आर्थिक परेशानी से बचने के लिए WashRoom में करें यह काम

Monday, May 30, 2016 - 01:39 PM (IST)

वास्तुशास्त्र के अनुसार स्नानगृह में चंद्रमा का वास है तथा शौचालय में राहू का। यदि किसी घर में स्नानगृह और शौचालय एक साथ हैं तो चंद्रमा और राहू एक साथ होने से चंद्रमा को राहू से ग्रहण लग जाता है, जिससे चंद्रमा दोषपूर्ण हो जाता है। चंद्रमा के दूषित होते ही कई प्रकार के दोष उत्पन्न होने लगते हैं। चंद्रमा मन और जल का कारक है और राहु विष का। इस युति से जल विष युक्त हो जाता है। जिसका प्रभाव पहले तो व्यक्ति के मन पर पड़ता है और दूसरा उसके शरीर पर।

 
 
हमारे शास्त्रों में चंद्रमा को सोम अर्थात अमृत कहा गया है और राहु का विष। अमृत और विष एक साथ होना उसी प्रकार है जैसे अग्नि और जल। दोनों ही विपरीत तत्व हैं। इसलिए बाथरूम और टॉयलेट एक साथ होने पर परिवार में अलगाव होता है। लोगों में सहनशीलता की कमी आती है। मन में एक दूसरे के प्रति द्वेष की भावना बनी रहती है।
 
 
ध्यान रखें, शौचालय का द्वार उस घर के मंदिर, किचन आदि के सामने न खुलता हो। इस प्रकार हम छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर सकारात्मक ऊर्जा पा सकते हैं व नकारात्मक ऊर्जा से दूर रह सकते हैं।                          
 
 
अलग-अलग शौचालय और स्नानघर बनाने पर स्नानघर उत्तर एवं पूर्व दिशा में और शौचालय दक्षिण, पश्चिम, दक्षिण और नैत्रत्य के बीच में बनाए जाने चाहिए। लेकिन दोनों को एक साथ संयुक्त रूप से बनाने पर उन्हें पश्चिमी और उत्तरी वायव्य कोण में बनाना श्रेष्ठ है। इसके अतिरिक्त यह पश्चिम, दक्षिण और नैत्रत्य के बीच भी बनाए जा सकते हैं ।
 
 
शौचालय और स्नान घर उपरोक्त किसी भी दिशा में बनाएं लेकिन यह ध्यान रखें बाथरूम में फर्श की ढाल, पानी का बहाव उत्तर एवं पूर्व दिशा की ओर ही होना चाहिए। घर के किसी भी सदस्य को चोट न लगे, दुर्घटना न हो, इससे बचाव हेतु बाथरूम का फर्श चिकना या फिसलन भरा नहीं होना चाहिए, मेरे विचार से बाथरूम में टाइल्स, मार्बल, ग्रेनाइट या संगमरमर का प्रयोग कभी न करें।।
 
 
 शौचालय में बैठने की व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि शौच करते समय आपका मुख दक्षिण या पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए। पूर्व में कभी भी नहीं, क्योंकि पूर्व सूर्य देव की दिशा है और मान्यता है कि उस तरफ मुंह करके शौच करते हुए उनका अपमान होता है । इससे जातक को कानूनी अड़चनों एवं अपयश का सामना करना पड़ सकता है।
 
 
 संयुक्त रूप से बने शौचालय और स्नानघर बनाने या केवल अलग ही स्नानघर पर यह अवश्य ही ध्यान दें कि उसमें पानी के नल, नहाने के शावर ईशान, उत्तर एवं पूर्व दिशा में ही लगाए जाएं और नहाते समय जातक का मुंह उत्तर, ईशान अथवा पूर्व की तरफ ही होना चाहिए।
 
 
यदि आपके भवन में, बाथरूम में कहीं भी नल टपकते हो तो उसे तुरंत ही ठीक करवाना चाहिए। अगर भवन में कहीं भी सीलन हो तो उसे भी तुरंत ही ठीक करवाएं। साथ ही समय-समय पर पानी टंकियों की साफ-सफाई भी जरूर करवाते रहे । इससे उस भवन के निवासी सदस्यों को कभी भी आर्थिक परेशानियां नहीं सताएगी।।
 

पंडित विशाल दयानन्द शास्त्री 
vastushastri08@gmail.com
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