अमरीका का पाकिस्तान के प्रति बदलता रवैया

punjabkesari.in Sunday, Jul 23, 2017 - 10:02 PM (IST)

गत 20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा अमरीका केराष्ट्रपति का पद संभालने के समय से ही तेजी से कुछ ऐसे संकेत मिल रहे हैं जिनसे पाकिस्तान सरकार द्वारा आतंकवाद को शह देने और इसके आतंकवाद के अड्डों में बदल जाने के चलते अमरीका की पाकिस्तान से नाराजगी का आभास होता है। 

इसी शृंखला में 26 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमरीका यात्रा के दौरान अमरीका सरकार द्वारा कुख्यात आतंकी सलाहुद्दीन को अमरीका की प्रतिबंधित सूची में डालने की घोषणा की गई। अभी कुछ सप्ताह पहले ही जब डोनाल्ड ट्रम्प संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा पर गए तो वहां ट्रम्प से मिलने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भी पहुंचे थे परंतु उन्हें वहां ट्रम्प के साथ मंच पर भी खड़ा नहीं किया गया। इस घटना को पाकिस्तान के मीडिया ने पाकिस्तान का अपमान बताया था और नवाज शरीफ की काफी किरकिरी हुई थी। कुछ समय पूर्व ट्रम्प ने अमरीका की एक वित्तीय समिति को सलाह दी कि पाकिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक सहायता को कर्ज में बदल दिया जाए इसके अलावा अभी कुछ दिन पहले ही अमरीका ने पाकिस्तान को आतंकवादियों के लिए शरण देने वाले देशों की सूची में डाल दिया। 

यही नहीं पाकिस्तान द्वारा अपने देश में चल रही आतंकवादी गतिविधियों को प्रोत्साहन देने से रोकने के लिए अमरीका ने पाकिस्तान सरकार को हक्कानी नैटवर्क के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए भी कहा था जिसका पालन न किए जाने पर अमरीका सरकार के रक्षा मंत्रालय ने पाकिस्तान के विरुद्ध एक और पग उठाने की घोषणा की है जिसके अंतर्गत ट्रम्प प्रशासन ने पाक को 35 करोड़ डालर की सहायता पर रोक लगाने की घोषणा की है। अमरीका के रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस के अनुसार इस्लामाबाद की ओर से कुख्यात हक्कानी नैटवर्क के विरुद्ध पर्याप्त कदम उठाए जाने के बारे में पुष्टिï नहीं करने को लेकर कांग्रेस को सूचित करने के बाद अमरीका ने पाकिस्तान को 2016 के गठबंधन समर्थन कोष (सी.एस.एफ.) में 35 करोड़ डालर की अदायगी नहीं करने का फैसला किया है। 

रक्षा मंत्रालय का उक्त फैसला ट्रम्प प्रशासन द्वारा अफगानिस्तान व पाकिस्तान बारे अमरीकी नीति की समीक्षा के पहले लिया गया है। रक्षा विभाग के प्रवक्ता एडम स्टम्प के अनुसार रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस द्वारा कांग्रेस को अवगत कराए जाने के फलस्वरूप रक्षा विभाग ने बाकी सी.एस.एफ. में 35 करोड़ डालर को दूसरे खाते में एडजस्ट कर दिया है जबकि पाकिस्तान को 55 करोड़ डालर की सहायता इस वर्ष के शुरू में दी जा चुकी है। स्टम्प ने कहा कि मंत्री मैटिस ने कांग्रेस की रक्षा समितियों को अवगत कराया है कि वह वित्त वर्ष में सी.एस.एफ. की पूर्ण अदायगी मंजूरी के लिए इसकी पुष्टिï नहीं कर सकते कि पाकिस्तान ने हक्कानी नैटवर्क के खिलाफ पर्याप्त कदम उठाए। 

उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान बेस्ड हक्कानी नैटवर्क पर अमरीका में अनेक हाई-प्रोफाइल हमले करने और अफगानिस्तान में अमरीका तथा पाश्चात्य देशों के हितों को चोट पहुंचाने का आरोप है। यही नहीं इस आतंकवादी गिरोह पर अफगानिस्तान में भारतीय हितों को बुरी तरह क्षति पहुंचाने का भी आरोप है। इनमें 2008 में काबुल में भारतीय दूतावास पर हमला भी शामिल है जिसमें 58 लोग मारे गए थे। अमरीकी रक्षा मंत्री ने इस संबंध में एक बयान में कहा है कि ‘‘पाकिस्तानी अधिकारियों के साथ अपने विचार-विनिमयों में हम बार-बार इस बात पर जोर देते आ रहे हैं कि सभी सुरक्षित आतंकवाद के अड्डों को समाप्त करना और उन सभी आतंकवादी संगठनों की ताकत कम करना पाकिस्तान के हित में है जो पाकिस्तान और अमरीका के हितों के साथ-साथ क्षेत्र के स्थायित्व के लिए खतरा हैं।’’ 

लगातार दूसरे वर्ष अमरीकी विदेश मंत्री ने नैशनल डिफैंस आथोराइजेशन एक्ट (एन.डी.ए.ए.) के अंतर्गत कांग्रेस को यह प्रमाणित करने से इंकार किया है कि पाकिस्तान ने हक्कानी नैटवर्क के विरुद्ध संतोषजनक कार्रवाई की है। मैटिस से पूर्व ओबामा सरकार में उनके पूर्वगामी एशटन कार्टर यह प्रमाणीकरण करने से इंकार करने वाले प्रथम रक्षा मंत्री थे। बेशक पाकिस्तान को सहायता रोकना पाकिस्तान के प्रति अमरीकी सरकार का एक संकेत है लेकिन अमरीका में पाकिस्तानी लॉबी बहुत मजबूत होने के कारण इस प्रतिबंध को समाप्त भी किया जा सकता है। भारत के हित में यह अधिक लाभदायक होगा कि अमरीकी नियंत्रित सहायता पाकिस्तान को दी जाए। कहीं ऐसा न हो कि पाकिस्तान चीन की ओर ही अपना रुख कर ले।


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