नदियों का स्वच्छता अभियान मोदी सरकार के लिए लोहे के चने चबाने जैसा

punjabkesari.in Sunday, Apr 05, 2015 - 11:33 PM (IST)

इन दिनों भारतीय नदियों में प्रदूषण चर्चा का विषय बना हुआ है जिससे अधिकांश नदियां सूख कर नालों का रूप धारण कर गई हैं और या फिर उनका पानी इस कदर विषैला हो चुका है कि वह पीने तो क्या उसमें हाथ डालने के काबिल भी नहीं रहा।

बढ़ रहा औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और बांधों का निर्माण मुख्य रूप से नदियों की वर्तमान दुर्दशा के लिए जिम्मेदार है। किसी जमाने में नदियों का पानी इतना साफ हुआ करता था कि लोग उसमें मुंह देखकर अपने सिर के बाल तक संवार सकते थे, लेकिन अब हालत यह हो गई है कि अधिकांश नदियों में कालिमा के सिवाय कुछ दिखाई नहीं देता। 
 
हाल ही में नरेन्द्र मोदी ने एक जर्मन शिष्टमंडल को आमंत्रित करके यह जानना चाहा था कि गंगा नदी को किस प्रकार स्वच्छ किया जा सकता है। इसके उत्तर में उक्त शिष्टमंडल ने प्रधानमंत्री को बताया कि गंगा से आधी लंबी राइन नदी को साफ करने में जर्मनी को 30 वर्ष लग गए थे तो आप स्वयं ही अनुमान लगा लें कि गंगा को निर्मल बनाने में कितना समय लगेगा। 
 
यहां ध्यान देने वाली एक बात यह भी है कि अकेली गंगा नदी ही प्रदूषण का शिकार नहीं है और देश भर की लगातार प्रदूषित होती जा रही नदियां इस कदर विषैली हो चुकी हैं कि इनको साफ करना मोदी सरकार के लिए लोहे के चने चबाने जैसा सिद्ध होने वाला है।
 
पिछले 5 वर्षों में देश में प्रदूषण की शिकार नदियों की संख्या 2 गुना से भी अधिक हो गई है। वर्ष 2009 में जहां देश की 121 प्रमुख नदियां प्रदूषण की लपेट में थीं वहीं 2015 में इनकी संख्या बढ़ कर 275 हो गई। इसी प्रकार प्रदूषित नदियों की पट्टिïयां जो 2009 में 150 थीं वे 2015 में बढ़ कर 302 हो गईं। 
 
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सी.पी.सी.बी.) द्वारा किए गए एक आकलन के अनुसार 29 राज्यों और 6 केन्द्र शासित क्षेत्रों में 445 नदियों में से 275 नदियां पूरी तरह प्रदूषित हैं। 302 नदियों के किनारे स्थित 650 शहरों के गंदे पानी की मात्रा भी 38000 मिलियन लीटर प्रतिदिन से बढ़कर 62000 मिलियन लीटर (एम.एल.डी.) हो गई है जबकि इसकी तुलना में सीवेज शोधन क्षमता में नाममात्र की वृद्धि ही हुई है।
 
सी.पी.सी.बी. के अनुसार 302 प्रदूषित नदी पट्टियों को 5 प्राथमिकता वाले वर्गों में बांटा गया है और इनमें से बायोकैमिकल आक्सीजन डिमांड (बी.ओ.डी.) के आधार पर 34 नदियों को प्राथमिकता की प्रथम श्रेणी में रखा गया है, जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। इनमें प्रति लीटर बी.ओ.डी. की मात्रा 30 मिलीग्राम प्रति लीटर से भी अधिक है। 
 
देश की 17 ऐसी नदियां हैं, जिनका बी.ओ.डी. 20 से 30 मिलीग्राम प्रति लीटर है और यह प्राथमिकता की द्वितीय श्रेणी में आती हैं। इसी प्रकार 158 नदियां बी.ओ.डी. की पांचवीं श्रेणी में रखी गई हैं, जिनमें बी.ओ.डी. का स्तर 3 से 6 मिलीग्राम प्रति लीटर है। 
 
देश में कुल 12363 किलोमीटर लंबी नदी पट्टी में से 2726 किलोमीटर लंबी नदी पट्टी तत्काल सुधार के लिए प्राथमिकता की प्रथम श्रेणी में आती है, जबकि 1145 किलोमीटर प्राथमिकता की द्वितीय श्रेणी में, 1834 किलोमीटर प्राथमिकता की तृतीय श्रेणी में 2492 किलोमीटर चतुर्थ श्रेणी में और 4166 किलोमीटर पांचवीं श्रेणी में आती हैं। 
 
दिल्ली में यमुना सर्वाधिक प्रदूषित है और महाराष्ट्र की 85 प्रतिशत नदियां प्रदूषण का शिकार हैं। इसी रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि ‘‘बढ़ती हुई आबादी के दृष्टिगत सभी प्रकार के इस्तेमाल के लिए साफ पानी की मांग इतनी बढ़ जाएगी कि उसकी पूर्ति करना मुश्किल हो जाएगा।
 
इस अध्ययन के साथ जुड़े सी.पी.सी.बी. के एक वैज्ञानिक का कहना है कि स्थिति अत्यंत नाजुक है और सरकार को इस पर तुरन्त कार्रवाई करनी चाहिए और इस संबंध में तत्काल कोई नीति बना कर उस पर फौरी तौर पर अमल करना चाहिए। 
 
सी.पी.सी.बी. में इस बात को लेकर भी रोष व्याप्त है कि इसके अध्यक्ष के रूप में देश में प्रदूषण रोकने के काम से जुड़े किसी वैज्ञानिक के स्थान पर एक अफसरशाह को चुन लिया गया है। किसी वैज्ञानिक के स्थान पर किसी अफसरशाह को नियुक्त करने से सरकार नदियों में बढ़ रहे प्रदूषण को रोकने के अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाएगी।  

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