आतंकवाद के विरुद्ध लडऩे वाले कामरेड ए.बी. बर्धन का निधन

punjabkesari.in Monday, Jan 04, 2016 - 12:43 AM (IST)

लम्बे समय से बीमार चल रहे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता ए.बी. बर्धन (92) का 2 जनवरी रात्रि 8.30 बजे दिल्ली में निधन हो गया। सिलहट (वर्तमान बंगलादेश) में 24 सितम्बर 1924 को जन्मे श्री बर्धन ने अपना राजनीतिक करियर 1940 में देश के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अखिल भारतीय स्टूडैंट फैडरेशन के नेता के रूप में आरंभ किया और कम्युनिस्ट धारा में शामिल होकर भाकपा में आ गए।

मजदूर संगठन आंदोलन और महाराष्ट में वामपंथी राजनीति का चेहरा रहे अद्र्धेन्दू भूषण बर्धन ने स्वतंत्रता आंदोलन में 20 बार गिरफ्तार होकर 4 वर्ष जेल में बिताए और बाद में वह भारत के सबसे पुराने मजदूर संगठन ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के महासचिव बने।
 
वह 1990 के दशक में भाकपा के उपमहासचिव और 1996 में इंद्रजीत गुप्त के स्थान पर पार्टी के महासचिव बने और 1996 से 2012 तक 16 वर्ष भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव रहे।
 
अडिग सिद्धांतवादिता व स्पष्टवादिता के लिए सम्मानित श्री बर्धन ने राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हें 90 के दशक में भाकपा को आगे बढ़ाने का श्रेय जाता है। 1996 में केंद्र की गठबंधन सरकार में भाकपा को शामिल करवाने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इंद्रजीत गुप्त केंद्रीय गृह मंत्री बने। वह स्व. ज्योति बसु के इस कथन से सहमत थे कि 1996 में प्रधानमंत्री पद स्वीकार न करना वामपंथी दलों की ऐतिहासिक भूल थी। 
 
2011 में तृणमूल कांग्रेस के हाथों वामपंथी मोर्चे की बंगाल में भारी पराजय के बाद वह बार-बार वामपंथी नेताओं को चेतावनी देते रहे कि यदि उन्होंने स्वयं को नहीं बदला तो उनका सफाया हो जाएगा। 
 
9 सितम्बर 1981 को पूज्य पिता लाला जगत नारायण जी के बलिदान के बाद पंजाब में शुरू हुए आतंकवाद के काले दौर के दौरान 25000 लोग मारे गए जिनमें आमजन के अलावा कम्युनिस्ट, कांग्रेस, भाजपा व अकाली सभी राजनीतिक दलों के नेता सर्वश्री दर्शन सिंह कैनेडियन, दीपक धवन, सुखदेव सिंह उमरानंगल, संत लौंगोवाल, जोङ्क्षगद्र पाल पांडे व हिताभिलाषी आदि शामिल थे। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह भी आतंकवादियों के हाथों ही शहीद किए गए।
 
उस काले दौर में जब संत-महात्मा व बड़े राजनीतिक दलों के नेता पंजाब आने से डरते थे, आतंकवाद ग्रस्त इलाकों का दौरा करने में ज्योति बसु, सोमनाथ चटर्जी, ए.बी. बर्धन तथा गुरुदास दासगुप्त जैसे नेता अग्रणी थे जिनका पंजाब में आतंकवाद के विरुद्ध लडऩे में महत्वपूर्ण योगदान रहा। 
 
इन्होंने अपने प्राणों की परवाह न करते हुए पंजाब में कई रैलियां कीं और विशेष रूप से आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित माझा इलाके के गांवों और अमृतसर तथा तरनतारन आदि के दौरे करके लोगों का मनोबल बढ़ाया। 
 
इसी सिलसिले में स्व. बर्धन ने जालंधर के देशभगत यादगार हाल में भी एक रैली को संबोधित किया था जिसमें उन्होंने ‘पंजाब केसरी ग्रुप’ द्वारा आतंकवाद पीड़ितों के लिए शुरू किए गए शहीद परिवार फंड की सराहना की थी। 
 
यह फंड अभी तक जारी है और इसके अंतर्गत 9295 परिवारों को सहायता दी जा चुकी है और अब इसकी राशि 15 करोड़ के निकट पहुंचने वाली है। श्री बर्धन ने 23 जनवरी 2011 को आयोजित शहीद परिवार फंड के 103वें समारोह में भाग लिया था और भाषण देते हुए कहा था कि :
 
‘‘आतंकवाद से हुई क्षति की भरपाई के लिए केंद्र सरकार ने विभिन्न योजनाएं बनाई हैं पर वास्तव में मैंने इन पर अमल होते हुए नहीं देखा। ये तो ‘ऊंची दुकान और फीका पकवान’ वाली कहावत पर खरी उतरती हैं। आतंकवाद के कारणों को जानने की जरूरत है और इससे निपटने के लिए सख्ती की जानी चाहिए। देश की जनता भुखमरी, महंगाई और भ्रष्टïाचार से पीड़ित है परंतु इसके बावजूद आतंकवाद सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है।’’  
 
श्री सतपाल डांग, कामरेड जगजीत सिंह आनंद जैसे प्रखर नेताओं को तो हम हाल ही में खो चुके हैं। अब पंजाब के अंधकारमय दौर में यहां आकर अपने भाषणों से हताश और निराश लोगों में आशा का दीपक जलाने वाले नेता ए.बी. बर्धन का बिछुडऩा उनके शुभचितकों के लिए ही नहीं बल्कि वामपंथी आंदोलन के लिए भी अपूर्णीय क्षति है।
 
इसीलिए सभी विचारधाराओं के नेताओं ने उनकी मृत्यु पर दुख व्यक्त किया है। नि:संदेह श्री बर्धन हमेशा एक जुझारू नेता के रूप में याद किए जाएंगे जो जीवन भर वंचित और हाशिए पर पड़े लोगों के लिए लड़ते रहे: 
 
‘जो बादा कश थे पुराने वो उठते जाते हैं,
कहीं से आबे बका-ए-दवाम ला साकी। 

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