शहीदे-ए-आजम भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु के बलिदान दिवस पर श्रद्धासुमन अर्पित

punjabkesari.in Thursday, Mar 23, 2017 - 03:20 PM (IST)

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है. देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है

 

आज देश आजाद है और यह तोहफा हमें उन महान बलिदानियों ने दिया है जो अपने लिए ही नहीं बल्कि देश के लिए जिए। शहीद-ए-आजम भगत सिंह, ऊधम सिंह, राजगुरु, सुखदेव, चन्द्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, बटुकेश्वर दत्त, लाला लाजपत राय, मदन लाल ढींगरा जैसे अनेकों वीरों ने सिर पर कफन बांधा तो सिर्फ देश को आजाद कराने के लिए। शहीद-ए-आजम भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को जिला लायलपुर के गांव बंगा में माता विद्यावती की कोख से पिता किशन सिंह के घर हुआ। परिवार व खून का असर तब नजर आया जब डी.ए.वी स्कूूल में पढ़ते समय मात्र 14 वर्षों की आयु में क्रांतिकारी आंदोलनों में भगत सिंह हिस्सा लेने लगे। हिन्दी, पंजाबी, अंग्रेजी के साथ-साथ बंगला भाषा भी पढ़ी जो उन्हें देशभगत बटुकेश्वर दत्त ने सिखाई। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड का इतना असर हुआ कि पढ़ाई बीच में छोड़ भगत सिंह ने नौजवान भारत सभा बनाई। एक बार अपने चाचा अजीत सिंह को खेतों में बीज बोते देख पूछा कि क्या कर रहे हो और जब चाचा ने बोला कि बीज बो रहा हूं। इससे पौधा निकलेगा और अनेकों फल लगेंगे तो वह बालक जाकर एक पिस्तौल ले आया और जमीन में दबाने लगा। चाचा के पूछने पर उसने बताया कि इस पिस्तौल से पौधा निकलेगा जिस पर अनेकों पिस्तौल लगेंगी और हम उनसे अंग्रेजों को मार देंगे। 


आपके साथी सुखदेव थापर का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में 15 मई 1907 को माता रल्ली देवी व पिता राम लाल थापर के घर लुधियाना के नौघर क्षेत्र, चौड़ा बाजार में हुआ। इनके दूसरे साथी राजगुरु जिनका पूरा नाम शिव राम हरी राजगुरु था, उनका जन्म 24 अगस्त 1908 को पुणे के खेड़ा गांव में माता पार्वती बाई व पिता हरी नारायण के घर हुआ। राजगुरु ने जब जलियांवाला हत्याकांड के बारे में सुना तब वह मात्र 11 वर्ष के थे। उनका हृदय बड़ा आहत हुआ और बोले कि मैं भी भारत माता की आजादी के लिए युद्ध करूंगा और अपना सब कुछ देश के लिए न्यौछावर कर दूंगा।  नौजवान भारत सभा का गठन हुआ तो इसमें भगत सिंह, सुखदेव व भगवती चरण वोहरा भी शामिल हुए। काकोरी कांड में पंडित रामप्रसाद बिस्मिल सहित 4 क्रांतिकारियों को फांसी व 16 को कारावास से बेचैन भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी ‘हिन्दोस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन’ के साथ जुड़ गए। दिल में सिर्फ एक ही जज्बा था कि देश को आजाद करवाना है। 


जलियांवाला हत्याकांड और लाला लाजपत राय की कुर्बानी के बदले की ज्वाला दिलों में धधक रही थी। आखिर अंग्रेज अफसर स्काट को मारने का प्रोग्राम बनाया गया। राजगुरु एक काबिल निशानेबाज थे तो गोली मारने के लिए उन्हें चुना गया पर हुआ यूं कि 17 दिसंबर 1928 को लाहौर पुलिस स्टेशन से स्काट की बजाय सहायक पुलिस अधीक्षक जे.पी. सांडर्स बाहर निकला। भगत सिंह का इशारा होते ही वृक्ष के पीछे छिपे राजगुरु ने निशाना बांध कर सांडर्स को स्काट समझ कर गोली चला दी तो उसकी मृत्यु हो गई। अंग्रेजी सरकार में हाहाकार मच गई। क्रांतिकारियों को पकडऩे के लिए छापामारी शुरू हुई। सुखदेव ने भगत सिंह का भेष बदल कर भगाने में उसकी मदद की। सांडर्स की हत्या कर उन्होंने लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला ले लिया था। 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त व अन्य साथियों के साथ सैंट्रल असैंबली में बम व पर्चे फैंके और वहां से भागे नहीं बल्कि अपनी गिरफ्तारी दी। 


7 अक्तूबर 1930 को इनको फांसी की सजा सुनाई गई और फांसी के लिए 24 मार्च 1931 का दिन तय किया गया। फांसी से एक दिन पहले भगत सिंह ने अंग्रेज सरकार को एक पत्र लिखा कि उन्हें अंग्रेजी सरकार के खिलाफ भारतीयों के युद्ध का प्रतीक एक युद्धबंदी समझा जाए और फांसी की बजाय गोली मार दी जाए, परन्तु सरकार ने यह बात स्वीकार न की। इन क्रांतिकारियों को फांसी की खबर से जन-जन में विद्रोह भड़क उठा। सरकार को डर था कि जनता कहीं बगावत न कर दे इसलिए संसार भर के सारे जेल नियमों के विरुद्ध निश्चित दिन  24 मार्च की बजाय 23 मार्च की मध्य रात्रि को ही इन तीनों देश भगतों को फांसी दे दी गई और उसी रात सतलुज के किनारे उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया गया ।


यह एक संयोग ही था कि 23 मार्च को भगत सिंह की आयु 23 वर्ष 5 माह और 23 दिन थी। अंग्रेज सरकार ने चाहे इन वीरों को फांसी देकर इस संग्राम को दबाने की कोशिश की परन्तु महान क्रांतिकारियों के बलिदान ने इस आजादी की चाह की चिंगारी को जो हवा दी उसने धधकती ज्वाला बनकर गुलामी की जंजीरों को जला डाला और ऐसे ही वीरों की कुर्बानियों का परिणाम अंतत: भारत की स्वतंत्रता के रूप में निकला।

 


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