यहां शतचंडी का पाठ करने से दूर होते हैं क्लेश, जानिए क्यों मां काली कहलाई चामुंडा देवी

punjabkesari.in Friday, Mar 31, 2017 - 09:54 AM (IST)

नेशनल डैस्कः नवरात्रों का पावन पर्व चल रहा है और आज मां के चतुर्थ रूप कूष्माण्डा की पूजा हो रही है। कूष्माण्डा माता का अर्थ है कि पूरा जगत उनके पैर में है। पंजाब केसरी इन नवरात्रों में मां के श्रद्धालुओं को शक्तिपीठों के दर्शन करवा रहा है। इसी कड़ी में आज मां चामुंडा देवी के दर्शन करवा रहे हैं। हिन्दू श्रद्धालुओं का मुख्य केंद्र और 51 शक्तिपीठों में एक चामुंडा देवी देव भूमि हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित है। बंकर नदी के तट पर बसा यह मंदिर महाकाली को समर्पित है। मान्यता है कि यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामना पूर्ण होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी स्थान पर माता सती का चरण गिरा था। देश के कोने-कोने से भक्त यहां पर आकर माता का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य बहुत अद्भुत है। मां काली बुराई का संहार करने वाली देवी हैं।

मान्यता
चामुंडा देवी मंदिर को चामुंडा नन्दिकेश्वर धाम के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि चामुंडा देवी मंदिर में ‘शिव और शक्ति’ का वास है। चामुंडा देवी के मंदिर के पास भगवान शिव विराजमान है जो कि नन्दिकेश्वर के नाम से जाने जाते है। चामुंडा देवी जी का मंदिर बाणगंगा (बानेर) नदी के किनारे पर स्थित है। नवराात्रि के त्यौहार के दौरान बड़ी संख्या में लोग दर्शनों के लिए मंदिर में आते है। चामुंडा देवी मंदिर भगवान शिव और शक्ति का स्थान है। भक्तों में मान्यता है कि यहां पर शतचंडी का पाठ सुनना और सुनाना मां की कृपा पाने के लिए सबसे सरल तरीका है और इसे सुनने और सुनाने वाले का सारे क्लेश दूर हो जाते हैं।

मां काली चामुण्डा क्यों कहलाती हैं
दुर्गा सप्तशती के सप्तम अध्याय में वर्णित कथाओं के अनुसार एक बार चण्ड-मुण्ड नामक दो महादैत्य देवी से युद्ध करने आए तो देवी ने काली का रूप धारण कर उनका वध किया था। माता देवी की भृकुटी से उत्पन्न कलिका देवी ने जब चण्ड-मुण्ड के सिर देवी को उपहार स्वरुप भेंट किए तो देवी भगवती ने प्रसन्न होकर उन्हें वर दिया कि तुमने चण्ड-मुण्ड का वध किया है, अतः आज से तुम संसार में चामुंडा के नाम से विख्यात होंगी। इसी कारण भक्तगण देवी के इस स्वरुप को चामुंडा रूप में पूजते हैं।

मंदिर स्थापना की कथा
लगभग 400 साल पहले एक राजा और ब्राह्मण पुजारी ने मंदिर को एक उचित स्थान पर स्थानांतरित करने के लिए देवी मां से अनुमति मांगी। देवी मां ने इसकी सहमति देने के लिए पुजारी को सपने में दर्शन दिए और एक निश्चित स्थान पर खुदाई करने निर्देश दिया। खुदाई के स्थान पर एक प्राचीन चामुंडा देवी मूर्ति पाई गई। चामुंडा देवी की मूर्ति को उसी स्थान पर स्थापित किया गया और उसकी उसी रूप में पूजा की जाने लगी।

कहते हैं जब पुजारी ने राजा को अपने स्वप्न के बारे में बताया तो राजा ने मूर्ति को बाहर निकालने के लिए कुछ पुरुषों को लगाया लेकिन इतने सारे पुरुष भी मिलकर माता की मूर्ति को हिला नहीं पाए। इस सब काफी निराश हुए। मां ने फिर से पुजारी को दर्शन दिए और कहा कि मेरी मूर्ति को वो एक साधारण पत्थर समझ कर उसे बाहर निकालने की कोशिश कर रहे हैं इसलिए तुम सुबह जल्दी उठकर स्नान कर और शुद्ध वस्त्र पहन कर सम्मानजनक अगर उस मूर्ति को बाहर निकालोगे तो तुम अकेले ही उसे उठा सकते हो। पुजारी ने वैसा ही किया तो सभी हैरान रह गए, इस पर पुजारी ने मां की शक्ति के बारे में सबको बताया। आज भी मां चामुंडा देवी में विराजमान है।


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