सिंहाचलमः साल में एक ही बार यहां होते हैं भगवान नृसिंह के इस रूप के दर्शन

punjabkesari.in Wednesday, Mar 07, 2018 - 03:29 PM (IST)

पुराणों मान्यताओ के अनुसार सतयुग में भक्त प्रहलाद को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लिया था। इसके बाद ही भगवान विष्णु के इस रूप की पूजा होने लगी। इस कराण भारत में कई जगहों पर इनके इस अवतार के मंदिर भी स्थापित हैं। उन्हीं में से एक आंध्रपदेश के विशाखापट्टनम से महज 16 कि.मी दूर सिंहाचल पर्वत पर स्थित है। यह सिंहाचलम मंदिर के नाम से जाना जाता है, इसे भगवान नृसिंह का घर कहा जाता है।

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इस मंदिर की खासियत ये है कि यहां भगवान नृसिंह मां लक्ष्मी के साथ विराजमान हैं, लेकिन उनकी प्रतिमा पर पूरे समय चंदन का लेप रहता है। केवल अक्षय तृतीया के दिन के लिए यह लेप प्रतिमा से हटाया जाता है, उसी दिन लोग असली नृसिंह प्रतिमा के दर्शन कर पाते हैं। मान्यता है कि इस मंदिर को हिरण्यकशिपु के भगवान नृसिंह के हाथों मारे जाने के बाद प्रहलाद ने बनवाया था। लेकिन वो मंदिर सदियों बाद धरती में समा गया।

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सिंहाचलम देवस्थान की अधिकारिक वेबसाइट के अनुसार इस मंदिर को प्रहलाद के बाद पुरुरवा नाम के राजा ने फिर से स्थापित किया था। पुरुरवा ने धरती में समाए मंदिर से भगवान नृसिंह की प्रतिमा को निकालकर उसे फिर से यहां स्थापित किया और उसे चंदन के लेप से ढंक दिया। तभी से यहां इस तरह पूजा की परंपरा है, साल में केवल वैशाख मास के तीसरे दिन अक्षय तृतीया पर ये लेप प्रतिमा से हटाया जाता है। इस दिन यहां सबसे बड़ा उत्सव मनाया जाता है। 13वीं शताब्दी में इस मंदिर का जीर्णोद्धार यहां के राजाओं ने करवाया था।

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ये मंदिर विशाखापट्टनम शहर से करीब 16 कि.मी दूर स्थित है। विशाखापट्टनम तक रेल, बस और हवाई मार्ग की सुविधा है। विशाखापट्टनम से मंदिर तक बस से या निजी वाहन जाया जा सकता है।


दर्शन का समय
सुबह चार बजे से मंदिर में मंगल आरती के साथ दर्शन शुरू होते हैं। सुबह 11.30 से 12 और दोपहर 2.30 से 3 बजे तक दो बार आधे-आधे घंटे के लिए दर्शन बंद होते हैं। रात को 9 बजे भगवान के शयन का समय होता है।

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