अपने जन्मदिन पर जातीय हिंसा के शिकार दलित युवक की दुखद मौत
punjabkesari.in Monday, Oct 27, 2025 - 04:22 AM (IST)
हमारे देश को स्वतंत्र हुए 78 वर्ष से अधिक समय हो चुका है, फिर भी समय-समय पर जाति के नाम पर दलित भाईचारे के सदस्यों के उत्पीडऩ के समाचार आते रहते हैं जिन्हें सुन कर पीड़ा होना स्वाभाविक ही है। दलित उत्पीडऩ का एक उदाहरण 24 अक्तूबर को सामने आया जब ग्रेटर नोएडा में एक दिल दहला देने वाली घटना में 15 अक्तूबर को ऊंची जाति के कुछ लोगों की हिंसा का शिकार हुए 17 वर्षीय दलित किशोर ‘अनिकेत जाटव’ ने 9 दिनों तक जीवन और मृत्यु से जूझते रहने के बाद अस्पताल में दम तोड़ दिया।
उसकी मृत्यु के बाद वातावरण अत्यंत तनावपूर्ण हो गया और न्याय की मांग कर रहे अनिकेत के परिवार को उसके अंतिम संस्कार के लिए राजी करने में अधिकारियों को काफी समय लगा। अनिकेत की मां अपनी छाती पीटते हुए ‘अरे अन्नू, मेरे अन्नू’ कह कर आर्तनाद कर रही थीं और रिश्तेदार उन्हें संभालने की कोशिश कर रहे थे। अपने माता-पिता की इकलौती संतान अनिकेत एक मैकेनिक और ड्राइवर था। 15 अक्तूबर को जिस रात उसका जन्मदिन था, उसी रात उस पर तथाकथित उच्च जाति के लोगों ने हमला किया था। अनिकेत ने अभी केक काटा ही था कि वे लोग आ गए जो अनिकेत को कई सप्ताह से धमका रहे थे। इस हमले में अनिकेत के चाचा सुमित भी घायल हुए।
वास्तव में यह विवाद एक महीना पहले शुरू हुआ था जब एक धार्मिक समारोह में कुछ सवर्ण युवक अनिकेत के एक दोस्त को गाली दे रहे थे जिसका अनिकेत ने बीच-बचाव किया था और उस दिन के बाद से ही अनिकेत को बार-बार परेशान किया जा रहा था जिसका परिणाम अंतत: 15 अक्तूबर को अनिकेत पर हमले और 24 अक्तूबर को उसकी दुखद मृत्यु के रूप में निकला।
स्वतंत्रता के इतने वर्षों के बाद हमारे संविधान के अनुच्छेद 15 जो जाति के आधार पर भेदभाव का निषेध करता है, अनुच्छेद 17 जो अस्पृश्यता का उन्मूलन करता है और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के बावजूद भी इस तरह की घटनाओं के होने से मन में यह प्रश्र उठना स्वाभाविक ही है कि आखिर कब तक हम लोग ऊंची जाति और छोटी जाति जैसे निरर्थक विवादों में उलझे रहेंगे? आखिर हम इंसान को इंसान कब समझेंगे?
