क्या टूटेगी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उम्मीद!
Saturday, Oct 31, 2015 - 11:38 AM (IST)
साधु बेट की उपरोक्त वास्तु विपरीत भौगोलिक स्थिति के कारण यहां हमेशा विवाद होगें। इस परियोजना को पूर्ण करने में विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। जैसी उम्मीद मोदी जी द्वारा की जा रही है, कि इस परियोजना के पूर्ण होने के बाद स्टेच्यू ऑफ यूनिटी भारत ही नहीं, बल्कि विश्व के पर्यटकों का आकर्षण का केन्द्र बन जाएगा जो कि इस स्थान के वास्तुदोषों को देखते हुए बिल्कुल भी सम्भव नहीं है।
मीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार लौहा एकत्र करने के लिए जिस स्तर पर आदरणीय नरेन्द्र मोदी जी ने प्रयास किए उस मात्रा में लोहा एकत्र ही नहीं हुआ और जो हुआ वह इस स्टेच्यू में लगेगा ही नहीं, क्योंकि इस परियोजना के निर्माताओं के अनुसार भारत से एकत्र किए गए लौहे की क्वालिटी अच्छी नहीं है। अब इस लौहे का उपयोग परियोजना में रैलिंग, दरवाजे इत्यादि बनाने में किया जाएगा।
स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के भूमि पूजन के बाद से ही यहां विवाद भी शुरु हो गए। स्टेच्यू के आसपास पर्यटन अवसंरचना विकास हेतु भूमि अधिग्रहण का कुछ स्थानीय नागरिकों ने विरोध किया है। जिनमें मुख्य रुप से केवाडिया, कोठी, वाघाडिया, लिम्बडी, नवगम और गोरा गांव के लोग शामिल हैं। साथ ही पर्यावरण संरक्षण समिति नामक संस्था ने पर्यावरण से जुड़े अहम मुद्दों की अनदेखी को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की है। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार, स्टेच्यू ऑफ़ यूनिटी निर्माण समिति, एलएंडटी सहित कुल छः लोगों को नोटिस भेजा है।
मैं जब 29 मार्च 2015 अर्थात् भूमिपूजन के 15 माह बाद इस परियोजना का वास्तु विश्लेषण करने गया तो, मैंनें देखा कि अभी तो केवल साधु बेट के ऊपरी हिस्से को समतल करने के लिए ही जेसीबी से खुदाई का काम चल रहा है और कार्य की गति को देखते हुए यह परियोजना अपने निर्धारित समय से बहुत पिछड़ गई है।
उपरोक्त वास्तु विश्लेषण के अनुसार साधुबेट की भौगोलिक स्थिति इतने भव्य स्मारक के निर्माण के लिए उचित चयन है ही नहीं क्योंकि प्रसिद्धि प्राप्त करने के लिए उत्तर दिशा, ईशान कोण या पूर्व दिशा विशेषतौर में नीचाई आवश्यक होती है किंतु साधुबेट पर तो इन दिशाओं में ऊंचाई है। विश्व के सातों आश्चर्य भी अपनी उत्तर दिशा, ईशान कोण और पूर्व दिशा की अनुकुलता के कारण ही प्रसिद्ध हैं।
सभी आश्चर्यों की इन्हीं दिशाओं में गहरी नीचाई है और ज्यादातर आश्चर्यों की उत्तर दिशा में पानी है जैसे ताजमहल की उत्तर दिशा में यमुना नदी और पेरिस के एफिल टावर की उत्तर दिशा में सान नदी बह रही है, म्रिस के गीजा पिरामिड़ की उत्तर एवं पूर्व दिशा में गहरी नीचाई के साथ, पूर्व दिशा में नील नदी बह रही है। विश्व का सबसे धनी एवं प्रसिद्ध धार्मिक स्थल ईसाईयों की पवित्र नगरी वेटिकन सिटी की इस स्थिति में भी उत्तर एवं पूर्व दिशा में बह रही टिब्बर नदी की ही अहम् भूमिका है। इसी प्रकार भारत के पहले और विश्व के दूसरे नंबर के धनी प्रसिद्ध धार्मिक स्थल तिरुपति बालाजी की उत्तर दिशा में बड़े आकार का स्वामी पुष्यकरणी कुण्ड के साथ-साथ उत्तर, पूर्व दिशा एवं ईशान कोण में तीखा ढलान है और दक्षिण-पश्चिम दिशा में ऊंचाई है। जम्मू, कटरा स्थित वैष्णो देवी मंदिर एवं शिर्डी स्थित सांईबाबा के मंदिर की उत्तर दिशा में भी नीचाई है। हरिद्वार स्थित हर की पौढ़ी की प्रसिद्धि का कारण दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर नीचाई तथा पश्चिम दिशा के पहाड़ की ऊंचाई और पूर्व दिशा में बह रही गंगा नदी की नीचाई है।
चीनी वास्तुशास्त्र फेंगशुई:
फेंगशुई का एक सिद्धांत है कि यदि पहाड़ के मध्य में कोई भवन बना हो, जिसके पीछे पहाड़ की ऊंचाई हो, आगे की तरफ पहाड़ की ढ़लान हो और ढ़लान के बाद पानी का झरना, कुण्ड, तालाब, नदी इत्यादि हो, ऐसा भवन प्रसिद्धि पाता है और सदियों तक बना रहता है। फेंगशुई के इस सिद्धान्त में दिशा का कोई महत्त्व नहीं है। ऐसा भवन किसी भी दिशा में हो सकता है। चाहे पूर्व दिशा ऊंची हो और पश्चिम में ढलान के बाद तालाब हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।
फेंगशुई के सिद्धांतों के आधार पर बनी अब तक की सबसे ऊंची स्टेच्यू 128 मीटर ऊंची स्प्रिंग टैम्पल बुद्ध चीन के जाओकुन कस्बे में स्थित है। स्टेच्यू के पीछे उत्तर दिशा में पहाडियां हैं और सामने दक्षिण दिशा में क्रमशः नीचाई के साथ पानी भी है।
अब तक की विश्व की सबसे ऊंची स्टेच्यू होने के बाद भी इसे ज्यादा प्रसिद्धि नहीं मिल पाई है, क्योंकि वर्षों के अनुसंधान के बाद यह देखने में आया है कि यदि दक्षिण दिशा या पश्चिम दिशा में पहाड़ हो उत्तर, पूर्व दिशा या ईशान कोण में नीचाई हो तो वह स्थान अधिक प्रसिद्धि प्राप्त करता है।
फेंगशुई सिद्धांत के अनुसार भी स्टेच्यू ऑफ़ यूनिटी सरदार सरोवर बांध की ओर मुख रखते हुए जहां बनाई जा रही है उसके आगे में भी और पीछे भी पानी है तो फेंगशुई का यह सिद्धांत भी इस पर लागू नहीं होता।
स्टेच्यू ऑफ़ यूनिटी को उचित प्रसिद्धि मिले इसके लिए जरुरी है कि साधु बेट की पूर्व दिशा, ईशान कोण, उत्तर दिशा, वायव्य कोण और पश्चिम दिशा में अन्य दिशाओं की तुलना में भी गहरी खुदाई करके इस धारा को दूसरी धारा से ज्यादा चौड़ा किया जाए। ताकि साधुबेट में भी स्टेच्यू ऑफ़ लिबर्टी अमेरिका, स्वर्ण मंदिर अमृतसर की तरह चारों ओर पानी हो जाए और इस खुदाई में जो मिट्टी निकलेगी उसे
साधुबेट के आग्नेय कोण, दक्षिण दिशा, नैऋत्य कोण और पश्चिम दिशा वाले भाग में इस प्रकार से फैलाया जाए कि नदी का बहाव पूर्व दिशा, ईशान कोण, उत्तर दिशा होते हुए हो जाए। साधुबेट के नैऋत्य कोण में जो बढ़ाव है उसे भी खोद दिया जाए और इसे 90 डिग्री का किया जाए। ईशान कोण वाले भाग में इस तरह से मिट्टी का भराव किया जाए कि यह कोना भी 90 डिग्री का हो जाए। साधुबेट में आने और जाने के लिए बनने वाले ब्रिज वास्तुनुकूल स्थान पर बनाएं जाए ताकि वह पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर सकें।
साधुबेट की भौगोलिक स्थिति में यह सभी वास्तुनुकूल परिवर्तन करने के बाद स्टेच्यू ऑफ़ यूनिटी परियोजना के निर्माण कार्य को आगे बढ़ाया जाए ताकि स्टेच्यू ऑफ़ यूनिटी भारत ही नहीं, बल्कि विश्व में भी प्रसिद्ध हो सके और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की महत्त्वाकांक्षी योजना सार्थक हो सके।
वास्तु गुरु कुलदीप सलूजा
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