भारत में तुरंत पुलिस सुधार लागू करने की जरूरत

Monday, Jun 08, 2020 - 01:06 PM (IST)

पिछले सप्ताह जहां हजारों अमरीकियों ने मिनियापोलिस में पुलिस हिरासत में जॉर्ज फ्लॉयड की मौत का विरोध जारी रखा उसी प्रकार गत शुक्रवार बफेलो में रायट कंट्रोल पुलिस द्वारा एक 70 वर्षीय वृद्ध को धक्का देकर लहूलुहान हालत में सड़क किनारे छोड़कर मार्च करती हुई पुलिस का वीडियो भी वायरल हो रहा है। इसी प्रकार 6 जून को इंडियानापोलिस में अहिंसक तरीके से विरोध कर रही सड़क किनारे खड़ी दो महिलाओं को पुलिस के लाठियों से पीटने का भी एक वीडियो सामने आया है जिससे दुनिया का ध्यान अमरीका में नस्लवाद और पुलिस क्रूरता की समस्याओं पर केंद्रित है। हजारों मील दूर, भारत में, प्रमुख सार्वजनिक हस्तियों और प्रियंका चोपड़ा जैसे बॉलीवुड सितारों ने फ्लॉयड की हत्या के तरीके पर दुख व्यक्त करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया। जॉर्ज की मौत यकीनन दुखद है और इस पर पुलिस की जांच और  पुलिस में सुधार लाने के मुद्दे पर भी वहां बहस छिड़ गई है। किसी का भी ध्यान यहां पुलिस के अत्याचारों पर नहीं है। गहन विचार करना तो दूर की बात है, किसी ने इस पर ट्वीट तक नहीं किया (जो आजकल का चलन है)। भारत में जहां भी, जब भी दंगे हुए, न तो कोई जांच का नतीजा सामने आया और न ही प्रबंधन की कोई गलती सामने आई।

25 मार्च को शुरू हुए भारत के सख्त कोरोना वायरस लॉकडाऊन के बाद के सप्ताहों में, अनेकों ऐसे समाचार सामने आए हैं जहां पुलिस ने अधिक कठोरता दिखाई है। पुणे में, यदि एक वाहन चालक को केवल इसलिए पीटा गया कि शायद उसके पास जरूरी कागजी मंज़ूरी नहीं है जबकि बाद में पता चला कि उसके पास सभी वैध कागज थे। पश्चिम बंगाल में, एक व्यक्ति को पुलिस द्वारा उस समय पीटा गया जब उसने दूध खरीदने के लिए कदम बाहर रखा। बाद में उनकी चोटों से मौत हो गई। स्थानीय गैर-लाभकारी संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश के बंद होने के पहले हफ्ते में, पुलिस ने 173 लोगों पर बुरी तरह से लाठियां बरसाईं और वे 27 लोगों की मौत के लिए कथित तौर पर जिम्मेदार थे। पूर्वी राज्य बिहार में, पुलिस ने तालाबंदी के दौरान आलू की बिक्री कर रहे एक व्यक्ति से रिश्वत मांगी। उसके इन्कार करने पर पुलिस ने उस पर गोली चला दी। हाल में दिल्ली पुलिस की गतिविधियों पर भी सवाल उठाया गया जिसने  कई छात्र संघ नेताओं और छात्रों को गिरफ्तार किया था।

भारतीय जेलों के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में 68 प्रतिशत कैदी ऐसे हैं, जिन्हें किसी अदालत ने अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया है। उनमें से अनेकों को मुकद्दमों की सुनवाई शुरू होने से पहले ही वर्षों तक इंतजार करना पड़ रहा है। पुलिस गिरफ्तारी के बाद अनेकों पर तो कोई केस या दर्ज होना तो दूर इन्वैस्टिगेशन भी नहीं हुई है। पिछले साल, संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने कहा कि वे उत्तर प्रदेश में पुलिस द्वारा असाधारण हत्याओं के बारे में बेहद चिंतित थे। हत्याओं, जिन्हें स्थानीय रूप से मुठभेड़ों के रूप में जाना जाता है, के मामले में अक्सर पुलिस आत्मरक्षा के नाम पर अपना बचाव करती है। ब्रिटिश राज में स्थानीय लोगों को अनुशासित करने के लिए  बनाए गए पुलिस नियमों को 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद भी पुलिसिंग के लिए बरकरार रखा गया। भारत में पुलिस भ्रष्टाचार के पीछे निहित कारण अधिक जटिल हैं, जिनमें धर्म, जाति और धन द्वारा निर्मित अनेकों मुद्दे शामिल हैं। इन सभी पर गहरा मनन और निवारक पग उठाने की आवश्यकता है और वह भी बिना और समय गंवाए! क्या अब ये समय भारतीय पुलिस के रिफॉर्म लागू करने का नहीं!

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