‘खरगोशों की तरह बच्चे’ पैदा न करने का ‘पोप फ्रांसिस’ का सुझाव उचित व प्रशंसनीय

punjabkesari.in Friday, Jan 23, 2015 - 05:33 AM (IST)

1.2 अरब कैथोलिक ईसाइयों की सर्वोच्च पीठ वैटिकन (रोम) के पोप को विश्व भर के कैथोलिकों का धर्म गुरु माना जाता है। वैटिकन के 266वें ‘पोप फ्रांसिस’ ने 28 फरवरी, 2013 को पद ग्रहण करते ही इसमें आई कमजोरियां दूर करने हेतु क्रांतिकारी सुधारों के संकेत देने शुरू कर दिए थे और तभी से वैटिकन को जन आकांक्षाओं के अनुरूप बनाने के लिए वह अनेक सुधारवादी पग भी उठा रहे हैं। इनके अंतर्गत ‘पोप फ्रांसिस’ ने :

* 12 जून, 2013 को पहली बार वैटिकन में ‘गे’ समर्थक लॉबी व भारी भ्रष्टाचार की मौजूदगी को स्वीकार करते हुए इसकी घोर निंदा की।
 
* 14 जून, 2013 को उन्होंने शादी से पूर्व एक साथ (लिव इन रिलेशनशिप में) रहने वाले कैथोलिक जोड़ों की आलोचना करते हुए कहा ‘‘यह सही नहीं। इससे शादी की संस्था अस्थायी हो गई है। यह एक गंभीर समस्या है।’’
 
* 4 जून, 2014 को उन्होंने संतानहीन दम्पतियों से कहा, ‘‘जानवरों की तुलना में अनाथ बच्चों को प्यार देना व उन्हें गोद लेना बेहतर है।’’
 
* 23 दिसम्बर, 2014 को उन्होंने कहा, ‘‘(वैटिकन के) पादरी व बिशप आदि अपना रुतबा बढ़ाने के लिए सांठ-गांठ, जोड़-तोड़ और लोभ की भावनाओं से ग्रस्त हो गए हैं। उन्हें ‘आध्यात्मिक अल्जाइमर’ ने जकड़ लिया है। वैटिकन में बदलाव लाने की जरूरत है। यह एक बीमार संस्था है।’’ और अब 20 जनवरी, 2015 को रोम में कृत्रिम गर्भ निरोध पर चर्च के रुख की हिमायत करते उन्होंने कैथोलिक समुदाय से कहा,‘‘अच्छे कैथोलिक ईसाइयों को ‘खरगोशों’ की तरह बच्चे पैदा करने की जरूरत नहीं। वे बच्चों की परवरिश जिम्मेदारी से करें। चर्च के उपदेशों का पालन करने का अर्थ यह नहीं है कि ईसाई एक के बाद एक बच्चे पैदा करते रहें।’’
 
‘‘एक बार मैंने एक गर्भवती महिला, जो पहले ही सिजेरियन द्वारा सात बच्चों को जन्म दे चुकी थी और आठवें बच्चे को जन्म देने वाली थी, से पूछा कि क्या वह अपने पीछे 7 अनाथ छोड़ कर जाना चाहती है?’’ 
 
‘‘जब उसने कहा कि यही प्रभु की इच्छा है तो मैंने कहा कि प्रभु ने हमें बच्चों के सही ढंग से पालने की जिम्मेदारी दी है जबकि कुछ लोगों को भ्रांति है कि अच्छे कैथोलिक होने के लिए उन्हें ‘खरगोशों’ की भांति बच्चे पैदा करने चाहिएं। चर्च द्वारा स्वीकृत जन्म को नियंत्रित करने के अनेक विधि सम्मत उपाय हैं।’’
 
‘पोप फ्रांसिस’ की उक्त नसीहत हमारे कुछ नेताओं व धर्मगुरुओं द्वारा अधिक बच्चे पैदा करने बारे दिए गए बयानों के सर्वथा विपरीत और सही है। भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने 6 जनवरी को यह कह कर विवाद खड़ा कर दिया था कि : 
 
‘‘अच्छे दिन आ गए हैं, अब इस देश में 4 पत्नियां और 40 बच्चे नहीं चलेंगे। यदि देश को बचाना है तो हर हिन्दू कम से कम 4 बच्चे पैदा करे।’’ साक्षी महाराज के इस बयान पर विवाद खड़ा होने के बावजूद ऐसे बयानों की झड़ी सी लग गई। जहां विहिप नेता साध्वी प्राची ने 4 बच्चों की वकालत की वहीं एक कदम आगे बढ़कर बंगाल के बीरभूम से भाजपा सांसद समीर गोस्वामी ने कहा कि ‘‘हिंदू महिलाओं को समुदाय को बचाने के लिए 5 बच्चे पैदा करने चाहिएं।’’ 
 
14 जनवरी को हिसार में हिन्दू महासभा के प्रवक्ता ललित भारद्वाज ने केंद्र सरकार से यह मांग कर डाली कि हिन्दू समाज में 4 बच्चे पैदा करने वालों को ईनाम देने का कानून बनाया जाए और इन सबसे बढ़ कर 18 जनवरी को बद्रिकाश्रम के शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती ने तो यहां तक कह दिया कि ‘‘हिन्दुओं को 10-10 बच्चे पैदा करने चाहिएं।’’  इसी दिन विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष प्रवीण तोगडिय़ा ने लखनऊ में कहा कि ‘‘धर्म को बचाने के लिए हिन्दू कई-कई बच्चे पैदा करें।’’ 
 
20 जनवरी को आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू भी यह सलाह देकर उपहास के पात्र बन गए हैं कि ‘‘लोगों को सर्वथा अधिक से अधिक बच्चे पैदा करने चाहिएं।’’  नायडू का यह बयान उनके पिछले बयानों के विपरीत है जब वह संयुक्त आंध्र के मुख्यमंत्री थे और परिवार नियोजन पर जोर देते थे। 
 
आज प्रत्येक व्यक्ति अपने परिवार को सीमित रखकर अपने बच्चों को उच्च शिक्षा व अन्य जीवनोपयोगी सुविधाएं उपलब्ध करवाने की इच्छा के चलते दो से अधिक बच्चे नहीं चाहता। इसी कारण और स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पडऩे के कारण सभी समुदायों की पढ़ी-लिखी महिलाएं अब 2 से अधिक बच्चे पैदा नहीं करना चाहतीं।
 
इस पृष्ठभूमि में जहां पोप द्वारा ईसाई समुदाय को ‘खरगोशों’ की तरह बच्चे पैदा न करने का सुझाव समस्त समुदायों के लोगों के लिए बिल्कुल सही प्रतीत होता है वहीं हमारे चंद नेताओं और धर्मगुरुओं द्वारा धर्म की रक्षा के नाम पर अधिक से अधिक बच्चे पैदा करने का सुझाव कतई उचित नहीं लगता।  

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