बिल्डर हुए दिवालिया, 3 लाख लोगों के सपने टूटे

punjabkesari.in Saturday, Aug 12, 2017 - 01:09 PM (IST)

नई दिल्ली: रियलटी सैक्टर की 3 नामचीन कंपनियां ओमैक्स, यूनिटैक और उसके बाद जे.पी. इंफ्राटैक और जे.पी. बिल्डर्स नैशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल ने दिवालिया कंपनियों की सूची में डाल दिया गया है। आम्रपाली डिवैल्पर के हालात कुछ ऐसे ही हैं। साफ है कि आने वाले दिनों में कई और कंपनियां भी इस सूची में शामिल हो जाएंगी। कंपनियों के दिवालिया होने से जहां देश का विकास प्रभावित होगा, वहीं दिल्ली एन.सी.आर. के 3 लाख खरीदार सीधे प्रभावित होंगे। ये तीन लाख लोग वे है, जिन्हें वर्ष 2018 तक अपने फ्लैट मिल जाने चाहिए थे, लेकिन अब ये कब मिलेंगे, इसे लेकर संशय है।

रियलटी से जुड़ी कंपनी जे.एल.एल. की रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा हालातों को देखें तो एक दशक में रियलटी माॢकट का यह सबसे बुरा दौर है। मौजूदा हालातों के चलते आने वाले कुछ दिनों में आम्रपाली के अलावा एन.सी.आर. में 75 बड़े प्रोजैक्ट के कार्य बंद हो जाएंगे। बंद होने वाले प्रोजैक्टों में सबसे ज्यादा गुडग़ांव और नोएडा वैस्ट के हैं।

क्या है कारण
सर्किल रेट का लगातार बढ़ना 

ऐसा नहीं है ये बिल्डर एकाएक दिवालिया हो गए, इसके पीछे का कारण नोटबंदी और गत 4 सालों में सॢकल रेट में 100 फीसदी से अधिक वृद्धि का होना है। एक्सपर्टों के मुताबिक वर्ष 2009 के बाद से रियलटी माॢकट में लगातार गिरावट हो रही है। पहले जहां ये गिरावट सालाना 12 से 15 फीसदी थी वहीं 2015 के बाद से 50 फीसदी हो गई। वहीं दूसरी तरफ लगातार सरकार ने सर्किल रेटों को बढ़ा दिया जिसके कारण प्रापर्टी कारोबार कमजोर होने लगा।

बैंकों की ब्याज दर लगातार बढ़ी
वर्ष 2007 तक रियलटी सैक्टर को 9 से 11 फीसदी ब्याज रेट पर लोन दिया जाता था, लेकिन ये ब्याज दर 2014 तक 18 फीसदी हो गई, जो किसी भी सैक्टर में सबसे ज्यादा हैं। ऐसे में बिल्डरों पर अतिरिक्त दबाव पड़ा। एक तरफ जहां लगातार रियलटी सैक्टर से जुड़े इंडस्ट्री जैसे सरिया, ईंट, सीमैंट और जमीन के दाम बढ़े वहीं कर्ज की ब्याज दर भी लगातार बढ़ी जिसके कारण रियलटी सैक्टर बुरी तरह से गिरता गया।
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‘रेरा’ ने तोड़ दी कमर
1 जुलाई से लागू हुए ‘रेरा’ ने रही सही कसर पूरी कर दी। रेरा की शर्तों के मुताबिक किसी भी बिल्डर या रियलटी कंपनी को प्रोजैक्ट शुरू करने से पहले प्रोजैक्ट की कॉस्ट का 70 फीसदी पैसा बैंक के जमा कराना होगा, चाहे वह लोन के रूप में ही क्यों न हो। ऐसे में बिल्डर 30 फीसदी फंड के सहारे काम नहीं कर सकता। ‘रेरा’ में कई और भी अंकुश है, जिसके तहत तय समय पर बायर को फ्लैट देना आवश्यक है, ऐसा न करने पर 22 फीसदी जुर्माने का प्रावधान भी है। इस कारण से देश की सभी रियलटी कंपनियां परेशान हैं। कंपनियों का तर्क है कि सरकार ने ‘रेरा’ कानून उन पर थोपा है, जिसके कारण प्रोजैक्ट बंद करना उनकी मजबूरी बन गया है।

यहां के खरीदार फंसे
31 मार्च 2017 तक जे.पी. इंफ्राटैक पर 8, 365 करोड़ रुपए का कर्ज है और इसे ग्रुप नौ माह से नहीं चुका रहा है जिसके चलते आई.डी.बी.आई. बैंक ने मांग की थी कि जे.पी. ग्रुप इंफ्रा को दिवालिया घोषित किया जाए। हालांकि इस पर जे.पी. इंफ्राटैक ने आपत्ति जताई थी पर बाद में कंपनी ने आपत्ति वापस ले ली, लेकिन कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल ने जेपी इंफ्रा को दिवालिया घोषित करने की याचिका मान ली है। जानकारी के मुताबिक जेपी इंफ्रा में फ्लैट के पजेशन में पहले ही 2 से 4 साल की देरी हो चुकी है और देश की अलग-अलग अदालतों में इस कंपनी के 271 केस दर्ज किए गए हैं। उल्लेखनीय है कि जे.पी. इंफ्राटेक, जयप्रकाश एसोसिएट्स का एक हिस्सा है। ये कंपनी एजूकेशन सैक्टर, हाइड्रोपावर प्लांट के अलावा नैशनल हाइवे का काम करती है।

आम्रपाली के 33 हजार यूनिट पर फिलहाल ब्रेक 
आम्रपाली के मौजूदा समय में 27 प्रोजैक्ट निर्माणाधीन है जिसके चलते उसे मार्च 2017 तक 33 हजार यूनिट बायर को डिलीवर करनी थी, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। यही नहीं इसी दौरान आम्रपाली ग्रुप को गौतम बुद्धनगर प्रशासन को 4 करोड़ से ज्यादा का सैस और बैंकों का करीब 1 हजार करोड़ से ज्यादा का पैसा ब्याज सहित लौटाना था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ जिसके कारण आम्रपाली के 11 संपत्तियों को बैंक से टेकओवर कर लिया और उसकी नीलामी प्रक्रिया की तैयारी भी शुरू कर दी है। साफ है कि इन 11 संपत्तियों के मामले में आम्रपाली अपने को दिवालिया घोषित कर चुका है नहीं तो बैंक इन संपत्तियों को टेकओवर नहीं करता।

यूनिटैक के गुडग़ांव में 27 हजार तो नोएडा में तीन सैक्टर वापस 
यूनिटैक रियलटी कंपनियों में खासी बड़ी कंपनी थी, वर्ष 2007 में इस कंपनी के नोएडा के तीन सैक्टरों को एक साथ खरीदा था। उस दौरान देश में यह रियलटी सैक्टर की सबसे बड़ी डील कही गई थी। इन सैक्टरों में 80 हजार यूनिट के अलावा गोल्फ कोर्स, तीन पांच सितारा होटल, क्लब का निर्माण किया जाना था। इसी तरह गुडग़ांव दो सैक्टरों में 30 हजार यूनिट को यूनिटैक को बनाना था, लेकिन यह कंपनी ने नोएडा में महज 10 फीसदी जमीन ही बेच पाई और 2013 में इसे अथॉरिटी को वापस कर दिया। वहीं गुडग़ांव के सभी यूनिट को हरियाणा सरकार ने टेकओवर कर लिया।

ओमैक्स ग्रुप छोड़ चुका है मैदान 
 2004 से रियलटी की मार्कीट में उतरे ओमैक्स ग्रुप ने ग्रेनो में सबसे पहले एन.आर.आई. सिटी बनाई, जिसमें कई एन.आर.आई. ने निवेश किया, जिसके बाद ये ग्रुप एक दशक तक रियलटी सैक्टर में लगातार काम करता रहा लेकिन, इसी बीच ये कंपनी दो भाइयों के विवाद में बंट गई जिसके बाद से इस ग्रुप ने उत्तर भारत में 27 यूनिट का काम रोक दिया। 2015 तक इस कंपनी ने अपना 70 फीसदी कारोबार समेट लिया और करीब 42 हजार बायरों को धोखा दिया।
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इनकी भी हालत खराब 
ऐसा नहीं है कि मौजूदा समय में रियलटी मार्कीट में केवल आम्रपाली गु्रप की ही माली हालत खराब है। जे.एल.एल. रियलटी की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक ओमैक्स, यूनिटैक ग्रुप लगभग बंद होने की कगार पर पहुंच चुके है। ये अपने अधिकांश प्रोजैक्ट अन्य कंपनियों को हैंड ओवर कर चुके हैं। वहीं दूसर तरफ महागुन, सेवियर, ए.टी.एस., जे.पी. ग्र्रीन सहित कई बड़ी कंपनियां ऐसी है जिनके पास फंड नहीं है। नतीजतन उनके नब्बे फीसदी से ज्यादा प्रोजैक्ट लेट हैं या फिर फिलहाल बंद हैं। रिपोर्ट के  मुताबिक मौजूदा समय में करीब एन.सी.आर. के नोएडा और ग्रेनो में 1-2 प्रोजैेक्ट लेट हैं। इस मामले में ग्रेनो और यमुना अथॉरिटी उन्हें नोटिस भी भेज चुका है लेकिन सभी डिवैल्परों ने अथॉरिटी से मौजूदा रियलटी की हालत को देखते हुए समय मांगा हैं।
 


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