चीन का अड़ियल रवैया हम कहीं युद्ध की ओर तो नहीं बढ़ रहे

punjabkesari.in Wednesday, Aug 26, 2020 - 02:56 AM (IST)

वैसे तो शुरू से ही चीनी शासक अपनी दादागिरी और विस्तारवादी नीतियों के चलते विश्व में आलोचना के पात्र बने हुए हैं परन्तु 2012 में शी जिनपिंग के चीनी राष्ट्रपति बनने के बाद से हालात खराब होते जा रहे हैं। दूसरे देशों में टांग अड़ाने की चीनी शासकों की नीति के चलते आज भारत सहित कम से कम 27 देशों के साथ उनका विवाद चल रहा है और चीन ने 6 देशों की 48 लाख वर्ग कि.मी. जमीन पर कब्जा कर रखा है। 

हाल ही में जिनपिंग की विस्तारवादी नीतियों के विरुद्ध आवाज उठाने पर कम्युनिस्ट पार्टी से निष्कासित चीन की सैंट्रल पार्टी स्कूल की पूर्व प्रोफैसर ‘काई शिया’ ने कहा था कि ‘‘जिनपिंग अपने देश को समाप्त करने पर तुले हुए हैं। उनके शासनकाल में कम्युनिस्ट पार्टी देश के विकास में बाधा बन गई है तथा इसमें अभिव्यक्ति के लिए कोई स्थान नहीं है।’’ और अब चीन के मानवाधिकार कार्यकत्र्ता टेंग बियाओ ने कहा है कि ‘‘शी जिनपिंग की सरकार ने इंटरनैट, विश्वविद्यालयों और नागरिक समाज पर अपना नियंत्रण कर लिया है। ङ्क्षझजियांग में कम से कम 20 लाख उइगर मुसलमानों और अन्य तुर्क मुसलमानों को हिरासत में ले लिया गया।’’

‘‘सी.सी.पी. द्वारा 1949 में  तानाशाही शासन की स्थापना के बाद लाखों चीनी मारे गए। 1989 में तिनानमिन चौक पर हजारों प्रदर्शनकारियों का नरसंहार किया गया, 1999 में लाखों फालुन गोंग चिकित्सकों को जेलों में बंद करके हजारों को मौत के घाट उतार दिया गया।’’ जहां तक भारत का संबंध है दोनों देशों के बीच आधी सदी से अधिक समय से चले आ रहे सीमा विवाद को सुलझाने के लिए 18 से अधिक बेनतीजा बैठकें हो चुकी हैं तथा दोनों देशों की सेनाओं में 45 वर्ष बाद 15 जून को गलवान घाटी में हुए खूनी टकराव के बाद से दोनों देशों में सेनाएं हटाने बारे वार्ता जारी है पर चीन यथापूर्ण अडिय़ल रवैया अपनाए हुए है। 

चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पी.एल.ए.) की टुकडि़या वास्तविक नियंत्रण रेखा (एल.ए.सी.) के पास कई विवादित बिंदुओं पर बैठी हुई हैं। उन्होंने जुलाई के मध्य से ही वहां से हटने से मना कर रखा है और निर्माण कार्य शुरू कर दिए हैं। भारत और चीन के बीच वार्ता को लेकर गतिरोध के बीच चीन के साथ सीमा की स्थिति पर चर्चा करने के लिए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह द्वारा 22 अगस्त को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और अन्य शीर्ष अधिकारियों के साथ बैठक के बाद अब 24 अगस्त को चीफ ऑफ डिफैंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने बड़ा बयान देते हुए कहा है कि : 

‘‘बातचीत विफल होने पर सैन्य विकल्पों पर भी विचार किया जा रहा है। रक्षामंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार तथा राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े जिम्मेदार लोग इस कोशिश के साथ सभी विकल्पों पर विचार कर रहे हैं कि चीनी सेना (पी.एल.ए.) लद्दाख में पहले वाली स्थिति में लौट जाए।’’‘‘पूर्वी लद्दाख में सेनाओं की तैयारी पूरी है। सरकार शांतिपूर्ण तरीके से मसले सुलझाना चाहती है पर पूर्व स्थिति बहाल करने की कोशिशें सफल न हों तो सैन्य कार्रवाई के लिए भी रक्षा सेनाएं हमेशा तैयार रहती हैं।’’

उक्त बयान से जनरल रावत ने चीन को स्पष्ट संदेश दे दिया है कि भारत उसके कुत्सित इरादों के आगे झुकने वाला नहीं है। लगता है कि लद्दाख में भारत और चीन में चला आ रहा सीमा विवाद भी गंभीर रूप धारण करता जा रहा है और पिछले लगभग पांच दशक में जो नहीं हुआ वह अब होने का खतरा पैदा हो गया है। इन हालात में मन में स्वाभाविक रूप से प्रश्र उत्पन्न होता है कि कहीं हम  चीन के साथ युद्ध की ओर तो नहीं बढ़ रहे क्योंकि यदि चीन ने अपनी हठधर्मी नहीं छोड़ी तो भारत के सामने सैन्य कार्रवाई के सिवाय कोई अन्य विकल्प नहीं रह जाएगा। 

हालांकि चीनी शासकों की तानाशाही के विरुद्ध उनके अपने ही देश में प्रदर्शन हो रहे हैं परन्तु अपने जुनून के वशीभूत वे कुछ भी कर सकते हैं और यदि लद्दाख में संभव न हुआ तो वे कहीं और भी मोर्चा खोल सकते हैं। यह अच्छी बात है कि दोनों देशों के बीच गतिरोध दूर करने के लिए बैठकें हो रही हैं परन्तु यदि चीनी नेताओं का अडिय़ल रवैया जारी रहा तो कुछ भी हो सकता है और यह एक ऐसी अप्रिय स्थिति है जिसका सामना करने के लिए दोनों देशों के लोगों को तैयार रहना होगा क्योंकि युद्ध की स्थिति में दोनों ही देशों में जान-माल का भारी विनाश होगा।—विजय कुमार 


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