दिल्ली सरकार और केंद्र के बीच छिड़ी ‘खुली जंग’

punjabkesari.in Tuesday, May 26, 2015 - 01:23 AM (IST)

दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार की कड़ी आपत्तियों के बावजूद 16 मई को उपराज्यपाल नजीब जंग द्वारा दिल्ली की कार्यकारी मुख्य सचिव ‘शकुंतला गैमलिन’ की नियुक्ति के बाद केंद्र सरकार व दिल्ली की सरकार के बीच शुरू हुआ विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा।

इसकी प्रतिक्रियास्वरूप केजरीवाल ने वरिष्ठ नौकरशाह अनदो मजूमदार के दफ्तर को ताला लगवा दिया और अपने सभी अधिकारियों को उपराज्यपाल नजीब जंग या उनके कार्यालय के किसी भी आदेश को न मानने के निर्देश जारी कर दिए। इस पर दिल्ली सरकार द्वारा की गई सभी नियुक्तियों और तबादलों को उपराज्यपाल द्वारा रद्द कर देने से दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच टकराव की नौबत आ गई है। 
 
केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा उपराज्यपाल की भूमिका और शक्तियों संबंधी जारी की गई एक अधिसूचना ने इस विवाद को और बढ़ा दिया है जिसमें  पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और सेवा के मामलों में उपराज्यपाल को नियुक्ति और तबादलों के सम्पूर्ण अधिकार दे दिए गए हैं। 
 
इसके बाद मोदी सरकार द्वारा दिल्ली सरकार से भ्रष्टाचार निरोधक शाखा का नियंत्रण छीनने संबंधी कवायद और नजीब जंग के समर्थन में अधिसूचना जारी करने के बाद ‘आप’ सरकार ने 25 मई को अपने मंत्रिमंडल की आम जनता के साथ कनाट प्लेस में ओपन बैठक बुला ली तथा 26 और 27 मई को विधानसभा का आपातकालीन सत्र भी बुलाने की घोषणा कर दी है। 
 
23 मई को पार्टी के नेताओं की केजरीवाल के निवास पर बैठक हुई जिसमें उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने मोदी सरकार पर दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने संबंधी घोषणा पर सबसे बड़ा यू-टर्न लेने का आरोप लगाया। 
 
बैठक में पार्टी की विधायक अल्का लाम्बा ने आरोप लगाया कि ‘‘उपराज्यपाल की ओट में केंद्र सरकार पिछले दरवाजे से एक निर्वाचित सरकार को चलाने की कोशिश कर रही है और हम ऐसा नहीं होने देंगे।’’
 
ज्ञात रहे कि राजधानी में पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और सेवा के मामले में स्वयं गृह मंत्री रहते श्री लाल कृष्ण अडवानी ने 16 वर्ष पूर्व सितम्बर 1998 में निर्णय दिया था कि ‘‘राज निवास द्वारा कोई भी निर्णय लेने की प्रक्रिया में मुख्यमंत्री को शामिल करना जरूरी है।’’ 
 
तत्कालीन कानून मंत्री राम जेठमलानी ने उस समय कहा था कि ‘‘राज निवास के लिए हर मामले पर मुख्यमंत्री से परामर्श करना अनिवार्य होगा और यदि राज निवास ऐसा न करना चाहे तो उसे  इसका कारण बताना होगा।’’  मोदी सरकार ने अब इन्हीं आदेशों का उल्लंघन किया है और इस मामले में अरविंद केजरीवाल को देश के प्रमुख कानून विशेषज्ञों का समर्थन भी प्राप्त हो गया है। 
 
केजरीवाल सरकार द्वारा दिल्ली के अफसरशाहों की नियुक्तियों व तबादलों बारे मांगी गई कानूनी सलाह के संबंध में पूर्व सोलिसिटर जनरल इंदिरा जयसिंह ने कहा कि ‘‘संविधान में उपराज्यपाल को मुख्य सचिव की नियुक्ति के मामले में अपनी इच्छा से नियुक्ति करने का अधिकार नहीं दिया गया है।’’
 
‘‘इसकी नियुक्ति मंत्री परिषद द्वारा नियमानुसार ही होनी चाहिए। उपराज्यपाल लोकतांत्रिक विधि से निर्वाचित राजनीतिक कार्यपालिका की बात मानने को बाध्य हैं। मुख्यमंत्री द्वारा नियुक्त किए गए एक अधिकारी की नियुक्ति रद्द करके उपराज्यपाल ने अपने अधिकारों का अतिक्रमण किया है और कार्यपालिका अपने अधिकारियों को उनके काडर के हिसाब से नियुक्त करने की अधिकारी है।’’ 
 
दो अन्य विधिवेताओं के.के. वेणुगोपाल व गोपाल सुब्रमण्यम ने भी उप-राज्यपाल को दिल्ली का प्रशासकीय प्रमुख बताते हुए कहा है कि सेवाओं व अधिकारियों का नियंत्रण सिर्फ मुख्यमंत्री और कैबिनेट के अधीन ही आता है।
 
सीधे तौर पर मुख्यमंत्री और विभिन्न मंत्रालयों के अधीन काम करने के लिए नियुक्त अधिकारियों के लिए इनकी उपेक्षा करके अपने काम के संबंध में उपराज्यपाल को रिपोर्ट करना संभव नहीं है। 
 
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में केंद्र सरकार दिल्ली सरकार के पर कुतरने की कोशिश में अपने ही बुने हुए जाल में उलझ गई लगती है। भाजपा सरकार के लिए अपने ही वरिष्ठ नेताओं के लिए हुए फैसलों को पलटना किसी भी प्रकार उचित नहीं है जिसका संकेत हाईकोर्ट ने 25 मई को एक महत्वपूर्ण फैसले में दिल्ली सरकार द्वारा गठित भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को दिल्ली पुलिस पर कार्रवाई करने की अनुमति देकर दे दिया है।  
 

सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News