ऐसे ही हमेशा बना रहे ‘हिन्दुओं और मुसलमानों में भाईचारा’

punjabkesari.in Wednesday, Aug 07, 2019 - 04:12 AM (IST)

श्रावण मास में जम्मू-कश्मीर में बर्फानी बाबा भोले भंडारी के पवित्र धाम श्री अमरनाथ की यात्रा के अलावा भगवान शिव शम्भू के जलाभिषेक के लिए लाखों बच्चे, बूढ़े, युवा भक्त कांवड़ में पवित्र नदियों का जल भर कर लाते हैं। इन दिनों देश में असहिष्णुता तथा मॉब लिंचिंग की घटनाओं के बीच जारी कांवड़ यात्राओं में हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे की प्रेरक मिसालें देखने को मिल रही हैं : 

अनेक मुसलमान परिवार धर्म की दीवार तोड़ कर शिव भक्तों के लिए कांवड़ बनाते हैं। मेरठ के एक कांवड़ बनाने वाले अल्ताफ का परिवार 3 पीढिय़ों से शिव भक्तों के लिए कांवड़ तैयार करता आ रहा है। रामपुर में मतलूब अहमद श्रावण के पूरे महीने में बिना कोई मोल-भाव किए ङ्क्षहदू भाइयों के लिए कांवड़ बनाते हैं। प्रतिवर्ष सैंकड़ों शिव भक्त उनकी बनाई कांवड़ में गंगाजल लाते हैं। 30 वर्षों से कांवड़ बना रहे मतलूब अहमद को स्थानीय लोग ‘कांवड़ वाले मतलूब भाई’ कहने लगे हैं। 

हरिद्वार में कम से कम 25 मुसलमान परिवार कांवड़ बनाने का काम करते हैं जिसे वे अपने रोजगार के साथ-साथ पुण्य का काम भी मानते हैं। इनमें महिलाएं भी शामिल हैं और इनके बच्चे भी। वे स्कूल भी जाते हैं और कांवड़ भी बनाते हैं। संगम नगरी प्रयागराज में गंगा पर बने शास्त्री पुल पर एकत्रित मुस्लिम युवाओं और बुजुर्गों ने काशी जा रहे कांवडिय़ों पर गुलाब के फूलों की वर्षा कर उनका स्वागत किया और फल भेंट कर शुभकामनाएं दीं। बागपत के इंछोड़ गांव के मुस्लिम युवक बाबू खान ने हरिद्वार से कांवड़ लाकर अपने गांव के शिवालय में भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक किया। बाबू खान कहता है, ‘‘इधर गीता है और उधर कुरान। सब धर्मों को एक धर्म समझ कर मैंने 2018 में कांवड़ उठाई थी। मैं दो बार कांवड़ लेकर आया हूं और देश में आपसी भाईचारे का संदेश देना चाहता हूं।’’ 

बागपत के काठा गांव के रहने वाले शौकीन खान ने भी दूसरी बार हरिद्वार से कांवड़ लाकर गांव के शिव मंदिर में जलाभिषेक किया। भोले बाबा की ऐसी कृपा बरसी कि कांवड़ यात्रा के दौरान सारे रास्ते में इनकी सेवा करने वालों का तांता लगा रहा और लोगों को जब उनके मुसलमान होने का पता चलता तो और भी ज्यादा सम्मान मिलता। मुजफ्फरपुर के निकट गंगनहर पुल पर तिस्सा गांव की ‘भाईचारा अमन कमेटी’ के युवकों ने कांवडिय़ों को दूध-इमरती खिलाई। 

इंदौर में महाकाल को चढ़ाने के लिए नर्मदा का जल लाने वाले सैंकड़ों कांवडिय़ों का मुस्लिम भाईचारे के सदस्यों ने इंदौर में स्वागत किया और यात्रा के संयोजक गोलू शुक्ला को ताजुद्दीन औलिया बाबा (नागपुर) की ओर से भेजी हुई चादर भेंट की। इस अवसर पर शेख फिरोज अब्बास ने बाबा का संदेश सुनाने के अलावा निम्र शे’र भी पढ़ा :
‘‘बनानी है हमें कौमी एकता की दीवारें यूं,
कहीं मैं राम लिख दूं तो तुम रहमान लिख देना,
और कफन के किसी कोने पर हिन्दुस्तान लिख देना।’’ 

अमरोहा के मुसलमानों ने पूरा महीना कांवडिय़ों के जलपान की व्यवस्था और सुरक्षा का संकल्प लिया है। वहां मुस्लिम भाइयों ने थके हुए कांवडिय़ों के पैरों की मालिश और चोटों पर मरहम-पट्टी भी की। हरिद्वार में मुस्लिम समाज के लोगों ने कांवडिय़ों को फलाहार करवाया। सरयू नदी से पवित्र जल लेकर अयोध्या लौटे कांवडिय़ों पर मुसलमानों ने गुलाब की पंखुडिय़ों की वर्षा की और ‘बम-बम भोले’ के नारे भी लगाए। पूर्वी दिल्ली में कांवडिय़ों के एक शिविर में विधायक हाजी इशराक खान ने कांवडिय़ों के हाथ-पैर दबाए और दोनों हाथ उठाकर ‘जय-जय बम-बम भोले’ तथा ‘जय श्री राम’ के जयकारे लगाए। 

देश भर में कांवडिय़ों का अपार स्वागत किया जा रहा है तथा विशेष रूप से दिल्ली के मंदिरों और कालोनियों में शिव भक्त कांवडिय़ों के स्वागत के लिए भव्य प्रबंध किए गए हैं। उक्त उदाहरणों से स्पष्टï है कि यदि नफरत के व्यापारियों को छोड़ दें तो आज भी हिन्दू और मुसलमान एक-दूसरे से भरपूर प्यार करते हैं। भले ही दोनों ने एक मां की कोख से जन्म न लिया हो लेकिन इनमें प्रेम कम नहीं है। यही संदेश ये दोनों धार्मिक यात्राएं समस्त विश्व को दे रही हैं।—विजय कुमार 


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