वित्तीय संकट के बीच नेताजी की फॉरवर्ड ब्लॉक पार्टी अस्तिव बनाए रखने के लिए कर रही संघर्ष

punjabkesari.in Sunday, Jan 23, 2022 - 04:32 PM (IST)

कोलकाता, 23 जनवरी (भाषा) देश रविवार को जहां नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती मना रहा है, वहीं उनके नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक धड़े के रूप में उभरी फॉरवर्ड ब्लॉक पार्टी आर्थिक संकट, कई विभाजन और प्रबंधन की कमी की वजह से राजनीतिक अस्तित्व बचाए रखने के लिए संघर्ष रही है।

जनता पर नेताजी के प्रभाव के दम पर उभरे संगठन ने पश्चिम बंगाल को अपना मुख्य गढ़ बनाए रखने के साथ ही तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल और असम में अपनी चुनावी मौजूदगी स्थापित की थी लेकिन आज आठ दशक बाद पार्टी अब देश के कुछ हिस्सों तक सीमित है जिसका कोई सांसद या विधायक नहीं है।

भले ही वर्तमान नेतृत्व एक पुनरुद्धार की रणनीति पर विचार कर रहा है लेकिन संसाधनों की कमी और अपनी स्वतंत्र पहचान के बिना मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की सहायक बनने में फॉरवर्ड ब्लॉक की भूमिका पार्टी के लिए सबसे बड़ी बाधा साबित हो रही है।

एआईएफबी के महासचिव देवब्रत बिस्वास ने पीटीआई-भाषा से कहा, “यह सच है कि हम गहरे संकट का सामना कर रहे हैं। स्वतंत्रता के बाद ऐसा एक समय था जब महाराष्ट्र, बिहार, दक्षिण भारत के राज्यों और पश्चिम बंगाल में हमारे विधायक थे। लेकिन अब हमारी पार्टी का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक भी सांसद या विधायक नहीं है। सदस्यों की संख्या भी बीते वर्षों में घटी है। हम अब पुनरुद्धार की रणनीति पर चर्चा कर रहे हैं।” नेताजी के अलावा, पार्टी में एच वी कामथ, हेमंत बसु, आरएस रुइकर, एसबी यागी और एसएस कविशर सहित कई दिग्गज नेता शामिल रहे।

बिस्वास ने बताया कि फॉरवर्ड ब्लॉक के पतन के दो प्रमुख कारण दिग्गज नेताओं का अन्य पार्टियों में चले जाना और पार्टी के भीतर कई विभाजन हैं।

उन्होंने कहा, “आजादी के बाद, हमारे पास कई दिग्गज नेता थे जिन्होंने न केवल पार्टी को बढ़ाने में मदद की, बल्कि नेताजी की अनुपस्थिति में नेतृत्व भी प्रदान किया। हालांकि, नेताजी के जाने के बाद सभी को एक साथ रखने की क्षमता गायब हो गई। 1948 से, पार्टी को कई विभाजनों का सामना करना पड़ा, पहले रुइकर और यांगी समूह के बीच, तथा फिर कई अन्य राज्यों में।” बिस्वास ने कहा, “इसके अलावा, कई नेताओं ने फॉरवर्ड ब्लॉक के कांग्रेस में विलय की वकालत की जिसमें से कुछ बाद में कांग्रेस या अन्य राजनीतिक दलों में भी चले गए। वरिष्ठ नेताओं के निधन ने भी बड़ा खालीपन पैदा कर दिया जिसे हम भर पाने में विफल रहे।” इतिहास बताता है कि सुभाष चंद्र बोस ने अप्रैल 1939 में कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद, एक मंच के तहत वामपंथी और समाजवादी विचारधारा वाले नेताओं को मजबूत करने के लिए पार्टी के भीतर एक गुट बनाने का फैसला किया था।

बोस को इसका पहला अध्यक्ष और एच वी कामथ को महासचिव चुना गया था। बाद में, पार्टी का नाम बदलकर ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक (एआईएफबी) कर दिया गया। इन वर्षों में, एआईएफबी अपनी स्वतंत्र पहचान खोते हुए माकपा के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे का एक घटक बन गई।

राष्ट्रीय राजनीति में इसका मत प्रतिशत 2004 के 0.35 प्रतिशत से गिरकर 2019 के लोकसभा चुनाव में 0.05 प्रतिशत हो गया।

बंगाल में यह गिरावट और तेज थी जो 2011 के 4.80 प्रतिशत से घटकर 2021 के विधानसभा चुनाव में महज 0.53 प्रतिशत रह गई।

वर्तमान में, पश्चिम बंगाल के कुछ इलाकों में एआईएफबी के कुछ चुनिंदा पंचायत सदस्य हैं।



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