना पाए? 
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सत्ता में आए हुए लगभग 18 महीने होने को आए हैं। बेशक ‘मेक इन इंडिया’ के अंतर्गत अन्य निर्माण परियोजनाओं को पूरा करने में तो अधिक समय लग सकता है, परंतु कम से कम सैनिकों की शीतकालीन आवश्यकता की कुछ वस्तुओं जैसे कि जूतों, बनियानों, जुराबों आदि का निर्माण तो अब तक भारत में शुरू कर ही देना चाहिए था, जिनके निर्माण में हम सक्षम हैं। 
 
इससे जहां विदेशों पर हमारी निर्भरता घट पाएगी वहीं हमारी मूल्यवान विदेशी मुद्रा की भी बचत होगी और हमारी सेनाओं को इन वस्तुओं के अभाव का सामना भी नहीं करना पड़ेगा।
 
 

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