रोहिंग्याओं की वापसी के लिए म्यांमार और बंगलादेश सरकारों में समझौता

punjabkesari.in Monday, Nov 27, 2017 - 12:15 AM (IST)

रोहिंग्या म्यांमार में एक राज्यविहीन अल्पसंख्यक समुदाय है जो वहां लम्बे समय से उत्पीडऩ और अत्याचार झेलता आ रहा है। अब विश्व समुदाय तथा विशेषकर अमरीका की ओर से पड़ रहे दबाव के बीच म्यांमार ने उन लाखों रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस लेने पर 23 नवम्बर को सहमति जता दी जिन्होंने अपने देश में सैन्य कार्रवाई की वजह से भाग कर बंगलादेश में शरण ले रखी है।

उल्लेखनीय है कि म्यांमार के रखाईन प्रांत में इस वर्ष अगस्त मास में रोहिंग्याओं द्वारा पुलिस चौकियों पर भारी हमले किए जाने के बाद उनके दमन के लिए की गई सैन्य कार्रवाई के बाद से अब तक 6 लाख 20 हजार लोग पलायन करके बंगलादेश चले आए हैं और अमरीका के विदेश मंत्री रैक्स टिलरसन ने म्यांमार की सैन्य कार्रवाई को नस्ली संहार करार दिया था।

बंगलादेश के विदेश मंत्रालय के एक बयान में कहा गया है कि कई सप्ताह की बातचीत के बाद पड़ोसी देशों बंगलादेश व म्यांमार ने विस्थापित रोहिंग्याओं की वापसी की व्यवस्था को लेकर हस्ताक्षर किए।

इस संंबंध में म्यांमार की नेता आंग सान सू की और बंगलादेश के विदेश मंत्री अबुल हसन महमूद अली से राजधानी नेपीताव में बातचीत की और हफ्तों की खींचतान के बाद दोनों देशों ने इस संबंध में एक करार पर हस्ताक्षर किए।

बंगलादेश के अधिकारियों के अनुसार जिस करार पर हस्ताक्षर किए गए हैं उसको लेकर पिछले कुछ महीनों से बातचीत हो रही थी और 22 नवम्बर को दोनों देशों के वरिष्ठï अधिकारियों ने इसे अंतिम रूप दे दिया।

इस संबंध में बंगलादेश ने एक संक्षिप्त बयान में कहा है कि दोनों पक्षों ने दो महीनों के भीतर शरणार्थियों की म्यांमार के लिए वापसी की प्रक्रिया शुरू कराने पर सहमति जताई है। बंगलादेश के विदेश मंत्री अबुल हसन महमूद अली ने म्यांमार के रखाईन प्रांत के लिए & एम्बुलैंस भी प्रदान कीं।

सू की और उनके बंगलादेशी समकक्ष के बीच यह बातचीत पोप फ्रांसिस के इन दोनों देशों के दौरे से पहले हुई है जो रोहिंग्याओं की दुर्दशा के बारे में मुखर होकर सामने आए हैं।

बंगलादेश के विदेश मंत्री ने मीडिया के सामने दिए एक संक्षिप्त बयान में कहा है कि ‘‘यह शुरूआती कदम है। वे रोहिंग्या को वापस ले लेंगे। अब हमें काम शुरू करना होगा। तीन सप्ताह के भीतर एक कार्य समूह का गठन किया जाएगा जो शरणार्थियों की वतन वापसी की तैयारियों का मार्ग प्रशस्त करेगा।’’ परंतु इस समय यह स्पष्ट नहीं है कि कितने रोहिंग्या शरणार्थियों को वापसी करने दी जाएगी और इस पूरी प्रक्रिया में कुल कितना समय लगेगा।

उल्लेखनीय है कि विभिन्न सहायता एजैंसियों ने रोहिंग्याओं की सुरक्षा की गारंटी दिए बिना उनकी जब्री वापसी के संबंध में चिंता व्यक्त की थी। बहरहाल अब म्यांमार के एक वरिष्ठï अधिकारी मिंट क्यांग ने कहा है कि वे जितनी जल्दी हो सके रोहिंग्याओं को लेने के लिए तैयार हैं।

म्यांमार में रोहिंग्याओं की वापसी की शर्तें फिलहाल अस्पष्ट हैं और अनेक रोहिंग्या वापस भेजे जाने के नाम से ही भयभीत हैं। बंगलादेश के कुटू पालोंग शरणार्थी शिविर में रहने वाले रोहिंग्याओं का कहना है कि वे अपनी नागरिकता तथा अपनी भूमि की वापसी की गारंटी चाहते हैं। सईद हुसैन नामक एक रोहिंग्या शरणार्थी ने कहा कि, ‘‘यदि वे हमें तंग न करें और हम वहां बौद्धों एवं अन्य नस्ली अल्पसंख्यकों की भांति रह सकें तभी वापस जाएंगे।’’

इसी प्रकार नरूशा नामक एक महिला ने कहा, ‘‘मैं म्यांमार सरकार पर विश्वास नहीं करती। मेरा पति तीन बार वहां से भागा और यह मेरा दूसरा मौका है। म्यांमार सरकार हमेशा ऐसा ही करती है।’’

गत सप्ताह म्यांमार के शक्तिशाली सैन्य प्रमुख मिन ओंग हलेंग ने अमरीकी विदेश मंत्री रैक्स टिलरसन को कहा था कि रोहिंग्या तभी म्यांमार लौट सकते हैं यदि देश के वास्तविक नागरिक उन्हें स्वीकार करें। उल्लेखनीय है कि उनका इशारा देश के बहुसंख्यक बौद्धों के रखाईन समुदाय की ओर था।

बंगलादेश अपने देशवासियों को यह जताना चाहता है कि रोहिंग्या यहां के स्थायी निवासी नहीं होंगें जबकि रोहिंग्याओं की वर्तमान ‘बाढ़’ से पहले ही वहां 4,00,000 रोहिंग्या मौजूद थे।

इसी बीच पोप फ्रांसिस म्यांमार जाने वाले हैं जहां वह म्यांमार के सेना प्रमुख तथा आंग सान सू की के अलावा जन प्रतिनिधियों से मिलने के बाद बंगलादेश जाकर रोहिंग्या शरणार्थियों से मिलेंगे। हालांकि एमनैस्टी इंटरनैशनल ने इस बात पर संदेह व्यक्त किया है कि रोहिंग्याओं की म्यांमार में सुरक्षित अथवा सम्मानजनक वापसी हो सकेगी फिर भी इस समस्या को सुलझाने के लिए किए जाने वाले प्रयास प्रशंसनीय हैं।  


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