दुकान में चल रही है मंदी कुछ बातों पर दें ध्यान, लक्ष्मी हो जाएंगी आप पर मेहरबान

Tuesday, Nov 24, 2015 - 12:30 PM (IST)

दुकान या व्यवसाय के लिए किसी भवन का चयन करना हो तो पहले ही यह विचार कर लेना आवश्यक है कि भवन का निर्माण वास्तु सम्मत हुआ है या नहीं। यदि निर्माण समुचित वास्तु अनुरूप किया गया है तो व्यवसाय शुरू किया जा सकता है। यदि यह नियम के अनुरूप नहीं है तो सबसे पहले यह समझना चाहिए कि इसमें उचित संशोधन की गुंजाइश है अथवा नहीं। यदि किसी प्रकार के संशोधन में बाधा हो तो जहां तक संभव हो इसका क्रय नहीं करना चाहिए क्योंकि यही हमारी आय का महत्वपूर्ण साधन होता है और इसी से परिवार का भरण-पोषण होता है। यदि हम वास्तु नियमों का पालन करते हुए व्यवसाय या दुकान शुरू करेंगे तो वह हमारे लिए शुभ फलदायक होगा। आय की अधिकता रहेगी। यदि वह दूषित है तो लाभ की अपेक्षा व्यय ज्यादा होगा। किसी न किसी प्रकार की अड़चनें आएंगी या क्लेश रहेगा। इन सबके बावजूद धर्मचारी मानव अपने उद्देश्य को पूर्ण करने में सफल होता है।
 
* दुकान या व्यवसाय के लिए चयनित भवन के ईशान कोण को खाली एवं स्वच्छ रखें।
 
* जल संबंधी कार्य ईशान कोण में अथवा उत्तर-पूर्व दिशा में करें।
 
* पूजा का स्थान ईशान कोण में बनाएं। उत्तर अथवा पूर्व दिशा में भी कर सकते हैं।
 
* भारी सामान ईशान कोण में कतई न रखें। कार्टन आदि दक्षिण या पश्चिम दिशा में रखना चाहिए।
 
* दुकान में अलमारी, शोकेस, फर्नीचर आदि दक्षिण या पश्चिम दीवार  की ओर बनवा सकते हैं। यदि संभव न हो तो नैर्ऋत्य कोण में भी बनवा सकते हैं पूर्व और उत्तर क्षेत्र ग्राहकों के आने-जाने के लिए रखें।
 
* दुकान में माल का भंडारण दक्षिण, पश्चिम दिशा में ही करें। संभव न हो तो नैर्ऋत्य कोण में भी कर सकते हैं।
 
* दुकान के अंदर बिजली का मीटर स्विच बोर्ड आदि आग्रेय कोण में रहना लाभदायक है।
 
* दुकान, दफ्तर के सामने द्वार वेध नहीं होना चाहिए अर्थात सामने खम्भा, सीढ़ी, बिजली के पोल और पेड़ आदि नहीं होने चाहिएं जहां तक संभव हो इससे बचना चाहिए।
 
* दुकान में सीढिय़ां ईशान कोण को छोड़कर बनवानी चाहिएं।
 
* पानी का पात्र ईशान कोण में रखना शुभ होता है।
 
* दुकान के मालिक या व्यवस्थापक को नैर्ऋत्य कोण में पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठना चाहिए।
 
* माल का स्टॉक पश्चिम, दक्षिण या नैर्ऋत्य कोण में करना चाहिए।
 

—नरेंद्र देवांगन 

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