नारद पुराण: पूजा साधना सिद्ध तथा फलदायक बनाने के लिए रखें ध्यान

Tuesday, Oct 04, 2016 - 10:45 AM (IST)

पूजा और जप करते समय हमेशा कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। कुछ दिन ऐसे होते हैं जब देवी-देवताओं की उपासना का विशेष फल प्राप्त होता है इसलिए जब भी आप पूजा और जप करें कुछ ऐसे काम हैं जो कभी नहीं करने चाहिए अन्यथा पुण्य की बजाय पाप के भागी बन जाएंगे। 


अपने भावों और क्रियाओं को नियंत्रण में रखें जैसे छींक, खांसी, थूक, जंभाई, गुस्सा, हिंसा, लालच और किसी भी तरह के नशे की ललक को। इनसे आपका तन और मन अपवित्र हो जाता है। भगवान का पूजन सदा शुद्ध और पावन होकर करना चाहिए।


वास्तु शास्त्र में पूजा-पाठ, जप-तप के लिए कुछ आवश्यक सुझाव दिए गए हैं, जिनका पालन करने से पूजन को विशेष फलदायी बनाया जा सकता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार पूजा स्थल पूर्व उत्तर या ईशान कोण का ही उत्तम होता है । नारद पुराण में कहा गया है-

 
‘ऐशान्यां मंदिरम् तथा देवानां हि सुखं कार्यं पद्यिताया सरा बुधै:’ 


अर्थात ईशान में मंदिर रखना और प्रतिमाओं का मुख पश्चिम में रखना उत्तम माना जाता है।


ईशान कोण अत्यंत शुभ जगह है। इस दिशा में बैठकर की गई सभी पूजा साधना सिद्ध तथा फलदायक होती है।  पूर्व दिशा की ओर मुंह करके जिस किसी भी काम को किया जाता है, उसका परिणाम उत्तम होता है। इसी कारण पूर्व दिशा की ओर मुंह करके की गई पूजा अच्छा फल देने वाली होती है।
 

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