भारतीय सेना की दयनीय हालत

punjabkesari.in Sunday, Jul 19, 2015 - 01:39 AM (IST)

प्रतिकूल परिस्थितियों में लड़ कर भी भारतीय सेना ने विश्व व्यापी सम्मान और प्रशंसा प्राप्त की है। लद्दाख में 1962 में रेजांग-ला के भयावह युद्ध में घटिया हथियारों से लड़ रहे भारतीय सैनिकों की एक पूरी की पूरी कंपनी के अंतिम जवान ने भी बोल्ट एक्शन राइफलों के साथ चीनी सैनिकों का मुकाबला करते हुए वीरगति प्राप्त की। उस समय अंतर्राष्ट्रीय समाचार पत्रिका ‘टाइम’ ने लिखा था कि ‘‘भारतीय सेना के जवानों में सिवाय साहस के लगभग अन्य सब वस्तुओं का अभाव है।’’

इसके 53 वर्ष बाद भी स्थिति बहुत अधिक भिन्न नहीं है। यदि 1962 में भारतीय सेना के पास समुद्र तल से अधिक ऊंचाई पर लडऩे के लिए उपयुक्त कपड़े, जूते और अन्य साजो-सामान नहीं था तो कारगिल युद्ध में भारतीय सैनिकों के पास रात को देखने वाली ऐनकें और यहां तक कि अच्छी क्वालिटी की तोपें तक नहीं थीं। तब बोफोर्स तोप ने ही भारत की लाज रखी थी।
 
पिछले कुछ समय के दौरान भारत-पाक सीमा पर लगातार तनाव बढ़ रहा है और पाकिस्तान द्वारा भारतीय सीमाओं में गोलीबारी का सिलसिला  लगातार जारी है। इसी प्रकार के घटनाक्रम के बीच पाकिस्तानी सेना ने 15 जुलाई को नियंत्रण रेखा के पास पाक अधिकृत कश्मीर के भीमबेर इलाके में नियंत्रण रेखा के निकट गोलीबारी करके हवाई फोटोग्राफी के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले एक ड्रोन को मार गिराने का दावा करते हुए कहा कि यह ड्रोन भारतीय सेना का था। 
 
इसका खंडन करते हुए भारत ने कहा कि पाकिस्तानी मीडिया में जिस ड्रोन की तस्वीरें दिखाई गई हैं वह चीन का बना हुआ है और भारतीय सेना चीन से ड्रोन विमान नहीं खरीदती अत: भारत का इससे कोई लेना-देना नहीं है। भारतीय सेना तो आई.आई.टी. और डी.आर.डी.ओ. द्वारा निर्मित स्वदेशी ड्रोन इस्तेमाल करती है और वह भी रोड मैपिंग आदि गतिविधियों के लिए। 
 
इसके साथ ही भारतीय सेना का यह भी कहना है कि गुप्तचरी आदि के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला ड्रोन अत्यंत उच्च क्वालिटी के रैजोल्यूशन और तेज रफ्तार वाला होता है और भारत इसके लिए इसराईल निर्मित ‘सर्चर’ तथा ‘हैरोन’ ड्रोन का इस्तेमाल करता है जबकि पाकिस्तान अपने ही ड्रोन को गिराकर भारत विरोधी प्रचार कर रहा है। 
 
पाक द्वारा भड़काई जा रही भारत विरोधी भावनाओं तथा सीमा पर जारी गोलीबारी की पृष्ठभूमि में कहा जा सकता है कि छिटपुट घटनाओं से निपटने में तो हमारी सेनाएं सक्षम हैं परंतु क्या पूर्णाकार युद्ध के लिए भी भारतीय सेनाएं तैयार हैं? स्पष्टïत: संसाधनों के अभाव में भारतीय सेनाएं इसके लिए कम तैयार नजर आती हैं। 
 
ऐसी पृष्ठभूमि में हाल ही में भारतीय सेना द्वारा 1.8 लाख असाल्ट राइफलों का 4848 करोड़ रुपए का अनुबंध भंग करना बहुत बड़ा हताशाकारी पग था। इस समय इस्तेमाल की जा रही पुरानी ए.के.-47 व समस्याओं से भरपूर स्वदेश निर्मित ‘इंसास’ राइफलों के स्थान पर ये नई राइफलें जवानों को दी जानी थीं। 
 
विश्व के सबसे बड़े शस्त्र व्यापारियों में से एक के साथ वार्ता की 3 से 5 वर्ष तक चलने वाली तकलीफदेह लंबी प्रक्रिया के बाद जनरल दलबीर सिंह ने इन राइफलों का आर्डर रद्द कर दिया। अब राइफलों की खरीद के लिए किए जाने वाले किसी भी नए अनुबंध के अंतर्गत मिलने वाली आपूर्ति के लिए हमें और 5 वर्ष प्रतीक्षा करनी होगी। तब तक भारतीय सेना को कैसी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा, यह अकल्पनीय है। 
 
उस समय तक भारत की पूर्वी और उत्तर-पश्चिमी सीमाओं पर तैनात जवानों को चीन या अमरीका में बनी राइफलों के मुकाबले के लिए इन्हीं पुरानी पड़ चुकी राइफलों पर निर्भर रहना पड़ेगा जबकि लगभग समान गुणवत्ता वाली चीनी या अमरीकी राइफलों के मुकाबले में भारतीय सेना की राइफलें कहीं नहीं ठहरतीं। 
 
इन परिस्थितियों में भारतीय सेनाओं को उनके हाल पर छोडऩा बहुत गलत है। लिहाजा उच्च सेना अधिकारियों और भारत सरकार को इस विषय में तुरंत इस बारे कोई विवेकपूर्ण निर्णय लेने की आवश्यकता है कि हम अपने वीर सैनिकों के लिए किस प्रकार और कब सर्वश्रेष्ठ शस्त्र खरीद सकते हैं। यदि जर्मन और फ्रांसीसी शस्त्र न मिलें तो अमरीकन ही सही, हमारे सामने विकल्प तो बहुत हैं परंतु समय और सैनिकों के प्राण मूल्यवान हैं।
 

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