राज्यपालों और राज्य सरकारों के बीच टकराव किसी भी दृष्टि से उचित नहीं
punjabkesari.in Saturday, Nov 12, 2022 - 03:43 AM (IST)

राज्य की कार्यपालिका के प्रमुख राज्यपाल (गवर्नर) होते हैं। यह पद हमें अंग्रेजों से विरासत में मिला है, जिसकी शुरूआत 1858 में ही हो गई थी। संविधान के अनुच्छेद 155 के अनुसार राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रत्यक्ष रूप से की जाएगी, परंतु वास्तव में उनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश पर की जाती है।
1950 से 1967 तक इनकी नियुक्ति से पहले संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री से विचार-विमर्श की परम्परा भी थी, परंतु 1967 के चुनावों में कुछ राज्यों में गैर-कांग्रेसी सरकारों के गठन के बाद यह प्रथा समाप्त कर दी गई। जहां तक राज्यपाल की शक्तियों का संबंध है, राज्यपाल केवल नाममात्र के मुखिया होते हैं और मंत्रिपरिषद ही वास्तविक कार्यपालिका होती है।
राज्यपाल, जो मंत्री परिषद की सलाह के अनुसार कार्य करते हैं, उनकी स्थिति राज्य में वही होती है जो केंद्र में राष्ट्रपति की है। संविधान निर्माता डा. बी.आर. अम्बेडकर ने 31 मई, 1949 को कहा था कि,‘‘राज्यपाल का पद सजावटी है तथा उनकी शक्तियां सीमित और नाममात्र हैं।’’
फायनैंस बिल (वित्त विधेयक) के अलावा कोई अन्य बिल राज्यपाल के सामने उनकी स्वीकृति के लिए पेश करने पर वह या तो उसे अपनी स्वीकृति देते हैं या उसे पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकते हैं। ऐसे में सरकार द्वारा दोबारा बिल राज्यपाल के पास भेजने पर उन्हें उसे पारित करना होता है। कुछ समय से गैर भाजपा शासित राज्यों में वहां के सत्तारूढ़ दलों तथा राज्यपालों के बीच टकराव काफी बढ़ रहा है।
पश्चिम बंगाल के तत्कालीन राज्यपाल जगदीप धनखड़ (वर्तमान उपराष्ट्रपति) और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के संबंध अच्छे नहीं रहे। दोनों में विवाद कोरोना के कारण लगे लॉकडाऊन के बाद शुरू हुआ था, जब जगदीप धनखड़ ने इसे प्रभावशाली ढंग से लागू करने में विफल रहने पर नियमित रूप से राज्य प्रशासन और पुलिस की खिंचाई की थी। दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग के बाद अब मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का विवाद दिल्ली के एल.जी. श्री वी.के. सक्सेना से है और अरविंद केजरीवाल उपराज्यपाल पर उनकी सरकार की महत्वपूर्ण योजनाओं को स्वीकृति प्रदान करने में रोड़ा अटकाने का आरोप लगाते रहे हैं। दूसरी ओर उपराज्यपाल का कहना है कि सरकार जनता के हित में काम नहीं कर रही।
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तथा राज्यपाल रमेश बैंस के बीच हेमंत सोरेन को खदान लीज मामले में विधायक पद के अयोग्य घोषित करने के मामले में चुनाव आयोग द्वारा उन्हें भेजी गई चिट्ठी को लेकर विवाद हुआ और राज्यपाल पर राजनीतिक ब्लैकमेलिंग का आरोप लगाया गया। इन दिनों तमिलनाडु में राज्यपाल आर.एन. रवि तथा एम.के. स्टालिन की द्रमुक सरकार के बीच विवाद छिड़ा हुआ है और राज्य सरकार ने राज्यपाल पर लगभग 20 विधेयकों को दबाकर रखने का आरोप लगाया है। द्रमुक सरकार ने राज्यपाल पर संविधान के अंतर्गत ली गई शपथ की अवहेलना करने तथा साम्प्रदायिक घृणा फैलाने सहित अनेक आरोप लगाते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से उन्हें पद से हटाने का अनुरोध किया है।
केरल के पिनाराई विजयन के नेतृत्व वाली वामपंथी सरकार ने राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान पर राज्य के विश्वविद्यालयों के कामकाज में हस्तक्षेप करने, केरल विश्वविद्यालय के नए कुलपति की नियुक्ति के लिए एक ‘खोज कमेटी’ कायम करने और 10 कुलपतियों को उनके पद से हटाने की दिशा में कदम उठाने का आरोप लगाया है। इसी कारण राज्य सरकार ने आरिफ मोहम्मद खान को कुलाधिपति पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है तथा इसके लिए राज्य सरकार ने ‘केरल कला मंडलम डीम्ड विश्वविद्यालय’ नियमों में संशोधन कर दिया है।
तेलंगाना की के. चंद्रशेखर राव सरकार तथा राज्यपाल ‘तमिलिसाई सुंदरराजन’ के बीच भी ‘36’ का आंकड़ा बना हुआ है। ‘तमिलिसाई सुंदरराजन’ ने राज्य सरकार पर उनके फोन टैप करने का संदह व्यक्त किया है। लगभग 2 मास पूर्व अपने कार्यकाल के 3 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित समारोह में राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन ने आरोप लगाया था कि तेलंगाना सरकार राज्यपाल के पद की गरिमा घटा रही है और ‘महिला राज्यपाल’ होने के कारण उनसे भेदभाव किया जा रहा है।
राज्यपालों और राज्य सरकारों के बीच कुछ वर्ष पहले तक ऐसा कोई विवाद पैदा नहीं होता था और दोनों ही पक्ष परस्पर सहमति से काम करते थे, पर इन दिनों जो कुछ देखने में आ रहा है उसे किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता। अत: राज्य सरकारों के ‘अभिभावक’ होने के नाते राज्यपालों का दायित्व है कि वे सरकार के कार्य की निगरानी तो करें कि वह ठीक ढंग से काम कर रही है या नहीं, आवश्यकता पडऩे पर उससे बात भी करें परंतु उसके कार्य में बाधक न बनें।—विजय कुमार