रसोई में किया गया ये काम प्रेतात्माओं और पितरों को देता है निमंत्रण

punjabkesari.in Tuesday, Nov 21, 2017 - 02:03 PM (IST)

अन्न पूर्णतः मन को प्रभावित करता है तथा मन का सेहत, रोग और जीवन से गहरा संबंध है। यही वजह है कि जैसा अन्न वैसा मन और जैसा मन वैसा तन व जीवन बनता है। शास्त्रानुसार गूंथे आटे को उसी पिण्ड के समान माना जाता है जो पिण्ड मृत्यु पश्चात जीवात्मा को समर्पित किया जाता हैं। अन्न मात्र शरीर को ही नहीं परंतु मन-मस्तिष्क को भी पूर्णतः प्रभावित करता है। दूषित भोजन का सेवन न सिर्फ आपके तन-मन को अपितु आपकी पीढ़ियों तक को प्रभावित करता है। सनातनकाल से ही ऋषि-मुनियों ने श्रेष्ठ जीवन जीने हेतु जो मार्ग बताए हैं उनमें भोजन पर विशेष जोर दिया है।


ताजा खाना खाने से तन-मन स्वस्थ रहने के साथ-साथ मन-मस्तिष्क निर्मल बना रहता है और रोगों को पनपने से रोकता है परंतु पिछले कुछ दशकों से इलेक्ट्रॉनिक आधुनिकीकरण कि वजह से रेफ्रिजरेटर का उपयोग अत्यधिक बढ़ा है तब से हर घर में बासी भोजन का इस्तेमाल भी तेजी से बढ़ा है। इसी कारण भारतीय परिवारों और समाज में तामसिकता अपना परचम फैला रही है। ताजा खाना खाने से जीवन में नवीन विचारों और स्फूर्ति का आवाहन होता है। इसके विपरीत बासी खाना खाने से गुस्से, आलसीपन, मद और अहंकार तेजी से जीवन में अपने पांव फैलाते हैं।


कई पौराणिक शास्त्रों में ऐसा वर्णित है कि बासी खाना प्रेतों का भोजन होता है और इसका भक्षण करने वाला व्यक्ति जीवन में निराशा, बीमारियां, क्रोध और चिड़चिडे़पन से घिरा रहता है। आजकल अधिकतर भारतीय परिवारों कि महिलाएं समय बचाने  हेतु रात को गूंथा हुआ आटा लोई बनाकर रेफ्रिजरेटर में रख देती हैं और अगले दो से पांच दिनों तक इसका इस्तेमाल होता है। गूंथे हुए आटे को उसी पिण्ड समान माना जाता है जो पिण्ड मृत्यु के बाद जीवात्मा के लिए समर्पित किए जाते हैं। किसी भी परिवार में जब गूंथा हुआ आटा रेफ्रिजरेटर में रखने चलन हो जाता है तब प्रेतात्माएं और पितृ इस पिण्ड का भक्षण करने हेतु घर में आना शुरू कर देते हैं। जो प्रेतात्माएं और पितृगण पिण्ड पाने से वंचित रह जाते हैं ऐसे में वो रेफ्रिजरेटर में रखे इस पिण्ड से तृप्ति पाने का उपक्रम करते रहते हैं।


जिन घरों में भी बासी गूंथे आटे को रेफ्रिजरेटर में रखने का प्रचलन बना हुआ है वहां किसी न किसी प्रकार के अनिष्ट, रोग-शोक और क्रोध तथा आलस्य अपना पांव पासार ही लेते हैं। इस बासी और प्रेत भोजन को खाने वाले लोगों को अनेक समस्याओं से घिरना पड़ता है। आप अपने इर्द-गिर्द पड़ोसियों, दोस्तों, रिश्तेदारों के घरों में इस प्रकार की स्थितियां देखें और उनकी दिनचर्या का तुलनात्मक अध्ययन करें तो पाएंगे कि वे किसी न किसी उलझन से घिरे रहते हैं। आटा गूंथने में लगने वाले समय बचाने हेतु किया जाने वाला यह चलन शास्त्र विरुद्ध और अनुचित है। हमारे पूर्वज सैदेव यही राय देते आए हैं कि गूंथा हुआ आटा रात को नहीं रहना चाहिए। उस जमाने में रेफ्रिजरेटर का कोई अस्तित्व नहीं था फिर भी हमारे पूर्वजों को इसके पीछे के रहस्यों की पूरी जानकारी थी।

आचार्य कमल नंदलाल
ईमेल kamal.nandlal@gmail.com


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