अब महिला खिलाडिय़ों द्वारा ‘आत्महत्याओं का दुखद सिलसिला शुरू’

punjabkesari.in Saturday, May 09, 2015 - 12:43 AM (IST)

देश में भ्रष्टाचार, महंगाई, ला-कानूनी तथा महिलाओं पर हमलों का सिलसिला लगातार जारी है। जनसमस्याओं के प्रति सरकारों की असंवेदनशीलता और प्रशासकीय उदासीनता के चलते हर ओर निराशा का वातावरण है।

महिलाओं पर लगातार हमले हो रहे हैं। त्वरित न्याय न मिलने के कारण दुष्कर्म की शिकार महिलाएं आत्महत्याएं कर रही हैं। यही नहीं, फसलों के कम मूल्य मिलने के कारण किसान भी अपनी जीवनलीला समाप्त कर रहे हैं। 
 
और अब तो महिला खिलाडिऩें भी आत्महत्या को मजबूर होने लगी हैं। अंतर्राष्ट्रीय मैराथन प्रतियोगिताओं की विजेता तथा एशिया मैराथन चैम्पियन सुनीता गोदारा ने जनवरी 2011 में आरोप लगाया था कि :
 
‘‘खिलाडिऩों के प्रशिक्षण कैम्पों में महिला खिलाडिय़ों का यौन शोषण होता है। खेल फैडरेशनों में भ्रष्टाचार के मामले तो समय-समय पर सामने आते रहते हैं लेकिन महिला खिलाडिय़ों के साथ होने वाले भेदभाव  एवं शोषण के मामले नहीं के बराबर सामने आते हैं क्योंकि वे डरती हैं कि यदि उन्होंने आवाज उठाई तो उनका करियर बर्बाद हो जाएगा।’’
 
अब 6 मई 2015 को केरल में अलपुझा स्थित स्पोटर्स अथारिटी आफ इंडिया (साई) के जल क्रीड़ा प्रशिक्षण केंद्र में, जहां राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए संभावित खिलाड़ी-खिलाडिऩों को कैनोइंग और कायकिंग का प्रशिक्षण दिया जाता है, में 4 खिलाडिऩों द्वारा आत्महत्या के प्रयास से सुनीता गोदारा का आरोप सत्य सिद्ध हो गया है।
 
उक्त केंद्र में इन 4 युवा महिला एथलीटों ने सीनियरों, कोचों, वार्डनों आदि द्वारा प्रताडि़त करने के कारण महिला होस्टल के भीतर दोपहर 3 बजे के लगभग  ‘ओथालांगा’ नामक 12 जहरीले फल खाकर आत्महत्या की कोशिश की। 
 
‘ओथालांगा’ फल के पेड़ को आमतौर पर ‘आत्महत्या वृक्ष’ कहा जाता है। इस कारण 15 वर्षीय अपर्णा रामचंद्रन की तो मौत हो गई तथा 3 अन्य खिलाडिऩें गंभीर रूप से बीमार हो गईं।
 
अपर्णा कायकिंग की राष्ट्रीय चैम्पियन थी तथा उसे ‘रोइंग फैडरेशन आफ इंडिया’ ने हाल ही में  2019 के एशियाई खेलों तथा 2020 के ओलिम्पिक के लिए संभावित खिलाडिय़ों की सूची में शामिल किया था। अन्य गंभीर बीमार खिलाडिऩों में से एक त्रिशा जैकब ने भी हाल ही में कोच्चि में सम्पन्न राष्ट्रीय खेलों में कैनोइंग और कायकिंग में 500 मीटर स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता था। 
 
चारों खिलाडिऩों ने अपने हस्ताक्षरों सहित संयुक्त सुसाइड नोट में लिखा है कि उनकी छोटी-सी गलतियों को उनके सीनियरों ने बहुत बड़ा बना दिया। अपर्णा के परिवार के सदस्यों का आरोप है कि :
 
‘‘इन लड़कियों को शारीरिक और मानसिक तौर पर परेशान किया गया। अपर्णा के शरीर पर उस समय उसके कोच ने चप्पू से प्रहार किया था जिससे उसे गंभीर चोट आई थी और वह उठ-बैठ नहीं पा रही थी। ये लड़कियां अपने ऊपर किए जाने वाले अत्याचारों की शिकायत भी नहीं करती थीं क्योंकि ऐसा करने पर उनके सीनियर (कोच) उन्हें और सजा देते थे।’’ 
 
‘साई’ के प्रशिक्षण केंद्रों में अव्यवस्था से होने वाली इस तरह की घटनाओं का यह कोई पहला मौका नहीं है। देश भर में ‘साई’ के 100 के लगभग प्रशिक्षण केंद्र हैं परंतु कहीं भी प्रशिक्षुओं की शिकायतें सुनकर उनका निवारण करने और उनकी ‘काऊंसलग’ करने की व्यवस्था नहीं है।
 
‘साई’ के इतिहास में इस घटना को अब तक की निकृष्टतम घटना माना जा रहा है। इससे पूर्व 2014 में इंचीओन में आयोजित एशियाई खेलों के सिलसिले में जिम्रास्टिक का प्रशिक्षण ले रही कुछ छात्राओं ने अपने कोच पर उनके यौन शोषण का आरोप लगाया था।
 
हालांकि 7 मई को ही संसद में सदस्यों द्वारा यह मुद्दा उठाने पर केंद्रीय खेल मंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने इस मामले की छानबीन के आदेश दे भी दिए हैं परंतु जरूरत है खेल प्रशिक्षण केंद्रों की कार्यप्रणाली को सुधारने तथा होस्टलों को किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना से सुरक्षित करने की।
 
यदि राष्ट्रीय स्तर के खिलाडिय़ों को ही हम उचित वातावरण नहीं दे सकते और न ही कठिन हालत में उनकी सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं तो निचले स्तर पर तो इस तरह की कोई आशा करना व्यर्थ ही होगा। 

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