शास्त्रों से जानें, कैसे सोने का तरीका बदलने से दूर होते हैं रोग और दरिद्रता

Friday, Apr 29, 2016 - 09:15 AM (IST)

* दिन में कभी नहीं सोना चाहिए। रात के पहले और पिछले भाग में नींद नहीं लेनी चाहिए। रात के प्रथम और चतुर्थ पहर को छोड़ कर दूसरे और तीसरे पहर में सोना उत्तम रहता है। (नारदपुराण 26/27)

 
* दिन में दोनों संध्याओं के बीच जो नींद लेता है, वह रोगी और दरिद्र होता है। (ब्रह्मवैवर्तपुराण श्रीकृष्ण, 75)
 
 
* जिसके सोते-सोते सूर्योदय अथवा सूर्यास्त हो जाए, वह महान पाप का भागी होता है। वह बिना प्रायश्चित (कृच्छव्रत) के शुद्ध नहीं होता। (भविष्यपुराण, बाह्म, 4/90)
 
 
* स्वस्थ मनुष्य को आयु की रक्षा करने के लिए ब्रह्ममुहूर्त में उठना चाहिए। (अष्टांगहृदय, सूत्र, 2/1)
 
 
* विद्यार्थी, नौकर, पथिक, भूख से पीड़ित, भयभीत, भंडारी और द्वारपाल ये सोए हुए हों तो इन्हें जगा देना चाहिए। (चाणक्यनीति 9/6)
 
 
* सदा पूर्व या दक्षिण की तरफ सिर करके सोना चाहिए। उत्तर या पश्चिम की तरफ सिर करके सोने से आयु क्षीण होती है तथा शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं। (विष्णुस्मृति 70)
 
 
* पूर्व की तरफ सिर करके सोने से विद्या प्राप्त होती है। दक्षिण की तरफ सिर  करके सोने से धन तथा आयु की वृद्धि होती है। पश्चिम की तरफ सिर करके सोने से चिंता और उत्तर की तरफ सिर करके सोने से हानि तथा मृत्यु होती है। (भगवंतभास्कर, आचारमयूख)
 
 
* अधोमुख होकर, नग्र होकर, दूसरे की शय्या पर, टूटी हुई खाट पर तथा जनशून्य घर में नहीं सोना चाहिए। (लघुव्याससंहिता 2/88)
 
 
* जो विशाल न हो, टूटी हो, ऊंची-नीची हो, मैली हो अथवा जिसमें जीव हों या जिस पर, कुछ बिछा हुआ न हो, उस शय्या पर नहीं सोना चाहिए। (विष्णुपुराण 3/11/112)
 
* जूठे मुंह सोना नहीं चाहिए। (महाभारत अनु. 104/67)
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