लोहड़ी गीत के साथ जानिए इसे मनाने का तरीका

punjabkesari.in Friday, Jan 12, 2018 - 09:03 AM (IST)

मकर-संक्रांति से एक दिन पहले सूर्यास्त के पश्चात एक खुले स्थान पर लकडिय़ों का काफी बड़ा ढेर तैयार किया जाता है और वहां धीरे-धीरे मोहल्ले के लोगों की भीड़ जुटने लगती है। सब अपने-अपने घरों से मूंगफली, रेवड़ी, गच्चक, तिल व मक्की के दानों से भरे थाल लेकर आते हैं। लकडिय़ों में घी डालकर अग्नि प्रज्ज्वलित की जाती है और सभी बारी-बारी खाने वाले सामान का थोड़ा-थोड़ा भाग अग्रि को भेंट करते हुए अच्छे स्वास्थ्य व सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। अलाव के जलते ही सब आसपास बिछी चारपाइयों व कुर्सियों पर बैठकर गर्मी लेते हैं, आग सेंकते हैं व एक-दूसरे को सामान बांटते हुए लोहड़ी की बधाइयां देते हैं। कुछ लोगों के यहां लोहड़ी की आग में ‘रोट’ बनाने का रिवाज भी है। गुड़ व आटे से बनी मोटी रोटी बनाकर उसका एक भाग अग्रि को भेंट कर बाकी प्रसाद के रूप में एकत्रित लोगों में बांटा जाता है। मोहल्ले के सभी लोग इस अवसर पर खूब नाचते-गाते और गप्पें लड़ाते हैं।


लोहड़ी का गीत
लोहड़ी वैसे तो कई स्थानों पर मनाई जाती है लेकिन पंजाब में इसका रंग देखते ही बनता है। ढोली हर घर के आगे आकर खूब ढोल बजाते हैं व लोहड़ी के गीत गाते हैं। पूरे पारिवारिक सदस्यों के पांव ढोल की खनक पर भांगड़ा और गिद्दा डालने को तत्पर हो उठते हैं। लोहड़ी का गीत तो एक अलग ही समां बांध देता है। 

सुंदर-मुंदरिए-हो
तेरा कौन बेचारा-हो
दुल्ला भट्टी वाला-हो
दुल्ले धी ब्याही-हो
सेर शक्कर पाई-हो
कुड़ी दा लाल पिटारा-हो
कुड़ी दा शालू पाटा-हो, शालू कौन समेटे हो-
चाचा गाली देसे-हो, चाचे चूरी कुट्टी-हो
जिमींदारां लुट्टी-हो, जिमींदार सदाए-हो
गिन गिन पोले लाए-हो, 
इक पोला घिस गया ते
जिमींदार वोहटी लै के नस गया।


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