सुुप्रीमकोर्ट ने सरकारों से पूछा :‘जब्तशुदा नशीले पदार्थ कहां जाते हैं’

punjabkesari.in Wednesday, Sep 02, 2015 - 01:35 AM (IST)

नार्कोटिक्स विभाग एवं पुलिस प्रशासन प्रति वर्ष सैंकड़ों करोड़ रुपयों का गांजा, हशीश, हैरोइन, एक्सटेसी तथा अन्य अवैध नशीले पदार्थ जब्त करता है। मात्र 2014 में ही देश में लगभग 21,502.991 किलो अफीम, 223.16 किलो मॉरफीन, 3593.847 किलो हैरोइन, 8,78,617.56 किलो गांजा, 731.638 किलो हशीश, 144.112 किलो कोकीन जब्त की गई परंतु केंद्र व राज्य सरकारों के पास इन्हें ठिकाने लगाने का कोई हिसाब नहीं है। 
नवम्बर 2014 में सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एच.एल. दत्तू ने कहा था कि ‘‘ देश में नशों की स्थिति बहुत भयानक होने के बावजूद सरकारों द्वारा इस पर अंकुश लगाने की दिशा में प्रभावशाली पग नहीं उठाए जा रहे।’’
 
इसी संबंध में एक अपील पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति टी.एस. ठाकुर तथा न्यायमूर्ति एन.वी. रमन ने केंद्र सरकार के सॉलीसिटर जनरल रंजीत कुमार से गत दिवस पूछा कि ‘‘प्रतिदिन जब्त किए जाने वाले 50-100 करोड़ रुपए के नशीले पदार्थ आखिर जाते कहां हैं?’’  
मान्य न्यायाधीशों ने यह आदेश अदालत को एमीकस क्यूरी (न्यायालय द्वारा किसी मुद्दे पर सहायता करने के लिए नियुक्त वरिष्ठï वकील) अजीत कुमार सिन्हा के यह बताने के बाद दिया कि ‘‘प्रति वर्ष सैंकड़ों करोड़ रुपए के नशीले पदार्थ जब्त किए जाने के बावजूद मात्र 5 या 10 प्रतिशत जब्तशुदा नशीले पदार्थों को ही नष्टï किया जाता है।’’ 
 
योग्य न्यायाधीशों ने आशंका व्यक्त की कि नशे के नाम पर गोबर जलाया जा रहा है जबकि जब्तशुदा नशीले पदार्थ दोबारा मार्कीट में बिक्री के लिए पहुंच जाते हैं। इन्हें ठिकाने लगाने संबंधी कोई स्पष्टï नीति न होने बारे राज्यों और केंद्र सरकार की ङ्क्षखचाई करते हुए मान्य न्यायाधीशों ने कहा कि :
‘‘नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो तथा पुलिस विभाग के कार्यकलाप में त्रुटियां होने के कारण इन विभागों के कर्मचारी अवैध रूप से कमाई करने के लिए इन्हें दोबारा बाजार में पहुंचा रहे हैं।’’ ‘‘प्रमाण के तौर पर या जांच के लिए प्रयोगशाला में भेजने के उद्देश्य से अदालत में जब्तशुदा नशे की नाममात्र मात्रा ही पेश की जाती है। बाकी नशीले पदार्थों का क्या किया जाता है? क्या आपको यकीन है कि आप जिसे जलाते या नष्टï करते हैं वह गोबर नहीं बल्कि नशीले पदार्थ ही होते हैं?’’
 
‘‘हवलदार, कांस्टेबल या चपड़ासी जैसे अत्यंत जूनियर स्तर के कर्मचारी ही जब्तशुदा अवैध पदार्थों को संभालते हैं जो आसानी से बाकी जब्तशुदा माल गायब करके बेच सकते हैं। जिन लोगों को समाज की सुरक्षा करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है वही लालच के कारण समाज को हानि पहुंचा रहे हैं।’’
 
‘‘मजबूत लॉकरों की बजाय जब्तशुदा नशा खस्ताहाल दरवाजों तथा टूटे हुए तालों वाले मालखानों में रखा जाता है। ऐसे में यह बात कैसे सुनिश्चित बनाई जा सकती है कि यह वहां सुरक्षित रहेगा?’’  ‘‘अनेक राज्यों में पुलिस अधिकारी नशीले पदार्थों के एक तस्कर को गिरफ्तार करते हैं तथा बाकी 7-8 को उनका माल जब्त करने के बाद छोड़ देते हैं और इसके बाद इस जब्तशुदा नशीले पदार्थ को स्वयं ही बाजार में बेच देते हैं। इससे अधिक बुरी बात और क्या हो सकती है।’’
 
जांच के मामले जल्दी निपटाने के लिए देश में प्रयोगशालाओं की कमी का उल्लेख करते हुए मान्य न्यायपीठ ने सॉलीसिटर जनरल को एक सप्ताह के भीतर जब्तशुदा नशीले पदार्थों को नष्टï करने संबंधी नीति पेश करने और साथ ही राज्यों के मुख्य सचिवों को भी गत 10 वर्षों में इस बारे नियमों को लागू करने की दिशा में उठाए गए पगों की जानकारी देने का आदेश दिया है। 
 
सर्वोच्च न्यायालय के मान्य न्यायाधीशों की उक्त टिप्पणी जहां देश में नशीले पदार्थों के धंधे के भयावह हद तक प्रसार का मुंह बोलता प्रमाण है, वहीं इससे जब्तशुदा नशीले पदार्थों को निपटाने के मामले में नार्कोटिक्स और पुलिस विभागों में मची धांधली की भी पुष्टिï होती है। यह टिप्पणी केंद्र व राज्य सरकारों के लिए चेतावनी है कि यदि उन्होंने देश में गहरी जड़ें जमा चुके नशीले पदार्थों का धंधा रोकने के लिए संबंधित विभागों के कार्यकलाप में सुधार न किया और ठोस नीति न अपनाई तो देश की युवा पीढ़ी को घुन की तरह चट करने वाली इस लानत से देश को कभी भी छुटकारा मिलने वाला नहीं।             —विजय कुमार 

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