सुख करनी दुख हरनी गाय देती है वरदान अनेक

punjabkesari.in Saturday, Aug 05, 2017 - 12:49 PM (IST)

जिस प्लॉट पर मकान, भवन, घर का निर्माण करना हो यदि वहां पर गौ-वत्स (बछड़ा सहित गाय) को लेकर बांध दिया जाए यानी रख दिया जाए तो वहां संभावित वास्तु दोषों का स्वत: निवारण हो जाता है और भवन-निर्माण कार्य र्निविघ्न पूरा हो जाता है। समापन तक आर्थिक या अन्य प्रकार की बाधाएं नहीं आती हैं। गाय के प्रति भारतीय आस्था को व्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है। गौ-सेवा, गौ पालन को एक कर्तव्य के रूप में माना गया है। समस्त प्राणी पाश में बंधे होने से ‘पशु’ ही हैं और उनके स्वामी पशुपति नाथ हैं, समस्त पशु (प्राणी) भूत हैं जिनके नाम भूतनाथ हैं। पशु रूपी गाय समस्त सृष्टि की हैं और गाय सृष्टि की संरक्षक भी हैं। सभी भूतों (प्राणियों) की वह माता है और सभी को सुख प्रदान करने वाली है। सभी दोषों की हरण करती हैं।


गाय के रूप में पृथ्वी की करुण पुकार और विष्णु से अवतार के लिए निवेदन के प्रसंग बहुत प्रसिद्ध हैं। मालव सम्राट परमार भोज के समय का समरांगण सूत्रधार जैसा प्रसिद्ध वृहद वास्तु ग्रंथ व विमानन ग्रंथ गौ रूप में पृथ्वी ब्रह्मादि के समागम, संवाद से ही आरंभ होता है। वास्तु ग्रंथ ‘मयमतम्’ में कहा गया है कि भवन निर्माण के शुभारंभ से पूर्व उस भूमि पर सवत्सा यानी बछड़े वाली गाय को लाकर बांधना चाहिए। नवजात बछड़े को जब गाय दुलारकर चाटती है तो उसका फेन भूमि पर गिरकर उसे पवित्र बनाता है और वहां होने वाले समस्त दोषों का निवारण हो जाता है। यही मान्यता वास्तु प्रदीप, अपराजित पृच्छा आदि में भी आई है।


महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है कि गाय जहां बैठकर निर्भयता पूर्वक सांस लेती है, उस स्थान के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। वास्तव में गाय पाप संहारक, वास्तु दोष निवारक हैं। भारत वर्ष में गाय (गऊ) सदा से घर परिवार की सदस्य रही है, उसे परिवार का अंग माना गया है। उसकी आरती उतारी गई है हर कर्मकांड में उसकी आवश्यकता महत्वपूर्ण होती है। जबसे भारतीयों ने गाय को घर-परिवार से विस्थापित किया है, वे अनेक कष्टों से घिरे हैं। गाय जिस परिवार में रहती है, उस परिवार से अत्यंत प्रेम करती है। परिवार के प्रत्येक सुख-दुख का अनुभव करती है।


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