गिरना मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार का इस हमाम में हैं सभी नंगे

punjabkesari.in Saturday, Mar 21, 2020 - 01:25 AM (IST)

किसी भी सरकार के सही ढंग से चलने के लिए सत्तारूढ़ दल के सदस्यों में तालमेल होना जरूरी है। यदि ऐसा न हो तो सरकार के लिए समस्या खड़ी हो जाती है जिसका नतीजा कई बार सरकार गिरने के रूप में निकलता है। कांग्रेस शासित मध्य प्रदेश में ऐसा ही हुआ है जहां मुख्यमंत्री कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया में जारी विवाद का परिणाम 10 मार्च को होली के दिन ज्योतिरादित्य तथा उनके समर्थक 22 विधायकों के कांग्रेस से त्यागपत्र और 11 मार्च को भाजपा में शामिल होने और राज्यसभा का टिकट मिलने के रूप में सामने आया जिससे कमलनाथ सरकार के लिए खतरा पैदा हो गया। 

इसके तुरंत बाद 14 मार्च को पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने राज्यपाल लालजी टंडन से भेंट करके तुरंत विधानसभा सत्र बुलाने और फ्लोर टैस्ट करवाने की मांग की तथा कहा कि कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई है। 16 मार्च को विधानसभा सत्र शुरू होने पर जहां राज्यपाल के संक्षिप्त भाषण के बाद विधानसभा अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति ने कोरोना का हवाला देते हुए विधानसभा की कार्रवाई 26 मार्च तक स्थगित कर दी तो भाजपा ने इसके विरुद्ध सुप्रीमकोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया। दावों और जवाबी दावों के बीच अंतत: 19 मार्च को सुप्रीमकोर्ट ने कमलनाथ को 20 मार्च शाम 5 बजे तक विधानसभा में बहुमत सिद्ध करने का आदेश दे दिया। 

अब तक बहुमत सिद्ध करने का दावा करते आ रहे मुख्यमंत्री कमलनाथ ने 20 मार्च को एक नाटकीय घटनाक्रम में फ्लोर टैस्ट से पूर्व ही अपना त्यागपत्र राज्यपाल लालजी टंडन को सौंप दिया जिसे उन्होंने स्वीकार भी कर लिया। त्यागपत्र के बाद कमलनाथ ने प्रैस कांफ्रैंस में कहा, ‘‘करोड़ों रुपए खर्च कर प्रलोभन का खेल खेला गया और जनता द्वारा नकारे गए एक तथाकथित महत्वाकांक्षी सत्ता लोलुप ‘महाराज’ और उनके द्वारा प्रोत्साहित 22 लोभियों के साथ मिल कर भाजपा ने खेल रच लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या की।’’ जो भी हो, राजनीतिक उठा-पटक के इस खेल में सभी पक्ष दोषी हैं। जहां कमलनाथ ने अपनी पार्टी में व्याप्त असंतोष की उपेक्षा की, वहीं ज्योतिरादित्य ने अपनी उपेक्षा की ओट लेकर सत्ता की खातिर भाजपा का दामन थामा और कांग्रेस के 22 बागी विधायकों ने उनका साथ दिया। 

इनमें दिग्विजय सिंह से नाराज 5 विधायक भी शामिल थे क्योंकि दिग्विजय सिंह ने अपने बेटे को तो मंत्री बनवा दिया परंतु उनकी उपेक्षा कर दी थी। वहीं भाजपा ने प्रदेश में दोबारा अपनी सरकार बनाने की खातिर इसे प्रोत्साहन दिया जिस कारण सभी ने अपनी प्रतिष्ठा गंवाई है। इस घटनाक्रम से जहां मध्य प्रदेश की राजनीति में एक नया मोड़ आ गया है वहीं विशेष रूप से यह कांग्रेस नेताओं के लिए एक सबक और संदेश है कि यदि पार्टी इसी प्रकार अपने लोगों की उपेक्षा करती रहेगी तो उसे ऐसे ही और आघात सहने को आगे भी तैयार रहना होगा।—विजय कुमार  


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