सर्व धर्म सम-भाव और भाईचारे की रोशनी फैलाती चंद मुस्लिम कन्याएं

punjabkesari.in Saturday, Feb 20, 2016 - 01:56 AM (IST)

इस समय जबकि देश में साम्प्रदायिक और असहिष्णुता की घटनाओं के कारण वातावरण अत्यंत तनावपूर्ण बना हुआ है, अनेक लोग अपने सद्प्रयासों से देशवासियों को भाईचारे के बंधनों में बांधे रखने का सराहनीय प्रयास कर रहे हैं और इन प्रयासों में बड़ों के साथ-साथ चंद बच्चे भी शामिल हैं। 

 
मुम्बई की रहने वाली मुस्लिम स्कूली छात्रा मरियम सिद्दीकी ने गत वर्ष इस्कॉन द्वारा आयोजित ‘गीता चैम्पियन्स लीग’ प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। यह प्रतियोगिता सभी धर्मों के छात्रों के लिए थी और इसमें 3000 प्रतियोगियों ने भाग लिया था। 
 
अभी हाल ही में 2 अन्य मुस्लिम कन्याओं ने भी हिन्दू धर्म ग्रंथों ‘रामायण’ और ‘गीता’ के ज्ञान संबंधी परीक्षाएं जीत कर धर्मनिरपेक्षता तथा ‘सर्व धर्म सम-भाव’ की एक मिसाल पेश की है। उन्होंने अपने  परिजनों के प्रोत्साहन और प्रेरणा से हिन्दू धर्म के संबंध में अभूतपूर्व ज्ञान प्राप्त किया। 
 
इस शृंखला में पहला नाम आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में पुत्तूर की रहने वाली 9वीं कक्षा की मुस्लिम छात्रा फातिमा राहिला का है। इस प्रतियोगिता में राहिला के साथ उसके स्कूल के 39 बच्चों ने हिस्सा लिया था, इस परीक्षा में आठवीं और नौवीं क्लास के छात्र ही हिस्सा ले सकते थे।
 
फातिमा राहिला ने न केवल 93 प्रतिशत अंक प्राप्त किए बल्कि वह जिले की सूची में भी सबसे अव्वल रही। भारतीय संस्कृति प्रतिष्ठïान द्वारा नवम्बर 2015 में ‘रामायण’ को लेकर इस परीक्षा का आयोजन किया गया था जिसका परिणाम इस मास घोषित किया गया है। 
 
राहिला के पिता इब्राहिम एक फैक्टरी में कर्मचारी तथा मां एक गृहिणी हैं। राहिला के पिता के अनुसार इस प्रतियोगिता के लिए उसके चाचा ने उसकी काफी मदद की। राहिला का परिवार चाहता था कि उनकी बेटी इस प्रतियोगिता में अव्वल आए और उनकी यह मुराद पूरी हुई। 
 
अक्सर किसी धर्म के ज्ञान सम्बन्धी परीक्षाओं में ऐसे विद्याॢथयों का नम्बर लगता है जिनके परिवार में उन धर्म ग्रंथों का पारायण होता हो लेकिन मुस्लिम परिवार की राहिला ने रामायण पर आधारित परीक्षा में टॉप करके अपने सर्व धर्म सम-भाव संबंधी दृष्टिकोण का प्रमाण दिया है। 
 
 इसी शृंखला में दूसरा नाम मेरठ की 7 वर्षीय मुस्लिम बच्ची रिदा जेहरा का है जिसे गीता के 12वें और 15वें अध्यायों के जुबानी याद हैं। नेत्रहीन रिदा जैसे ही गीता पढऩा शुरू करती है तो स्वत: ही उसकी आंखें श्रद्धा से बंद हो जाती हैं और वह अपने दोनों हाथ जोड़ लेती है। 
 
3 वर्षों से मेरठ में नेत्रहीनों के एक स्कूल की छात्रा रिदा ने न ही कभी पुस्तकें देखी हैं व न ही ब्रेल के माध्यम से गीता पढ़ी है। बस चिन्मय मिशन द्वारा आयोजित एक प्रतियोगिता की तैयारी के सिलसिले में रिदा ने अपनी एक अध्यापिका की सहायता से गीता के 15वें अध्याय की तैयारी के सिलसिले में गीता याद करनी शुरू की थी। 
 
रिदा को इस सफलता के लिए राज्य पुरस्कार भी मिल चुका है। उसके पिता रईस हैदर ने तो यह सोच कर उसे स्कूल में भर्ती करवाया था कि बच्ची पढ़-लिख कर अपने पैरों पर खड़ी होने योग्य हो जाएगी परंतु आज उनकी इस दृष्टिïबाधित पुत्री ने उनका नाम रोशन कर दिया है और सबसे बड़ी बात यह है कि वह सिर्फ गीता का ही अध्ययन नहीं कर रही, बल्कि पवित्र कुरान का भी समान रूप से अध्ययन कर रही है। 
 
आज जबकि हमारा देश साम्प्रदायिक हिंसा और असहिष्णुता का शिकार हो रहा है, मरियम, राहिला और रिदा जैसी बच्चियां दूसरे धर्मग्रंथों का अध्ययन करके देश में सर्व धर्म सम-भाव और भाईचारे की भावना को बढ़ावा दे रही हैं। अन्य लोगों को भी अपने बच्चों को अपने धर्म के साथ-साथ दूसरे धर्मों के संबंध में जानकारी दिलवानी चाहिए ताकि सर्व धर्म सम-भाव और भाईचारे का यह संदेश दूर-दूर तक फैले।    
 

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