‘बाबरी मस्जिद विवाद सुलझे’ शिया सैंट्रल बोर्ड की अच्छी पहल

punjabkesari.in Wednesday, Aug 09, 2017 - 10:07 PM (IST)

1528 में अयोध्या में एक ऐसे स्थल पर मस्जिद का निर्माण किया गया जिसे हिंदू मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का जन्म स्थान मानते हैं। समझा जाता है कि इस मस्जिद का निर्माण मुगल बादशाह बाबर ने करवाया था तथा इसे ‘बाबरी मस्जिद’ के नाम से जाना जाता था। हिंदुओं का आरोप है कि भगवान राम के मंदिर को तोड़ कर मस्जिद बनाई गई और इस मुद्दे पर 1853 में दोनों समुदायों में पहली हिंसा हुई।

6 दिसम्बर 1992 को हजारों कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद को गिरा दिया और वहां एक अस्थायी राम मंदिर बनाया गया जिसके बाद देश में साम्प्रदायिक दंगे हुए। 16 दिसम्बर, 1992 को मस्जिद की तोडफ़ोड़ की जिम्मेदार स्थितियों की जांच के लिए ‘लिब्रहान आयोग’ का गठन हुआ। अप्रैल, 2002 में अयोध्या के विवादित स्थल के मालिकाना अधिकारों को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के 3 जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की और यह कानूनी लड़ाई अभी भी जारी है। इस विवाद  में 8 अगस्त, 2017 को उस समय एक नया मोड़ आ गया जब सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश शिया सैंट्रल वक्फ बोर्ड ने 30 पृष्ठïों के एक हल्फिया बयान में कहा कि ‘‘अयोध्या में विवादित जमीन पर राम मंदिर बनना चाहिए तथा मस्जिद विवादित जगह से कुछ दूरी पर मुस्लिम बहुल इलाके में बनाई जा सकती है।’’ 

 ‘‘बाबरी मस्जिद स्थल शिया सैंट्रल वक्फ  बोर्ड की संपत्ति है। सिर्फ वही इस विवाद के शांतिपूर्ण हल के लिए दूसरे पक्षों से बातचीत करने की अधिकारी है। इस जटिल मुद्दे का सर्वमान्य हल खोजने हेतु एक समिति गठित करने के लिए इसे कुछ समय दिया जाना चाहिए।’’ ‘‘हमारी यह भी राय है कि विवाद समाप्त करने के लिए मस्जिद का निर्माण मर्यादा पुरुषोत्तम राम के पवित्र जन्मस्थल से उचित दूरी पर किया जा सकता है।’’ शिया सैंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन सईद वसीम रिजवी का कहना है कि  ‘‘बोर्ड इस विवाद का शांतिपूर्ण हल निकालने का प्रयास करेगा ताकि आने वाले समय में दोनों धर्मों के लोग शांति और सौहार्द से रह सकें।’’ 

शिया बोर्ड शीर्ष अदालत में लंबित इस विवाद से जुड़े मामलों में एक पक्षकार है तथा इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के वर्ष 2010 के फैसले के विरुद्ध यह अपील की गई है जिसने राम जन्मभूमि -बाबरी मस्जिद स्थल की विवादित 2.77 एकड़ भूमि 3 बराबर हिस्सों में बांटने व उसे सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा व राम लला को सौंपने का निर्देश दिया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट के उक्त फैसले के खिलाफ दायर की गई 20 याचिकाओं की त्वरित सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जे.एस. खेहर ने सुप्रीम कोर्ट के ही 3 जजों जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस.ए. नजीर पर आधारित एक बैंच बनाई है। इसके कुछ दिनों के भीतर ही दाखिल यह हल्फिया बयान काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है जिस पर न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 3 सदस्यीय पीठ 7 वर्ष के बाद 11 अगस्त से सुनवाई करने जा रही है। 

शिया बोर्ड के हलफनामे से स्पष्टï हो गया है कि बोर्ड को विवादित भूमि पर मंदिर निर्माण से कोई परहेज नहीं है। रिजवी ने सुन्नी सैंट्रल वक्फ बोर्ड उत्तर प्रदेश की आलोचना करते हुए कहा कि इसमें सुन्नी चरमपंथियों का दबदबा है तथा मस्जिद का निर्माण बाबर ने नहीं बल्कि ‘मीर बाकी’ ने करवाया और उन्होंने ही शिया वक्फ बोर्ड का गठन किया था। उन्होंने यह भी कहा कि ‘‘इस मामले में हाईकोर्ट ने सुन्नी बोर्ड द्वारा बाबरी मस्जिद के उसकी संपत्ति होने संबंधी दावे को नकार दिया था। अत: भगवान राम की जन्म स्थली को लेकर हिंदू समुदाय की भावनाओं तथा ङ्क्षहदुओं द्वारा उनकी पूजा का सम्मान करते हुए शिया सैंट्रल बोर्ड को ही इस मामले में निर्णय लेना है। न ही सुन्नी बोर्ड का इस पर कोई नियंत्रण है और न ही इससे उसका कोई लेना-देना है।’’ 

लंबे समय से दोनों समुदाओं के बीच एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर व्याप्त कटुता को समाप्त करने की दिशा में यह एक अच्छा फैसला है जिस पर अमल करके यह चिरकालिक विवाद सुलझाया जा सकता है।—विजय कुमार 


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