यदि आपकी भी है ऐसी सोच तो घातक रोगों से मिलेगा छुटकारा

punjabkesari.in Friday, Jul 21, 2017 - 10:27 AM (IST)

सोच स्वभाव ही नहीं, शरीर को भी बनाती-बिगाड़ती है। मनोविश्लेषकों का मानना है कि शरीर में जितने भी घातक रोग होते हैं, उनका प्रमुख कारण मानसिक संघर्ष और जीवन के प्रति निराशाजनक दृष्टिकोण है। किंतु जीवट और जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण से घातक रोगों से भी छुटकारा पाया जा सकता है। जीवन के प्रति सकारात्मक सोच व दृढ़ इच्छा शक्ति व्यक्ति को किसी महान लक्ष्य के प्रति सजग कर देते हैं, इस स्थिति में व्यक्ति स्वयं को एनर्जेटिक व हैल्दी महसूस करता है। यह इंटर्नल एनर्जी जिसे यौगिक भाषा में प्राणिक ऊर्जा कहा जाता है, व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाती है तथा रोगग्रस्त मृत कोशिकाओं को सक्रिय कर देती है।

क्रिकेटर युवराज मानते हैं कि पॉजीटिव थिंकिंग, दृढ़ इच्छाशक्ति और क्रिकेट खेलने के प्रति सजगता के कारण ही वह कैंसर जैसे घातक रोग को शिकस्त देने में कामयाब रहे। स्पर्धा और दुनिया में पैसे की भाग-दौड़ की वजह से आज का मानव मानसिक उलझन और तनावों के बीच जीवन-यापन कर रहा है। यह तनावपूर्ण लाइफस्टाइल घातक रोगों की जननी है। वस्तुत: स्वस्थ व निरोग जीवनशैली की धारा जिन दो किनारों के बीच बहती है, उसका एक छोर आत्मनिरीक्षण तो दूसरा सकारात्मक सोच है। जिनकी सोच रचनात्मक नहीं है, जो स्वयं के प्रति जागरूक नहीं हैं, बीमारी उनकी नियति बनकर रह जाती है। अत: सजगता के साथ आत्मनिरीक्षण करते हुए निरंतर अपनी सोच को सकारात्मक बनाए रखने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए।

प्रश्न उठता है कि आत्मनिरीक्षण व सकारात्मक सोच का उत्तरोत्तर विकास कैसे किया जाए? सकारात्मक सोच व सजगता को विकसित करने का प्रमुख माध्यम है-नियमित योगाभ्यास। जिस व्यक्ति का शरीर निरोग नहीं है, उसका दृष्टिकोण कभी भी रचनात्मक नहीं हो सकता। प्राणायाम के द्वारा मन शांत व अन्त:करण निर्मल बनता है। तन-मन में स्फूर्ति, उमंग और उत्साह की अनुभूति होती है। प्राणायाम के सतत् अभ्यास से द्रष्टा भाव, सजगता व सकारात्मक दृष्टिकोण सहज उपलब्ध हो जाता है। अपने दैनिक क्रियाकलापों के प्रति संपूर्ण सजगता व रचनात्मक दृष्टिकोण बनाए रखने से व्यक्ति की कुंठाएं व पूर्वाग्रह वाष्प बनकर उड़ जाते हैं। 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Recommended News

Related News