दैत्यों के वध के लिए हुआ इनका अवतार, मुट्ठी से प्रहार कर किया असुर का नाश

punjabkesari.in Monday, Aug 07, 2017 - 10:45 AM (IST)

श्रीमद् भागवतम् के प्रथम स्कन्ध के 18वें अध्याय के अनुसार जब भगवान श्रीकृष्ण और भगवान बलराम जी वृंदावन में विहार करते थे तब ग्रीष्म काल में भी बसन्त ॠतु सा ही मौसम रहता था। एक दिन श्रीकृष्ण-बलराम गोप-बालकों के साथ खेल रहे थे। उस समय प्रलम्ब नामक असुर गोप-बालक का वेश धर कर उनके बीच में ही खेलने लगा। सर्वज्ञ श्रीकृष्ण समझ गए कि ये नया आया गोप एक असुर है। श्रीकृष्ण ने उसके वध का उपाय सोच उसे अपने सखा के रूप में वरण कर लिया तथा आयु और बल के अनुरूप दल बनाकर खेल करने के लिए गोप-बालकों को दो दलों में बांट दिया। 

एक दल के नायक श्रीकृष्ण और दूसरे के श्रीबलराम बने। खेल में ऐसी शर्त रखी गई कि जो जिससे हारेगा वह उसे अपने कन्धों पर वहन करेगा। दोनों दल लाइन में खड़े हो गए। खेल आरंभ होने के साथ-साथ श्रीबलराम के दल से श्रीदाम व वृषभ विजयी हुए। श्रीकृष्ण ने श्रीदाम को और श्रीकृष्ण के पक्ष के बालकों में से भद्रसेन ने वृषभ को कंधे पर चढ़ा कर वहन किया। इस तरफ प्रलंबासुर ने श्रीबलराम से हारकर उन्हें कंधे पर बिठा लिया और श्रीकृष्ण की नजरों से अपने आप को बचाता हुआ उल्टी तरफ तेजी से भाग खड़ा हुआ। 

श्रीबलराम असुर के खराब अभिप्राय को समझ गए और उसके कंधों पर अधिक भार देने लगे। बलरामजी को वहन करने में असमर्थ हो जाने पर कपट गोपवेश धारी असुर ने अपना वास्तविक रूप धारण किया। असुर का भयंकर रूप देखकर बलदेवजी ने पहले तो शंका का भाव प्रकाश किया परंतु बाद में यह स्मरण कर कि दैत्यों के वध के लिए ही उनका अवतार है। इंद्र ने जैसे वज्रवेग से गिरि पर प्रहार किया था उसी प्रकार से निःशंकित चित्त से अपहरणकारी असुर के मस्तक पर मुट्ठी से प्रहार किया। 

घूंसे के प्रहार से प्रलंबासुर का मस्तक फट गया और खून की उलटी करते हुए भूमि पर गिरकर उसने प्राण त्याग दिए। श्रीबलराम के इस अलौकिक कार्य को देखकर गोपों तथा देवताओं ने साधुवाद प्रदान करते हुए उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। श्रीलभक्ति विनोद ठाकुरजी ने प्रलंबासुर के वध के तात्पर्य के संबंध में लिखा है कि स्त्रीलाम्पट्य, लाभ, पूजा-प्रतिष्ठा का प्रतीक है प्रलम्बासुर्। श्रीबलराम जी की कृपा से इन अनर्थों के नाश होने से श्रीकृष्ण सान्निध्य प्राप्त करने की योग्यता आती है।
श्री चैतन्य गौड़िया मठ की ओर से
श्री भक्ति विचार विष्णु जी महाराज
bhakti.vichar.vishnu@gmail.com


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