अनुब्रत मंडल: पश्चिम बंगाल के ''''बाहुबली'''' राजनीतिज्ञ और ममता बनर्जी के भरोसेमंद सहयोगी

punjabkesari.in Thursday, Aug 11, 2022 - 07:02 PM (IST)

कोलकाता, 11 अगस्त (भाषा) तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के वरिष्ठ नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भरोसेमंद माने जाने वाले अनुब्रत मंडल की बृहस्पतिवार को कथित मवेशी तस्करी मामले में गिरफ्तारी से उनके तीन दशक लंबे राजनीतिक करियर पर खतरा मंडराने लगा है।

तृणमूल की वीररभूम जिला इकाई के अध्यक्ष और पार्टी की राष्ट्रीय कार्य समिति के सदस्य मंडल (62) पश्चिम बंगाल में टीएमसी के 11 वर्षों के शासन के दौरान तेजी से आगे बढ़े हैं।

अपने बयानों के लिए सुर्खियों में रहने वाले मंडल का जन्म 1960 में वीरभूम जिले में एक किसान परिवार में हुआ था। उन्हें ‘केश्टो’ के नाम से जाना जाता है और वह पांच भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं। उन्होंने सूरी में एक मछली व्यापारी के रूप में अपना करियर शुरू किया था।

उनकी नेतृत्व और संगठनात्मक क्षमताओं को पहली बार नब्बे के दशक की शुरुआत में वीरभूम के एक स्थानीय युवा कांग्रेस नेता ने देखा, जो उन्हें ममता बनर्जी के पास ले गए और इसके बाद वह बंगाल की राजनीति में अहम स्थान रखने लगे।

वह उन मुट्ठीभर कांग्रेस नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने 1998 में तृणमूल कांग्रेस बनाने के लिए ममता बनर्जी के नेतृत्व में पुरानी पार्टी को छोड़ दिया था।

कुछ ही समय बाद, उन्हें 2000 में तृणमूल की वीरभूम जिला इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया गया और उन्होंने तत्कालीन वामपंथी गढ़ में पार्टी के आधार के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

तृणमूल के 2011 में सत्ता में आने के बाद, एक राजनीतिज्ञ और एक आयोजक के रूप में मंडल का कद पार्टी और जिले में बढ़ गया।

मंडल 2013 के पंचायत चुनाव अभियान के दौरान पहली बार सुर्खियों में आए थे, जब उन्होंने एक जनसभा के दौरान अपने समर्थकों से राजनीतिक विरोधियों और असंतुष्टों के घरों को जलाने और पुलिस पर बम फेंकने के लिए कहा था।

उनकी इन टिप्पणियों पर विपक्षी दलों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी।

वर्ष 2014 के लोकसभा और 2016 के विधानसभा चुनावों के दौरान मंडल की मजबूत रणनीति पूरी तरह से प्रदर्शित हुई थी और पार्टी ने कदाचार के आरोपों के बीच जिले में दोनों चुनावों में जीत हासिल की थी।

पिछले साल चुनाव बाद हुई हिंसा के आरोपों में भी मंडल का नाम आया था, जिसकी जांच फिलहाल केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) कर रहा है। उनका नाम इस साल मार्च में बोगतुई में हुई हत्याओं की जांच के दौरान सामने आया था, जब वीरभूम जिले में दो समूहों के बीच प्रतिद्वंद्विता के बाद आठ लोगों को जिंदा जला दिया गया था।



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