चीन और ईरान में दोस्ती के बढ़ रहे दायरे

Monday, Jan 25, 2016 - 01:09 AM (IST)

अभी तक चीन विभिन्न देशों के साथ आर्थिक क्षेत्र में ही सहयोग का दायरा बढ़ा रहा था लेकिन अब उसने रणनीतिक और राजनीतिक क्षेत्र में भी दूसरे देशों के साथ सहयोग का दायरा बढ़ाने की दिशा में पग उठाने शुरू किए हैं। 

 
इसका नवीनतम संकेत कुछ समय पूर्व मिला जब ईरान के साथ अपनी राजनीतिक और आर्थिक एकजुटता मजबूत करने के लिए चीन ने 600 बिलियन डालर का समझौता किया। इस संबंध में चीन के राष्टपति शी जिनपिंग का कहना है कि चीन और ईरान की मैत्री अंतर्राष्ट्रीय हालात  की कसौटी पर खरी उतरी है और चीन को पूरी आशा है कि यूरोप तथा एशिया के विभिन्न देशों के साथ अपने व्यापार के लिए नए बाजार खोलने के क्रम में ईरान के साथ उसके संबंधों में और मजबूती आएगी। 
 
इस संबंध में चीन के सरकार समर्थक समाचार पत्र ‘ग्लोबल टाइम्स’ में प्रकाशित एक सम्पादकीय में आशा व्यक्त की गई है कि ऐसे समय में जबकि चीन अपने ‘वन बैल्ट वन रोड’ अभियान को आगे बढ़ा रहा है, उसके उद्देश्यों की पूॢत की दिशा में ईरान एक महत्वपूर्ण पड़ाव है और नि:संदेह ईरान से संबंध मजबूत करने के क्रम में चीन अपना हित देख रहा है।
 
ईरान के राष्टपति हसन रूहानी के अनुसार दोनों देश ईराक, सीरिया, अफगानिस्तान तथा यमन में आतंकवाद और उग्रवाद के मामले में भी एक-दूसरे से सहयोग करने पर सहमत हुए हैं। इस संबंध में ईरान ने चीन से आतंकवादी गिरोह ‘इस्लामिक स्टेट’ का मुकाबला करने में सहयोग तथा इस क्षेत्र में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने का अनुरोध किया है। 
 
हालांकि चीन और रूस ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम के विरुद्ध संयुक्त राष्ट के प्रतिबंधों का समर्थन किया था लेकिन इसके साथ ही वे इसमें छूट देने की भी जोरदार वकालत करते रहे हैं ताकि ईरान के साथ अपना व्यापार जारी रख सकें। 
 
पिछले 10 वर्षों से चीन और रूस के साथ ईरान के इस तरह के राजनीतिक और आर्थिक संबंध हैं जैसे यूरोप के देशों के साथ कभी भी नहीं रहे। अत: कुदरती तौर पर चीन पहले ईरान और इस क्षेत्र के अन्यों देशों के साथ ही अपने संबंधों में तेजी लाने का सिलसिला शुरू करना चाहता है।  
 
अभी तक चीन मुख्यत: विभिन्न देशों के साथ आर्थिक क्षेत्र में ही सहयोग करता आ रहा है जैसे कि अफ्रीका में उसने आर्थिक क्षेत्र में ही विभिन्न देशों के साथ सहयोग किया और राजनीतिक मामलों में कोई हस्तक्षेप करने में रुचि नहीं ली लेकिन अब चीनी नेता विभिन्न देशों के राजनीति मामलों में भी रुचि लेने लगे हैं और उनका मानना है कि विभिन्न देशों में जारी समस्याएं निपटाने में वे सकारात्मक सहयोग दे सकते हैं।  
 
इसी उद्देश्य को सामने रखकर चीनी नेता जहां ईरान के साथ राजनीति संबंध बढ़ा रहे हैं वहीं सऊदी अरब के साथ भी उन्होंने संबंध मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं बल्कि उनका तो यहां तक कहना है कि वे फिलस्तीन की समस्या सुलझाने में भी सक्षम हैं।
 
1979 की क्रांति के बाद से ईरान सरकार पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा आतंकवादियों को उपकरण, हथियार, प्रशिक्षण और शरण देने के आरोप लगाए जाते रहे हैं और अमरीका की पूर्व विदेश मंत्री कोंडालीजा राइस तो यहां तक कह चुकी हैं कि ईरान मध्य पूर्व के देशों लेबनान, फिलस्तीन आदि में हिजबुल्ला, हमास आदि गिरोहों की शरणस्थली और उनका बैंकर बना हुआ है।  
 
1995 में ईरानी रैवोल्यूशनरी गार्ड ने खाड़ी के देशों में अस्थिरता उत्पन्न करने के मुख्य उद्देश्य से जापानी लाल सेना, आर्मेनियन गुप्त सेना, कुदस्तान वर्कर्स पार्टी, ईराकी दावा पार्टी, बहरीन के इस्लामी मुक्ति मोर्चे और बेरूत में हिजबुल्ला के सरगनाओं के साथ उनके गिरोहों को प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से वार्तालाप किया था ताकि वहां की सरकारों को पलट कर उन देशों में ईरान जैसी शासन प्रणाली लाई जा सके।
 
इसी बात को लेकर जहां ईरान और सऊदी अरब के बीच प्रतिस्पर्धा चल रही है वहीं अब इसमें चीन भी आ मिला है और इन क्षेत्रों में अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश में जुट गया है। 
 
ऐसी स्थिति में जहां चीन, ईरान और सऊदी अरब में प्रतियोगिता बढ़ेगी वहीं भारत की इस संबंध में कोई ठोस नीति न होने के कारण भारत को इन देशों के साथ अपने संबंधों में बड़ी सतर्कता बरतनी पड़ेगी जैसा कि यूरोप के विभिन्न देशों ने अपनी रणनीति इस संबंध में बना रखी है।
 
चीन ने अरब देशों में अपना राजनीतिक प्रभाव बढ़ाने का सिलसिला ऐसे दौर में शुरू किया है जब अमरीका के साथ इसकी प्रतिद्वंद्विता में वृद्धि हो रही है और यदि कभी लड़ाई होगी तो अमरीका बड़ी आसानी से मलक्का जलडमरू मध्य के रास्ते चीन को की जाने वाली कच्चे तेल की सप्लाई रोक सकता है। इसी स्थिति से बचने के लिए चीन ने पाकिस्तान से गवादर बंदरगाह भी ले लिया है जिससे इस इलाके में चीन की स्थिति काफी मजबूत हो गई है। 
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