चीन द्वारा अमरीकी ‘डॉलर’ के मुकाबले पर ‘युआन’ को खड़ा करने की कोशिश
punjabkesari.in Monday, Nov 17, 2025 - 03:49 AM (IST)
हालांकि यह बात कही जाती है कि भारतीयों को सोना बहुत पसंद है परंतु वास्तविकता यह है कि आजकल विश्व में इस सुनहरी धातु का सबसे बड़ा उत्पादक और खपतकार इस वर्ष चीन है और चीन के शासक लगातार सोना इकट्ठा करते जा रहे हैं। इसका स्वर्ण उत्पादन पिछले वर्ष वैश्विक उत्पादन का 10 प्रतिशत था जिसका अर्थ है कि उसके पास अपने भंडार के लिए घरेलू स्तर पर सोना खरीदने का विकल्प भी है। चीन का केंद्रीय बैंक इस सम्बन्ध में कुछ बताता नहीं है परंतु चीन को अपनी खानों के साथ-साथ जहां कहीं से भी सोना मिल रहा है, वे सोना खरीदते चले जा रहे हैं। विश्लेषकों के अनुसार चीन के केंद्रीय बैंक ने जून में 2.2 टन, जुलाई में 1.9 टन तथा अगस्त में भी 1.9 टन सोने की खरीद की बात कही है परंतु बहुत कम लोग ही इन आंकड़ों पर विश्वास करते हैं। ‘सोसायटी जरनल’ के विश्लेषकों के अनुसार इस वर्ष चीन द्वारा सोने की खरीद 250 टन तक पहुंच सकती है जो चीन के केंद्रीय बैंक की मांग के एक तिहाई से भी अधिक है।
चीन के शासक ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्योंकि वे अब व्यापार के लिए अमरीकी डॉलर, जिसे अभी तक एक्सचेंज के लिए एकमात्र मान्य मुद्रा माना जाता है, पर निर्भर नहीं रहना चाहते और चुपचाप व्यापार के लिए अदायगी माध्यम के रूप में डॉलर से दूर जाने की कोशिश कर रहे हैं। ‘जापान बुलियन मार्कीट एसोसिएशन’ के अनुसार चीन का स्वर्ण भंडार इस समय 5000 टन के आस-पास है जो चीन के शासकों द्वारा बताई गई मात्रा के दुगने के लगभग है जबकि अमरीका के पास 8,133.46 टन,जर्मनी के पास 3,350.25,रुस के पास 2295.4,जापान के पास 765 और भारत के पास 880 टन सोना है। ‘विश्व स्वर्ण परिषद’ के आंकड़ों के अनुसार पिछले एक दशक में अमरीका से बाहर वैश्विक भंडार में सोने का हिस्सा 10 प्रतिशत से बढ़कर 26 प्रतिशत हो गया है जिससे यह अमरीकी डॉलर के बाद दूसरी सबसे बड़ी आरक्षित सम्पत्ति (रिजर्व प्रापर्टी) बन गया है। अंतर्राष्ट्रीय लेनदेन को सुगम बनाने और विनिमय दर जोखिम को कम करने के लिए केंद्रीय बैंकों द्वारा एक आरक्षित मुद्रा रखी जाती है।
जैसे-जैसे द्वितीय विश्व युद्ध समाप्ति की ओर बढ़ रहा था ,1944 के ‘ब्रेटन वुड्स’ समझौते के बाद,अमरीकी डॉलर दुनिया की प्राथमिक आरक्षित मुद्रा बन गया। हालांकि राष्ट्रपति निक्सन के समय में डॉलर को स्वर्ण मानक से अलग करने के कारण विनिमय दरें अस्थिर हो गईं और वैश्विक वित्तीय गतिशीलता प्रभावित हुई। डी.डॉलरीकरण जैसी चुनौतियों के बावजूद,अमरीकी डॉलर ने अपनी स्थिरता और तरलता के कारण अग्रणी आरक्षित मुद्रा का दर्जा बनाए रखा है। विश्व का सबसे बड़ा स्वर्ण खननकत्र्ता होने के बावजूद जैसे-जैसे चीन अपने सोने के भंडार का विस्तार करता जा रहा है, वह विकासशील देशों से भी इसे अपने यहां (चीन में) जमा करने का आग्रह कर रहा है। चीन के शासकों की इसी इच्छा के अनुरूप कम्बोडिया ने हाल ही में रेन बिनबी में भुगतान किए गए नए खरीदे सोने को शेनजेन स्थित ‘शंघाई गोल्ड एक्सचेंज’ के स्वर्ण भंडार में रखने पर सहमति जताई है।
उल्लेखनीय है कि इस वर्ष पोलैंड, तुर्की और चीन ने सोने की सबसे अधिक खरीद की है परंतु उनके केंद्रीय बैंक राजनीतिक या अन्य कारणों से इस संबंध में पूरी जानकारी उजागर नहीं करते। हालांकि ब्राजील के पास भी काफी सोना है परंतु चीन के पास सबसे अधिक है। चीन जितना विश्व का सबसे बड़ा सोने का उत्पादक है, उतना ही कम पारदर्शी है। चीन ने कुछ समय पूर्व अपने मित्र देशों के साथ व्यापार में अपनी मुद्रा ‘युआन’ में भुगतान की शुरुआत की तब अमरीका ने चीन पर टैरिफ लगा दिए थे क्योंकि अमरीका डॉलर की शक्ति को हाथ से जाने देना नहीं चाहता। इसके बदले में चीन के शासकों का कहना है वे सोने को व्यापार का माध्यम बना लेंगे। यहां यह बात भी उल्लेखनीय है कि यह सारा सोना स्विट्जरलैंड या दक्षिण अफ्रीका में रिफाइंड कर शिप से ब्रिटेन भेजा गया जहां से इसे विमान द्वारा चीन भेजा जा रहा है। यह सोना आमतौर पर शंघाई या बीजिंग में रखा जाता है। चीन में सोने की अघोषित खरीद का पैमाना व्यापारियों के सामने बढ़ती चुनौतियों को उजागर करता है जो यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि कीमतें आगे कहां तक जाएंगी क्योंकि बाजार में चीन के केंद्रीय बैंक की खरीद का प्रभुत्व बढ़ता जा रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि विनिमय के स्रोत के रूप में अमरीकी डॉलर में बदलाव की हवा चल रही है लेकिन इस पर बहुत सावधानी से नजर रखने की जरूरत है।
