रसायनों से विषैले हुए फल-सब्जियों के बाद अब विषैली मछलियां

punjabkesari.in Saturday, Aug 04, 2018 - 02:52 AM (IST)

देश में प्रत्येक क्षेत्र में उचित-अनुचित तरीके से धन कमाने की होड़ सी लगी हुई है तथा स्वार्थी तत्व इसके लिए लोगों के स्वास्थ्य तक से खिलवाड़ कर रहे हैं। बाजार में नकली दवाओं और हानिकारक रासायनिक पदार्थों द्वारा पकाए फल-सब्जियों की भरमार एवं बिक्री इसी का प्रमाण है। 

आम, केला और पपीता जैसे फलों को जल्दी पकाने के लिए कुदरती तरीकों की बजाय जानलेवा प्रतिबंधित मसालों का इस्तेमाल किया जा रहा है। पिछले महीने उत्तर प्रदेश के पिपरिया में आम खाने से एक बच्ची की मृत्यु हो गई तथा 4 अन्य गंभीर बीमार हो गईं। यह आम कैंसर कारक प्रतिबंधित कैमिकल ‘कैल्शियम कार्बाइड’ पाऊडर तथा प्रतिबंधित ‘एथीलिन पाऊडर’ से पकाया हुआ पाया गया। आम को क्रेट में पैक करते समय कार्बाइड या एथीलिन डाल दिया जाता है। पानी में एथीलिन का घोल बनाकर उसमें आम को डुबो कर निकालने के बाद सुखाया जाता है। इससे आम पीला व चमकीला हो जाता है। 

इसी प्रकार केला कुदरती तौर पर पकाने की बजाय अब रासायनिक पदार्थों से पकाया जाता है। पपीते को लम्बे समय तक ताजा रखने के लिए ‘पैराइड कैमिकल’ का लेप किया जाता है। कैल्शियम कार्बाइड, एसिटिलीन, एथीलिन, प्रॉपलीन, इथरिल, ग्लाइकॉल और एथेनॉल आदि को फल पकाने के काम में लाया जा रहा है। इनमें कैल्शियम कार्बाइड बेहद हानिकारक है और इसका उपयोग पूर्णत: प्रतिबंधित है।अधिक मात्रा में यह शरीर में चला जाए तो फेफड़े क्षतिग्रस्त हो सकते हैं, पैप्टिक अल्सर हो सकता है और व्यक्ति की स्नायु प्रणाली क्षतिग्रस्त हो सकती है। गर्भवती महिला के बच्चे में कई विकृतियां हो सकती हैं। 

कैमिकल से पके फलों के सेवन से चक्कर आना, उल्टी, खूनी दस्त, पेट और सीने में जलन, गला सूखना, कमजोरी, निगलने में तकलीफ, आंखों और त्वचा में जलन, आंखों को हमेशा के लिए गंभीर क्षति, मुंह, नाक और गले में सूजन व छाले और सांस लेने में तकलीफ, स्मृति क्षीणता, खाद्य विषाक्तता, कैंसर, नजर का धुंधलाना, मोटापा, ब्लड प्रैशर, हाईपरटैंशन, हमेशा पेट खराब रहना तथा अन्य बीमारियां शामिल हैं। सब्जियों को उगाने में प्रयुक्त कीटनाशक पेट में जाने से देश में डायबिटीज के मामले भी बढ़ रहे हैं। अधिकांश सब्जियों और फलों में उर्वरकों का इस्तेमाल होता है जिनसे पाचनतंत्र पर बुरा असर पड़ता है। 

इसी प्रकार विभिन्न सब्जियों लौकी, कद्दू, खीरा, बैंगन, टमाटर आदि को कम समय में बड़ा करके बाजार में लाने के लिए हानिकारक कैमिकल लेप तथा आक्सीटोसिन इंजैक्शन लगाए जा रहे हैं। आक्सीटोसिन इंजैक्शन को यदि एक लौकी के छोटे से फल में लगा दिया जाए तो सुबह तक वह बड़ी हो जाती है। ऐसे ही तोरई, कद्दू, तरबूज, खरबूजा, कटहल आदि का आकार फटाफट बढ़ाने में इसका उपयोग होता है। जैसे कि इतना ही काफी नहीं था। हाल ही में यह रहस्योद्घाटन हुआ है कि देश में गुजरात, उड़ीसा, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और बंगाल से देश के विभिन्न भागों में सप्लाई की जाने वाली मछलियों को ‘ताजा’ रखने के लिए ‘फोरमालिन’ नामक खतरनाक कैमिकल का लेप किया जा रहा है। 

इसका इस्तेमाल आमतौर पर शवगृहों में लाशों के लेपन में किया जाता है। हाल ही में चंडीगढ़ और पंजाब में बेची जाने वाली मछलियों की 2 लोकप्रिय किस्मों में इसकी मौजूदगी पाई गई। यह कैमिकल इतना तेज है कि 5 प्रतिशत फोरमालिन और 95 प्रतिशत पानी का घोल मछलियों को 100 वर्ष तक ‘सुरक्षित’ रख सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार यह एंजाइम्स को अस्त-व्यस्त करके और पाचन प्रणाली को नाकारा करके पेट की गंभीर बीमारियों को जन्म दे सकता है। यह श्वास नली, फेफड़ों, जिगर, किडनी को प्रभावित करने के साथ-साथ एलर्जी, ब्रोंकाइटिस, निमोनिया और कैंसर का भी कारण बन सकता है। इससे भोजन पोषक तत्व खो देता है। यह भोजन पचता नहीं तथा उसी हालत में मल के रूप में शरीर से निकल जाता है। 

अभी तक तो फलों और सब्जियों में ही हानिकारक रासायनिक पदार्थ पोषाहार विशेषज्ञों के लिए ङ्क्षचता का विषय बने हुए थे, अब मछलियों को ताजा रखने के लिए उन पर हानिकारक ‘फोरमालिन’ के लेप का पता चलने के बाद मछली प्रेमियों को भी सावधान हो जाना चाहिए क्योंकि ‘फोरमालिन लेपित मछली’ का सेवन उन्हें किसी गंभीर बीमारी का शिकार भी बना सकता है।—विजय कुमार 


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Pardeep

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